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पास  : अव्य [सं० पार्श्व] १. जो अवकाश, काल आदि के विचार से अधिक दूरी पर न हो। समय, स्थान आदि के विचार से थोड़े ही अन्तर पर। निकट। समीप। जैसे—(क) उनका मकान भी पास ही है। (ख) परीक्षा के दिन पास आ रहे हैं। पद—पास-पास या पास ही पास=एक दूसरे के समीप। बहुत थोड़े अन्तर पर। जैसे—दोनों पुस्तकें पास ही पास रखी हैं। मुहा०—(किसी स्त्री के) पास आना, जाना या रहना=स्त्री० के साथ मैथुन या संभोग करना। (किसी के) पास न फटकना=बिलकुल अलग या दूर रहना। (किसी के) पास बैठना=किसी की संगति में रहना। जैसे—भले आदमियों के पास बैठने से प्रतिष्ठा होती है। २. अधिकार में। कब्जे में। हाथ में। जैसे—तुम्हारे पास कितने रुपए हैं ? ३. किसी के निकट जाकर या किसी को सम्बोधित करके। उदा०—माँगत है प्रभु पास दास यह बार बार कर जोरी।—सूर। पुं० १. ओर। तरफ। दिशा। उदा०—अति उतुंग जल-निधि चहुँपासा।—तुलसी। २. निकटता। सामीप्य। जैसे—उसके पास से हट जाओ। ३. अधिकार। कब्जा। जैसे—हमें दस रुपए अपने पास से देने पड़े। विशेष—इस अर्थ में इसके साथ केवल ‘में’ और ‘से’ विभक्तियाँ लगती हैं। पुं० [फा०] किसी के पद, मर्यादा, सम्मान आदि का रखा जानेवाला उचित ध्यान या किया जानेवाला विनयपूर्ण विचार। अदब। लिहाज। जैसे—बड़ों का हमेशा पास करना (या रखना) चाहिए। क्रि० प्र०—करना।—रखना। पुं० [अं०] वह अधिकारपत्र जिसकी सहायता से कोई कहीं बिना रोक-टोक आ-जा सकता हो। पारक। पारपत्र। जैसे—अभिनय या खेल-तमाशे में जाने का समय; रेल से कहीं आने-जाने का पास। विशेष—टिकट या पास में यह अन्तर है कि टिकट के लिए तो धन या मूल्य देना पड़ता है; परन्तु पास बिना धन दिये या मूल्य चुकाये ही मिलता है। वि० १. जो किसी प्रकार की रुकावट आदि पार कर चुका हो। २. जो जाँच, परीक्षा आदि में उपयुक्त या ठीक ठहरा हो; और इसी लिए आगे बढ़ने के योग्य मान लिया गया हो। उत्तीर्ण। जैसे—(क) लड़कों का इम्तहान में पास होना। (ख) विधायिका सभा में कोई कानून पास होना। ३. पावन, प्राप्यक, व्यय आदि के लेखे के संबंध में, जो उपयुक्त अधिकारी के द्वारा ठीक माना गया और स्वीकृत हो चुका हो। जैसे—कर्मचारियों के वेतन का प्राप्यक (बिल) पास होना। पुं० [सं० पास=बिछाना, डालना] आँवें के ऊपर उपले जमाने का काम।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं० [देश०] भेड़ों के बाल कतरने की कैंची का दस्ता। पुं० १. दे० ‘पाश’। २. दे० ‘पासा’।
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पास  : अव्य [सं० पार्श्व] १. जो अवकाश, काल आदि के विचार से अधिक दूरी पर न हो। समय, स्थान आदि के विचार से थोड़े ही अन्तर पर। निकट। समीप। जैसे—(क) उनका मकान भी पास ही है। (ख) परीक्षा के दिन पास आ रहे हैं। पद—पास-पास या पास ही पास=एक दूसरे के समीप। बहुत थोड़े अन्तर पर। जैसे—दोनों पुस्तकें पास ही पास रखी हैं। मुहा०—(किसी स्त्री के) पास आना, जाना या रहना=स्त्री० के साथ मैथुन या संभोग करना। (किसी के) पास न फटकना=बिलकुल अलग या दूर रहना। (किसी के) पास बैठना=किसी की संगति में रहना। जैसे—भले आदमियों के पास बैठने से प्रतिष्ठा होती है। २. अधिकार में। कब्जे में। हाथ में। जैसे—तुम्हारे पास कितने रुपए हैं ? ३. किसी के निकट जाकर या किसी को सम्बोधित करके। उदा०—माँगत है प्रभु पास दास यह बार बार कर जोरी।—सूर। पुं० १. ओर। तरफ। दिशा। उदा०—अति उतुंग जल-निधि चहुँपासा।—तुलसी। २. निकटता। सामीप्य। जैसे—उसके पास से हट जाओ। ३. अधिकार। कब्जा। जैसे—हमें दस रुपए अपने पास से देने पड़े। विशेष—इस अर्थ में इसके साथ केवल ‘में’ और ‘से’ विभक्तियाँ लगती हैं। पुं० [फा०] किसी के पद, मर्यादा, सम्मान आदि का रखा जानेवाला उचित ध्यान या किया जानेवाला विनयपूर्ण विचार। अदब। लिहाज। जैसे—बड़ों का हमेशा पास करना (या रखना) चाहिए। क्रि० प्र०—करना।—रखना। पुं० [अं०] वह अधिकारपत्र जिसकी सहायता से कोई कहीं बिना रोक-टोक आ-जा सकता हो। पारक। पारपत्र। जैसे—अभिनय या खेल-तमाशे में जाने का समय; रेल से कहीं आने-जाने का पास। विशेष—टिकट या पास में यह अन्तर है कि टिकट के लिए तो धन या मूल्य देना पड़ता है; परन्तु पास बिना धन दिये या मूल्य चुकाये ही मिलता है। वि० १. जो किसी प्रकार की रुकावट आदि पार कर चुका हो। २. जो जाँच, परीक्षा आदि में उपयुक्त या ठीक ठहरा हो; और इसी लिए आगे बढ़ने के योग्य मान लिया गया हो। उत्तीर्ण। जैसे—(क) लड़कों का इम्तहान में पास होना। (ख) विधायिका सभा में कोई कानून पास होना। ३. पावन, प्राप्यक, व्यय आदि के लेखे के संबंध में, जो उपयुक्त अधिकारी के द्वारा ठीक माना गया और स्वीकृत हो चुका हो। जैसे—कर्मचारियों के वेतन का प्राप्यक (बिल) पास होना। पुं० [सं० पास=बिछाना, डालना] आँवें के ऊपर उपले जमाने का काम।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं० [देश०] भेड़ों के बाल कतरने की कैंची का दस्ता। पुं० १. दे० ‘पाश’। २. दे० ‘पासा’।
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पास-बंद  : पुं० [हिं० पास+फा० बंद] दरी बुनने के करघे की वह लकड़ी जिससे बै बँधी रहती है और जो ऊपर-नीचे जाया करती है।
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पास-बंद  : पुं० [हिं० पास+फा० बंद] दरी बुनने के करघे की वह लकड़ी जिससे बै बँधी रहती है और जो ऊपर-नीचे जाया करती है।
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पास-बान  : पुं० [फा०] [भाव० पासवानी] पहरा देनेवाला व्यक्ति। द्वारपाल। स्त्री० रखेली स्त्री। (राज०)
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पास-बुक  : स्त्री० [अं०]=लेखा-पुस्तिका।
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पासक  : पुं०=पाशक।
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पासंग  : पुं० [फा० पारसंग] १. तराजू के दोनों पलड़ों या पल्लों का वह सामान्य सूक्ष्म अन्तर जो उस दशा में रहता है जब उन पर कोई चीज तौली नहीं जाती। पसंगा। विशेष—ऐसी स्थिति में तराजू पर जो चीज तौली जाती है वह बटखरे या उचित मान से या तो कुछ कम होती है या अधिक; तौल में ठीक और पूरी नहीं होती। २. पत्थर, लोहे आदि के टुकड़े के रूप में वह थोड़ा-सा भार जो उक्त अवस्था में किसी पल्ले या उसकी रस्सी में इसलिए बाँधा जाता है कि दोनों पल्लों का अन्तर दूर हो जाय और चीज पूरी तौली जा सके। विशेष—शब्द के मूल अर्थ के विचार से पासंग का यही दूसरा अर्थ प्रधान है; परन्तु व्यवहारतः इसका पहला अर्थ ही प्रदान हो गया है। ३. वह जो किसी की तुलना में बहुत ही तुच्छ, सूक्ष्म या हीन हो। जैसे—तुम तो चालाकी में उसके पासंग भी नहीं हो। पुं० [?] एक प्रकार का जंगली बकरा जो बिलोचिस्तान और सिन्ध में पाया जाता है, जिसकी दुम पर बालों का गुच्छा होता है। भिन्न-भिन्न ऋतुओं में इसके शरीर का रंग कुछ बदलता रहता है। इसकी मादा ‘बोज’ कहलाती है।
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पासंग  : पुं० [फा० पारसंग] १. तराजू के दोनों पलड़ों या पल्लों का वह सामान्य सूक्ष्म अन्तर जो उस दशा में रहता है जब उन पर कोई चीज तौली नहीं जाती। पसंगा। विशेष—ऐसी स्थिति में तराजू पर जो चीज तौली जाती है वह बटखरे या उचित मान से या तो कुछ कम होती है या अधिक; तौल में ठीक और पूरी नहीं होती। २. पत्थर, लोहे आदि के टुकड़े के रूप में वह थोड़ा-सा भार जो उक्त अवस्था में किसी पल्ले या उसकी रस्सी में इसलिए बाँधा जाता है कि दोनों पल्लों का अन्तर दूर हो जाय और चीज पूरी तौली जा सके। विशेष—शब्द के मूल अर्थ के विचार से पासंग का यही दूसरा अर्थ प्रधान है; परन्तु व्यवहारतः इसका पहला अर्थ ही प्रदान हो गया है। ३. वह जो किसी की तुलना में बहुत ही तुच्छ, सूक्ष्म या हीन हो। जैसे—तुम तो चालाकी में उसके पासंग भी नहीं हो। पुं० [?] एक प्रकार का जंगली बकरा जो बिलोचिस्तान और सिन्ध में पाया जाता है, जिसकी दुम पर बालों का गुच्छा होता है। भिन्न-भिन्न ऋतुओं में इसके शरीर का रंग कुछ बदलता रहता है। इसकी मादा ‘बोज’ कहलाती है।
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पासना  : अ० [सं० पयस्=दूध] स्तनों या थनों में दूध उतरना या उनका दूध से भरना।
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पासना  : अ० [सं० पयस्=दूध] स्तनों या थनों में दूध उतरना या उनका दूध से भरना।
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पासनी  : स्त्री० [सं० प्राशन] बच्चों का अन्नप्राशन। उदा०—कान्ह कुँवर की करहु पासनी।—सूर।
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पासनी  : स्त्री० [सं० प्राशन] बच्चों का अन्नप्राशन। उदा०—कान्ह कुँवर की करहु पासनी।—सूर।
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पासमान  : पुं० [हिं० पास+मान (प्रत्य०)] पास रहनेवाला दास। पुं०=पासबान।
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पासमान  : पुं० [हिं० पास+मान (प्रत्य०)] पास रहनेवाला दास। पुं०=पासबान।
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पासवर्ती  : वि०=पाश्वर्ती।
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पासवर्ती  : वि०=पाश्वर्ती।
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पासवानी  : स्त्री० [फा०] १. द्वारपाल का काम और पद। २. पहरेदारी।
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पासवानी  : स्त्री० [फा०] १. द्वारपाल का काम और पद। २. पहरेदारी।
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पाससार  : पुं०=पासासारि।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पाससार  : पुं०=पासासारि।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पासह  : अव्य०=पास।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पासह  : अव्य०=पास।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पासा  : पुं० [सं० पाशक, प्रा० पासा] १. हड्डी, हाथी दाँत आदि के छः पहले टुकड़े जिनके पहलों पर एक से छः तक बिंदियाँ अंकित होती हैं और जिन्हें चौसर आदि के खेलों में खेलाड़ी बारी-बारी से फेंककर अपना दाँव निश्चित करते हैं। (डाइस) मुहा०—(किसी का) पासा पड़ना=(क) पासे के पहल का किसी की इच्छा के अनुसार ठीक गिरना। जीत का दाँव पड़ना। (ख) ऐसी स्थिति होना कि उद्देश्य, युक्ति आदि सफल हो। पासा पलटना=(क) पासे का विपरीत प्रकार या रूप में गिरने लगना। (ख) ऐसी स्थिति आना या होना कि जो क्रम चला आ रहा हो, वह उलट जाय, मुख्यतः बुरी से अच्छी दशा या दिशा की ओर प्रवृत्त होना। पासा फेंकना=भाग्य के भरोसे रहकर और सफलता प्राप्त करने की आशा से किसी प्रकार का उपाय, प्रयत्न या युक्ति करना। २. चौपड़ या चौसर का खेल, अथवा और कोई ऐसा खेल जो पासों से खेला जाता हो। ३. मोटी छः पहली बत्ती के आकार में लाई हुई वस्तु। गुल्ली। जैसे—चाँदी या सोने का पासा (अर्थात् उक्त आकार में ढाला हुआ खंड)। ४. सुनारों का एक उपकरण जो काँसे या पीतल का चौकोर ढला हुआ खंड होता है और जिसके हर पहल पर छोटे-बड़े गोलाकार गड्ढे बने होते हैं। (इन्हीं गड्ढों की सहायता से गहनों में गोलाई लाई जाती है।) ५. कोई चीज ढालने का साँचा। (राज०)
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पासा  : पुं० [सं० पाशक, प्रा० पासा] १. हड्डी, हाथी दाँत आदि के छः पहले टुकड़े जिनके पहलों पर एक से छः तक बिंदियाँ अंकित होती हैं और जिन्हें चौसर आदि के खेलों में खेलाड़ी बारी-बारी से फेंककर अपना दाँव निश्चित करते हैं। (डाइस) मुहा०—(किसी का) पासा पड़ना=(क) पासे के पहल का किसी की इच्छा के अनुसार ठीक गिरना। जीत का दाँव पड़ना। (ख) ऐसी स्थिति होना कि उद्देश्य, युक्ति आदि सफल हो। पासा पलटना=(क) पासे का विपरीत प्रकार या रूप में गिरने लगना। (ख) ऐसी स्थिति आना या होना कि जो क्रम चला आ रहा हो, वह उलट जाय, मुख्यतः बुरी से अच्छी दशा या दिशा की ओर प्रवृत्त होना। पासा फेंकना=भाग्य के भरोसे रहकर और सफलता प्राप्त करने की आशा से किसी प्रकार का उपाय, प्रयत्न या युक्ति करना। २. चौपड़ या चौसर का खेल, अथवा और कोई ऐसा खेल जो पासों से खेला जाता हो। ३. मोटी छः पहली बत्ती के आकार में लाई हुई वस्तु। गुल्ली। जैसे—चाँदी या सोने का पासा (अर्थात् उक्त आकार में ढाला हुआ खंड)। ४. सुनारों का एक उपकरण जो काँसे या पीतल का चौकोर ढला हुआ खंड होता है और जिसके हर पहल पर छोटे-बड़े गोलाकार गड्ढे बने होते हैं। (इन्हीं गड्ढों की सहायता से गहनों में गोलाई लाई जाती है।) ५. कोई चीज ढालने का साँचा। (राज०)
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पासार  : पुं० [फा० पासदार] [भाव० पासारी] १. तरफदार। पक्षपाती। २. शरणदाता। रक्षक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पासार  : पुं० [फा० पासदार] [भाव० पासारी] १. तरफदार। पक्षपाती। २. शरणदाता। रक्षक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पासासारि  : पुं० [हिं० पासा+सारि=गोटी] १. पासों की सहायता से खेला जानेवाला खेल। जैसे—चौसर। चौसर आदि की गोट जो पासा फेंककर उसके अनुसार चलाते हैं।
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पासासारि  : पुं० [हिं० पासा+सारि=गोटी] १. पासों की सहायता से खेला जानेवाला खेल। जैसे—चौसर। चौसर आदि की गोट जो पासा फेंककर उसके अनुसार चलाते हैं।
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पासिक  : पुं० [सं० पाश] १. फंदा। २. बंधन।
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पासिक  : पुं० [सं० पाश] १. फंदा। २. बंधन।
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पासिका  : स्त्री० [सं० पाश] १. जाल। २. बंधन।
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पासिका  : स्त्री० [सं० पाश] १. जाल। २. बंधन।
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पासी  : पुं० [सं० पाशिन्, पाशी] १. जाल या फंदा डालकर चिड़ियाँ पकड़नेवाला। बहेलिया। २. एक जाति जो ताड़ के पेड़ों से ताड़ी उतारने का काम करती है। स्त्री० [सं० पाश] १. घोड़ों के पिछले पैर में बाँधने की रस्सी। पिछाड़ी। २. घास बाँधने की जाली या रस्सी। स्त्री०=पाश (फंदा)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पासी  : पुं० [सं० पाशिन्, पाशी] १. जाल या फंदा डालकर चिड़ियाँ पकड़नेवाला। बहेलिया। २. एक जाति जो ताड़ के पेड़ों से ताड़ी उतारने का काम करती है। स्त्री० [सं० पाश] १. घोड़ों के पिछले पैर में बाँधने की रस्सी। पिछाड़ी। २. घास बाँधने की जाली या रस्सी। स्त्री०=पाश (फंदा)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पासुरी  : स्त्री०=पसली।
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पासुरी  : स्त्री०=पसली।
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