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पत्थर  : पुं० [सं० प्रस्तर, प्रा० पत्थर] [वि० पथरीला, क्रि० पथराना] १. धातुओं से भिन्न वह कड़ा, ठोस और भारी भू-द्रव्य जो खानों के नीचे बनता है। भू-कम्प आदि के कारण यही भू-द्रव्य ऊपर उठकर पर्वतों का रूप धारण कर लेता है। २. खानों में से खोदकर या पर्वतों में से काटकर निकाला हुआ उक्त भू-द्रव्य का कोई खंड या पिंड। पद—पत्थर का कलेजा, दिल या हृदय=अत्यन्त कठोर हृदय। किसी के कष्ट से न पसीजनेवाला दिल या हृदय। पत्थर का छापा=पुस्तकों आदि की एक प्रकार की छपाई जिसमें छापे जानेवाले लेख की एक प्रतिलिपि पत्थर पर उतारी जाती है और उसी पत्थर पर कागज रखकर छापते हैं। लीथो की छपाई। पत्थर की छाती=(क) ऐसा हृदय जो बहुत बड़े-बड़े कष्ट भी सहज में और चुपचाप सह लेता हो। (ख) ‘दे० ऊपर पत्थर का कलेजा’। पत्थर कील कीर=ऐसी प्रतिज्ञा या बात, जो उसी प्रकार दृढ़ और स्थायी हो, जैसी पत्थर के ऊपर छेनी आदि से खींची हुई लकीर होती है। मुहा०—पत्थर को (या में) जोंक लगाना=बिलकुल अनहोनी या असंभव बात करना। ऐसा काम करना जो औरों के लिए असंभव या बहुत अधिक कठिन हो। (शस्त्र आदि को) पत्थर चटाना=छुरी, कटार आदि की धार पत्थर पर घिसकर तेज करना। पत्थर तले हाथ आना या दबना=ऐसे संकट में पड़ना या फँसना जिससे छूटने का कोई उपाय न सूझता हो। बुरी तरह फंस जाना। पत्थर तले से हाथ निकालना=बहुत बड़े संकट या विकट स्थिति में से किसी प्रकार बचकर निकलना। पत्थर निचोड़ना=(क) अनहोनी बात या असंभव बात कर दिखाना। (ख) ऐसे व्यक्ति से कुछ प्राप्त कर लेना जिससे प्राप्त कर लेना औरों के लिए बिल्कुल असंभव हो। पत्थर पिघलना या पसीजना=(क) बिलकुल अनहोनी या असंभव बात होना। परम कठोर हृदय का भी द्रवित होना। पत्थर सा खींच या फेंक मारना=बहुत ही रुखाई से उत्तर देना या बात करना। पत्थर से सिर फोड़ना या मारना=असंभव काम या बात के लिए प्रयत्न करना। व्यर्थ सिर खपाना। ३. सड़कों पर लगा हुआ वह पत्थर जिस पर वहाँ से विशिष्ट स्थान की दूरी अंकित होती है। ४. ओला। बिनौला। क्रि० प्र०—गिरना।—पड़ना। पद—पत्थर पड़े=चौपट हो जाय। नष्ट हो जाय, मारा जाय। ईश्वर का कोप पड़े। (अभिशाप या गाली) जैसे—पत्थर पड़े तुम्हारी इस करनी (या बुद्धि) पर। मुहा०—(किसी चीज या बात पर) पत्थर पड़ना=बुरी तरह से चौपट या नष्ट-भ्रष्ट हो जाना। जैसे—तुम्हारी बुद्धि पर पत्थर पड़ गया है। पत्थर पानी पड़ना=बहुत जोरों की वर्षा होना और उसके साथ ओले गिरना। ५. नीलम, पन्ना, लाल, हीरा आदि रत्नों जो वस्तुतः बहुमूल्य पत्थर ही होते हैं। जवाहिर। ६. ऐसी चीज जो पत्थर की ही तरह कठोर, जड़ या ठोस या भारी हो। जैसे—(क) यह गठरी क्या है, पत्थर है। (ख) तुम्हारा कलेजा क्या है, पत्थर है। ७. ऐसा अन्न आदि जो जल्दी गलता या पचता न हो। अव्य० नाम को भी कुछ नहीं। बिलकुल नहीं। जैसे—वहाँ क्या रखा है, पत्थर !
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पत्थर-कला  : स्त्री० [हिं० पत्थर+कल] एक तरह की पुरानी चाल की बन्दूकें जिसमें लगे हुए चकमक पत्थर की सहायता से बारूद दागा जाता था।
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पत्थर-चटा  : पुं० [हिं० पत्थर+अनु० चट चट] एक प्रकार की घास जिसकी टहनियाँ नरम और पतली होती हैं। पुं० [हिं० पत्थर+चाटना] १.एक प्रकार का साँप जो प्रायः पत्थर चाटता हुआ दिखाई देता है। २. एक प्रकार की समुद्री मछली जो प्रायः चट्टानों से चिपटी रहती है। ३. वह जो प्रायः घर के अन्दर रहता हो और जल्दी घर से बाहर न निकलता हो। ४. वह जो बहुत बड़ा कंजूस या मक्खीचूस हो।
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पत्थर-चूर  : पुं० [हिं० पत्थर+चूर] एक तरह का पौधा।
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पत्थर-फूल  : पुं० [हिं० पत्थर+फूल] दवा तथा मसाले के काम में आनेवाला एक तरह का पौधा जो प्रायः पथरीली भूमि में होता है। छरीला। शिलापुष्प।
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पत्थर-फोड़  : पुं० [हिं० पत्थर+फोड़ना] १.पत्थर तोड़ने का पेशा करनेवाला। संगतराश। २. छरीला या शैलाख्य नामक पौधा जो पत्थरों की संधियों में उत्पन्न होता है। ३. दे० ‘हुदहुद पक्षी’।
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पत्थरबाज  : वि० [हिं० पत्थर+फा० बाज] [भाव० पत्थरबाजी] पत्थर फेंक-फेंककर लोगों को मारनेवाला। पुं० वह जिसे ढेलवाँस से कंकड़-पत्थर फेंकने का अभ्यास हो। ढेल-वाह।
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पत्थरबाजी  : स्त्री० [हिं० पत्थरबाज] दूसरों पर पत्थर फेंकने की क्रिया या भाव। ढेलेबाजी।
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