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देना  : स० [स० दान] १. (अपनी) कोई चीज पूर्णतः और सदा के लिए किसी के अधिकार या नियंत्रण में करना। सुपुर्द करना। हवाले करना। जैसे—लड़के को ब्याह में मकान देना। २. बिना किसी प्रकार के प्रतिदान या प्रतिफल के किसी को कोई चीज अंतरित या हस्तांतरित करना। जैसे—प्रसाद देना। ३. श्रद्धापूर्वक अथवा किसी की सेवाओं आदि से प्रसन्न होकर उसे कुछ अर्पित या समर्पित करना। जैसे—(क) आशीर्वाद देना। (ख) भगवान का भक्त को दर्शन देना। ४. कोई चीज कुछ समय के लिए अपने पास के अलग करके दूसरे के हवाले करना। सौपना। जैसे— उसने अपना सारा असबाब कूली को (ढोने के लिए) दे दिया। ५. कोई चीज किसी के हाथ पर रखना। थमाना। पकड़ाना। जैसै—भिखमंगे को पैसा देना। ६. धन या और किसी पदार्थ के बदले में, अपनी चीज किसी के अधिकार में करना। जैसे—सौ रुपए देने पर भी ऐसी अँगूठी तुम्हें नहीं मिलेगी। ७. ऐसी क्रिया करना जिससे किसी को कुछ प्राप्त हो। पाने, मिलने या लेने में सहायक या साधक होना। जैसे—(क) किसी को उपाधि या मान-पत्र देना। (ख) नौकर को छुट्टी या तनख्वाह देना। (ग) गौ या भैंस का दूध देना। ८. किसी व्यक्ति, कार्य आदि के लिए उत्सृष्ट, निछावर या प्रदान करना। जैसे—(क) किसी संस्था को अपना जीवन, धन या समय देना। (ख) किसी को परामर्श, प्रमाण या सुझाव देना। (ग) किसी के लिए अपनी जान देना। ९. ऐसी क्रिया करना जिससे किसी को कुछ कष्ट या दंड़ मिले अथवा कोई दुष्परिणाम भोगना पड़े। जैसे—दुःख देना, सजा देना। १॰. आघात या प्रहार करना। जड़ना। मारना। जैसे—थप्पड या मुक्का देना। मुहा०—(किसी को) दे मारना=उठाकर जमीन पर गिरा या पटक देना। ११. पहनी जानेवाली कुछ चीजों के संबंध में, यथा-स्थान धारण करना। पहनना। जैसे— सिर पर टोपी या मुकुट देना। १२. कुछ विशिष्ट पदार्थों के संबंध में, बंद करना। जैसे—किवाड़ देना, अंगे का बंद या कुरते का बटन देना। १३. अंकन, लेखन आदि में, अंकित करना। चिह्न बनाना। जैसे—१ आगे बिंदी देने से १॰ हो जाता है। उदा०—बंक बिकारी देत ज्यों दाम रुपैया होत।—बिहारी। संयो० क्रि०—डालना।—देना। विशेष—संयोज्य क्रिया के रूप में ‘देना’ का प्रयोग निम्नलिखित स्थितियों में होता है—(क)संप्रदान कारक में ‘पडना’ क्रिया की तरह; जैसे—उसें दिखाई नहीं देता। (ख) अकर्मक अवधारण-बोधक क्रियाओं के साथ सप्रत्यय कर्त्ता कारक में; जैसे—वह रुपए उठाकर चल दिया। (च) ‘देना’ क्रिया के साथ कार्य की पूर्ति सूचित करने के लिए। जैसे—उसने पुस्तक मुझे दे दी। पुं० १. किसी से लिया हुआ वह धन जो अभी चुकाया जाने को हो ऋण। कर्ज। जैसे—उन्हें बाजार के हजारों रुपए देने हैं। २. वह धन जो किसी को किसी रुप में चुकाना आवश्यक या कर्तव्य हो। देय धन। देन। जैसे—अभी तो घर का भाड़ा, नौकर की तनख्वाह, बिजली का हिसाब और कन जाने क्या-क्या देना बाकी पडा है।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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