शब्द का अर्थ
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तुम :
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सर्व० [सं० त्वम्] ‘तू’ शब्द का वह बहुवचन रूप जिसका व्यवहार संबोधित व्यक्ति के लिए होता है तथा जो कहनेवाले की तुलना में छोटा या बराबरी का होता है। जैसे–तुम भी साथ चल सकते हों। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
तुमड़ी :
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स्त्री०=तूँबड़ी। |
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तुमतड़ाक :
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स्त्री०=तूमतड़ाक। |
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तुमरा :
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सर्व०=तुम्हारा। |
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तुमरी :
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स्त्री०=तूँबड़ी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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तुमरू :
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पुं०=तुँबुरू। |
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तुमल :
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पुं० वि०=तुमुल।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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तुमाना :
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स० [हिं० ‘तूमना’ का प्रे०] किसी को कुछ तूमने में प्रवृत्त करना। |
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तुमारा :
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सर्व०=तुम्हारा। |
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तुमुती :
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स्त्री० [देश०] एक प्रकार की चिड़िया। |
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तुमुल :
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पुं० [सं०√तु(हिंसा करना)+मुलन्] १. सेना का कोलाहल। लड़ाई की हलचल। २. सेना की भिड़त। ३. बहेड़ें की पेड़। वि० बहुत उत्कट तीव्र या विकट। घोर। प्रचंड। जैसे– तुमुल ध्वनि। |
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तुमुली :
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स्त्री० [?] पुरातत्व में एक दूसरे पर चुने हुए पत्थरों का वह ढेर या स्तूप जो प्रायः किसी स्थान की विशेषता या समाधि-स्थल आदि सूचित करने के लिए बनाया जाता था। (केयर्न)। |
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तुम्ह :
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सर्व०=तुम।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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तुम्हारा :
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सर्व० [हिं० तुम] [स्त्री० तुम्हारी] तुम का षष्ठी की विभक्ति लगने पर बननेवाला रूप। जैसे–तुम्हारा भाई। |
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तुम्हीं :
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सर्व०=तुमही।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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तुम्हें :
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सर्व० [हिं० तुम] ‘तुम’ का वह विभक्तियुक्त रूप जो उसे द्वितीय और चतुर्थी लगने पर प्राप्त होता है। जैसे–तुम्हें पकड़ूँगा या दूँगा। |
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