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तालू  : पुं० [सं० तालू०] १. मुँह के अन्दर का वह ऊपरी भाग जो ऊपरवाले दाँतों की पंक्ति और गले के कौए या घंटी तक विस्तृत रहता है तथा जिसके नीचे जीभ रहती है। (पैलेट)। मुहावरा–तालू उठाना-तुरन्त के जन्मे हुए बच्चे के तालू को दबाकर कुछ ऊपर और ठीक स्थान पर करना जिसमें मुँह अच्छी तरह खुल सके और उसके अन्दर कुछ अवकाश या जगह निकल आवे। (किसी के) तालू में दाँत जमना-किसी का ऐसे बहुत बुरे या विकट काम की ओर प्रवृत्त होना जिससे अंत में स्वयं उसी को बहुत बड़ी हानि हो। (किसी के) तालू में दाँत निकलना=दे० ‘दाँत’ के मुहा० के अंतर्गत। तालू से जीभ न लगना=बराबर कुछ न कुछ बकते-बोलते रहना। कभी चुप न रहना। २. खोपड़ी के अन्दर और मुंह के उक्त अंग के ऊपर का सारा भाग। दिमाग। मस्तिष्क। मुहावरा–तालू चटकना=प्यास, रोग आदि के कारण सिर में बहुत अधिक गरमी जान पड़ना। ३. घोड़ों का एक अशुभ लक्षण जो ऐब या दोष माना जाता है।
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तालूफाड़  : पुं० [हिं० तालू+फाड़ना] हाथियों के तालू में होनेवाला एक तरह का रोग जिसमें घाव हो जाते हैं।
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तालूर  : पुं० [सं०√तल् (प्रतिष्ठा करना)+णिच्+ऊर्] पानी का भँवर।
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तालूषक  : पुं० [सं०√तल्+णिच्+ऊषक्]=तालु।
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