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शब्द का अर्थ
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टाँड़ :
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स्त्री० [हिं० स्थाणु या हिं० टाँड़ा ?] १. चीजें रखने के लिए दो दीवारों या आलमारी के बीच में बेड़े बल में लगा हुआ लकड़ी का तख्ता या पत्थर। २. लकड़ी के खंभो या पायों से युक्त वह रचना जिसमें सामान रखने के लिए बेड़े बल में कुछ तख्ते लगे हुए होते हैं। (रैक) ३. लकड़ी आदि के खंबो पर बनी हुई कोई छोटी रचना। जैसे–मचान। ४. बाँस का पोला डंडा जो हल में जुड़ा रहता है और जिसके ऊपरी सिरे पर लकड़ी का कटोरेनुमा टुकड़ा संबद्ध रहता है। ५. गुल्ली-डंडा के खेल में डंडे से गुल्ली पर किया जानेवाला आघात। क्रि० प्र०–मारना।–लगाना। ६. कंकरीली मिट्टी। पुं० १.=टाँड़ा। २. टाल (ढेर या राशि)। स्त्री०=टाड़। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
टाँड़ा :
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पुं० [हिं० टाँड़=समूह] १. चौपायों का वह झुंड या दल जिस पर व्यापारी लोग माल लादकर एक जगह से दूसरी जगह ले जाते थे। २. उक्त प्रकार से माल कहीं ले जाने या कहीं से लाने की क्रिया अथवा अवस्था। ३. उक्त प्रकार से लादकर लाया या ले जाया जानेवाला माल। क्रि० प्र०–लादना। ४. पैदल, यात्रियों, बंजारों, व्यापारियों आदि के दलों का कूच या प्रस्थान। ५. उक्त प्रकार के लोगों का जत्था या दल। उदाहरण–लीजे बेगि निबेरि सूर प्रभु यह पतितन को टाँड़ो।–सूर। ६. वह स्थान जहाँ उक्त प्रकार के यात्री अथवा जंगली यायावर जातियों के लोग कुछ समय के लिए ठहरते या अस्थायी रूप से घर बनाकर अथवा पड़ाव डालकर रहते हैं जैसे–आज-कल कंजरों का टांड़ा पड़ा है। ७. कुंटुब। परिवार। पुं० [सं० टैंड, हिं० टुंड] एक प्रकार का हरा कीड़ा जो गन्ने आदि की जड़ों में लगकर फसल को हानि पहुँचाता है। क्रि० प्र०–लगना। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
टाँड़ी :
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स्त्री०=टिट्डी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
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