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शब्द का अर्थ
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टाँग :
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स्त्री० [सं० टंग] १. मनुष्य के शरीर का चूतड़ और एड़ी के बीच का अंग जिसमें रान, घुटना, पिंडली टखना आदि अवयव सम्मिलित हैं। विशेष–कभी कभी टाँग से घुटने और एड़ी के बीच के अंग मात्र का बोध होता है। मुहावरा–(किसी काम या बात में) टाँग अड़ाना=किसी काम में प्रायः अनावस्यक रूप से और केवल अपना अधिकार या जानकारी दिखलाने के लिए हस्तक्षेप करना। (किसी की) टांग तले से या नीचे से निकलना-नीचा देकना, अपनी छोटाई या हार मान लेना। विशेष–इस मुहावरे का प्रयोग ऐसी ही अवस्था में होता है जबकि वक्ता को अपने कथन या पक्ष की प्रामाणिकता सिद्ध करनी होती है और किसी दूसरे को इसके विपरीत चुनौती देनी होती है। (किसी की) टाँग तोड़ना=पंगु बनाना। नष्ट-भ्रष्ट करना। जैसे–भाषा की तो आपने टाँग तोड़ दी है। (किसी की) टाँग से टाँग बाँध कर बैठना=किसी के पास बैठे रहना अथवा उसे अपने पास से न हटने देना। टाँगे पसार कर सोना=निश्चित होकर सोना। पद–टाँग बराबर=बहुत छोटा। २. कुश्ती का एक पेंच जिसमें विपक्षी की टाँग में टाँग अड़कार उसे चित गिराते हैं। ३. चतुर्थांश। चौथाई भाग। चहारुम। (दलाल) |
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समानार्थी शब्द-
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टाँगन :
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पुं० [सं० तुरंगम] छोटे कद का घोड़ा। टट्टू। |
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समानार्थी शब्द-
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टाँगना :
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स० [हिं० टँगना का स०] १. किसी चीज को किसी ऊँचे स्थान पर इस प्रकार अटकाना, बाँधना या लगाना कि वह बिना आधार के अधर में खड़ी, झूलती या लटकती रहे। जैसे–(क) रस्सी पर कपड़े या खूँटी में छीका टाँगना। (ख) दीवार पर घड़ी या चित्र टाँगना। २. छीकें आदि पर कोई चीज सुरक्षा के लिए रखना। जैसे–दही दूध या तरकारी टाँगना। ३. फाँसी पर चढ़ना या लटकाना। विशेष–टाँगना में मुख्य भाव किसी चीज के ऊपरी भाग को कहीं लगाने का और लटकाना में चीज के नीचेवाले भाग के झूलते या लटकते रहने का है। |
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टाँगा :
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पुं० [सं० टंग] [स्त्री० अल्पा० टांगी] बड़ी कुल्हाड़ी। पुं० [हिं० टाँगन] दो ऊँचे पहियोंवाली एक प्रकार की गाड़ी जिसमें एक घोड़ा जोता जाता है। |
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टाँगानोचन :
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स्त्री० [हिं० टाँग+नोचना] खींचा–तानी। खींचा–खींची। |
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टाँगी :
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स्त्री० [हिं० टाँगा] कुल्हाड़ी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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टाँगुन :
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स्त्री० [देश०] बाजरे की तरह का एक कदन्न जिसे उबालकर गरीब लोग खाते हैं। |
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