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टक  : स्त्री० [सं० टंक-बाँधना वा सं० त्राटक] अनुराग, आश्चर्य, प्रतीक्षा आदि के कारण किसी ओर मनोनिवेशपूर्वक स्थिर दृष्टि से देखते रहने की अवस्था, क्रिया या भाव। नजर गड़ाकर लगातार किसी ओर देखते रहना। टकटकी। क्रि० प्र०–बँधना।–बाँधना।–लगना।–लगाना। मुहावरा–टक टक देखना=विवशता की दशा में स्थिर दृष्टि से देखते रहना। टक लगाना=आसरा देखते रहना। दृष्टि लगाकर ध्यानपूर्वक किसी ओर देखते रहना। स्त्री० [?] चीजें या बोझ तौलने का बड़ा तराजू।
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टकटका  : पुं०=टकटकी।
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टकटकारना  : स० [हिं० टक] टकटकी लगाकर किसी ओर देखना। स्थिर दृष्टि किए हुए किसी ओर देखते रहना। स० [अ०] टक-टक शब्द उत्पन्न करना। अ० टक-टक शब्द होना।
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टकटकी  : स्त्री० [हिं० टक या सं० त्राटकी] टक लगाकर मनोनिवेशपूर्वक स्थिर दृष्टि से किसी ओर देखते रहने की क्रिया या भाव। क्रि० प्र०–बँधना।–बाँधना।–लगना।–लगाना।
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टकटोना  : स०=टकटोरना। उदाहरण–सबै देस टकटोये।–नागरीदास।
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टकटोरना  : स०=[हिं० टकटकी] अन्धकार आदि में किसी चीज के आकार, रूप आदि का पता लगाने के लिए उसे जगह-जगह से छूकर देखना। टटोलना(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टकटोलना  : स० [अनु०]=टकटोरना।
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टकटोहन  : पुं० [हिं० टकटोना] टटोलने की क्रिया या भाव।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टकटोहना  : स०=टकटोरना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टकण-यंत्र  : पुं० [ष० त०] आज-कल छापे की एक प्रकार की छोटी कल जिसमें अलग-अलग पत्तियों पर अक्षर खुदे होते हैं और उन पत्तियों को जोर से दबाने पर वे अक्षर ऊपर लगे हुए कागज पर छपते चलते हैं। इससे प्रायः चिट्ठियाँ, छोटे लेख आदि छापे जाते हैं। (टाइपराइटर)।
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टकतंत्री  : स्त्री० [सं०] पुरानी चाल का एक प्रकार का सितार की तरह का बाजा।
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टकना  : पुं० दे० ‘टखना’। अ०=टँकना।
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टकबीड़ा  : पुं० [देश०] प्राचीन काल में मंगल तथा शुभ अवसरों पर प्रजा द्वारा जमींदार को दी जानेवाली भेंट।
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टकराना  : अ० [हिं० टक्कर] १. विपरीत दिशाओं में वेगपूर्वक आगे बढ़नेवाली दो वस्तुओं, व्यक्तियों आदि अथवा उनके अगले भागों या सिरों का आपस में इस प्रकार भिड़ना या जोर से लगना कि उनमें से किसी एक अथवा दोनों को भारी आघात लगे। जैसे–बाइसिकिलों या मोटरों का टकराना। २. किसी दिशा में चलती या बढती हुई वस्तु का मार्ग में खड़ी किसी बड़ी या भारी चीज से सहसा तथा जोर से जा लगना अथवा आघात करना। जैसे–किनारे से लहरों का टकराना। ३. किसी के मार्ग में बाधक होना अथवा किसी का मुकाबला या सामना करने के लिए उसके मार्ग में आना या पड़ना। संघर्ष होना। जैसे–जो हमसे टकरायेगा चूर-चूर हो जायगा। ४. इधर-उधर मारे-फिरना। टक्करें खाना। स० एक चीज पर दूसरी चीज मारना। स० दो चीजों के अगले भागों या सिरों को एक दूसरे से इस प्रकार जोर से भिड़ाना कि उनमें से एक या दोनों को चोट लगे या उनकी कोई विशेष हानि हो। आपस में टक्कर खिलाना या लगाना।
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टकरी  : स्त्री० [देश०] एक तरह का पेड़।
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टकसरा  : पुं० [देश०] भारत के पूर्वी प्रदेशों में होनेवाला एक तरह का बाँस।
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टकसार  : स्त्री=टकसाल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टकसाल  : स्त्री० [सं० टकसाला] [वि० टकसाली] १. प्राचीन भारत में वह कारखाना जहाँ पैसे, रुपए आदि के सिक्के ढलते थे। २. आज-कल वह स्थान जहाँ आधुनिक यंत्रों से ठप्पों आदि की सहायता से रुपए, पैसे आदि के सिक्के तैयार किये या बनाये जाते हैं। ३. लाक्षणिक रूप में वह स्थान जहाँ मानक चीजें बनती हों। मुहावरा–टकसाल चढाना=(क) प्राचीन भारत में खरे-खोटे की परख के लिए सिक्कों का टकसाल में पहुंचाना। (ख) लाक्षणिक रूप में, किसी चीज का ऐसे स्थान में पहुँचना जहाँ उसकी बुराई-भलाई की परख हो सके। (ग) दुष्कर्मों आदि में पराकाष्ठा या पूर्णता तक पहुँचना। (परिहास और व्यंग्य) पद–टकसाल बाहर=(चीज या बात) जो ठीक, प्रामाणिक या मानक न मानी जाती हो। जैसे–इस प्रकार के प्रयोग आधुनिक भाषा में टकसाल बाहर माने जाते हैं। ४. वह चीज या बात जो सब प्रकार से ठीक, निर्दोष प्रामाणिक या मानक मानी जाती हो। उदाहरण–सार शब्द टकसार। (ल) है, हिरदय माँहि बिबेक।–कबीर।
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टकसाली  : वि० [हिं० टकसाल] १. टकसाल-संबंधी। टकसाल का। २. टकसाल में ढला या बना हुआ। ३. उतना ही प्रामाणिक और लोक-मान्य जितना टकसाल में ढाला हुआ अली सिक्का होता है। सब तरह से चलनसार, ठीक और मान्य। शिष्ट-सम्मत। जैसे–बा० बालमुकुन्द गुप्त की भाषा टकसाली होती थी। ४. सब प्रकार से परीक्षित और प्रामाणिक। जैसे–आप की हर बात टकसाली होती है। पुं० मध्ययुग में टकसाल या सिक्के ढालनेवाले विभाग का प्रधान अधिकारी।
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टकहा  : पुं०=टका।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) वि=टकाहा।
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टकहाया  : वि० [स्त्री० टकहाई]=टकाहा।
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टका  : पुं० [सं० टंक] १. प्राचीन भारत में चाँदी का एक सिक्का जो प्रायः आज-कल के एक रुपये के बराबर होता था। २. उक्त के आधार पर वैद्यक में तीन तोले की तौल। ३. अँगरेजी शासन में ताँबे का एक सिक्का जो दो पैसे मूल्य का होता था अधन्ना। पद–टका भर=बहुत ही अल्प या थोड़ी मात्रा में। जैसे–टका भर घी दे दो। टका सा=बहुत ही छोटा, तुच्छ थोड़ा या हीन। जैसे–टके सी जान, और इतना गुमान। टके गज की चाल=(क) बहुत ही मद्धिम या सामान्य अथवा पुराने ढंग की चाल-ढाल या रहन-सहन। जैसे–वह तो जनम भर वही टके गज की चाल चलते रहे। (ख) बहुत ही धीमी गति या सुस्त चाल। जैसे–छोटी लाइन की गाडियाँ तो बस वही टके की चाल चलती हैं। मुहावरा–टका सा जबाव देना=उसी प्रकार तिरस्कारपूर्वक और नकारात्मक उत्तर देना जैसे किसी भिक्षुक के आगे टका फेंका जाता था। इनकार करते हुए साफ जबाव देना। टका सा मुँह लेकर रह जाना-अपमानित या तिरस्कृत होने पर लज्जित भाव से चुप रह जाना। ४. धन-संपत्ति। रुपया-पैसा। ५. गढ़वाल के पहाड़ी इलाकों की एक तौल जो प्रायः सवा सेर के लगभग होती है।
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टका-तोप  : स्त्री० [देश०] समुद्री जहाजों पर की एक प्रकार की छोटी तोप।
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टकाई  : वि० स्त्री०=टकाहाई। (टकहाया का स्त्री० रूप)। स्त्री०=टकासी।
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टकाना  : स०=टँकवाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टकानी  : स्त्री०=टेकानी।
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टकासी  : स्त्री० [हिं० टका] १. एक रुपये पर प्रतिमास दो पैसे का सूद या ब्याज देने लेने का एक ढंग। २. मध्य युग में व्यक्ति पीछे एक टके के हिसाब से लगनेवाला कर या चंदा। स्त्री० =टकहाई।
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टकाहा  : वि० [हिं० टका] [स्त्री० टकाही] टके-टके पर बिकने या मिलनेवाला अर्थात् बहुत ही तुच्छ या हीन। जैसे–टकाहा कपड़ा, टकाही रंडी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टकाही  : वि० हिं० ‘टकाहा’ का स्त्री० रूप। स्त्री० बहुत ही निम्म कोटि की वेश्या या दुश्चरित्रा स्त्री। स्त्री० दे० ‘टकासी’।
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टकी  : स्त्री=टकटकी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टकुआ  : पुं० [सं० तर्कुक, प्रा० तक्कुअ] [स्त्री० अल्पा० टकुई, टकुली] १. चरखे में का तकला। (देखें) २. कई प्रकार के छोटे अँकुसीदार या टेढ़े औजारों की संज्ञा। जैसे–बिनौले निकालने का टकुआ, मोची का टकुआ।
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टकुली  : स्त्री० [हिं० टकुआ] १. छोटा टकुआ। २. नक्काशी करनेवालों का एक औजार। स्त्री० [?] सिरिस की जाति का एक प्रकार का वृक्ष।
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टकूचना  : स० [हिं० टाँकना-खाना] खाना। (दलाल)
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टकैट  : वि=टकैत।
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टकैत  : वि० [हिं० टक+ऐत (प्रत्यय)] जिसके पास टके हों अर्थात् धनी। धनवान।
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टकोर  : स्त्री० [सं० टंकार] १. धनुष की डोरी खींचने से होनेवाला शब्द। टंकार। २. नगाड़े पर होनेवाला आघात। ३. आघात। ठेस। क्रि० प्र०–देना।–लगाना। ४. शरीर के किसी विकारग्रस्त विशेषतः सूजे हुए अंग पर दवा की पोटली को बार-बार गरम करके उससे किया जानेवाला हलका सेंक। ५. खट्टी या चरपरी चीजें खाने से दाँतों या मसूढ़ों में होनेवाली चुनचुनी या टीस। ६. लाक्षणिक अर्थ में, ऐसी बात जिससे दुःखी व्यक्ति और अधिक दुःखी होता हो। (पश्चिम)
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टकोरना  : स० [हिं० टकोर] १. टकोर या हलका सेंक करना। २. हलका आघात लगाना। जैसे–डंका बजाने के लिए उसे टकोरना। ३. ठेस लगाना ४. ऐसी बात जिससे दुःखी व्यक्ति और अधिक दुःखी हो।
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टकोरा  : पुं० [सं० टंकार] १. डंके की चोट। २. आघात। ठेस।
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टकोरी  : स्त्री० [सं० टंकार] हलकी चोट या आघात।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टकोहा  : पुं० [हिं० ठोकर] १. हाथ या पैर से किया हुआ बहुत हलका आघात। २. लाक्षणिक रूप में, मन पर लगनेवाला हलका आघात या ठेस।
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टकौना  : पुं०=टका।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टकौरी  : स्त्री० [सं० टंक] सोना, चाँदी आदि तौलने का पुरानी चाल का एक प्रकार का काँटा या तराजू। स्त्री० १.=टकासी। २.=टकहाई।
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टक्क  : पुं० [√ टक् (बाँधना)+कक्, पृषो० सिद्धि] १. वाहीक जाति का आदमी। २. कंजूस व्यक्ति।
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टक्क देश  : पुं० [सं० मध्य० स०] चनाब और ब्यास नदियों के बीच के प्रदेश का पुराना नाम।
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टक्कदेशीय  : वि० [सं० टक्कदेश+छ-ईय] १. टक्क देश का। २. टक्क देश में होनेवाला। पुं० बथुआ नामक साग।
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टक्कर  : स्त्री० [प्रा०] १. दो या अधिक चीजों के आपस में टकराने की अवस्था, क्रिया या भाव २. एक ही सीध में, परन्तु दो विपरीत दिशाओं में वेगपूर्वक आगे बढ़ने या चलनेवाली दो वस्तुओं, व्यक्तियों आदि के अगले भाग या सिरे के सहसा एक दूसरे से टकराने या भिड़ने की अवस्था, क्रिया या भाव। जैसे–रेल-गाड़ियों की टक्कर ३. बल-परीक्षा, मनोविनोद, व्यायाम आदि के लिए दो प्राणियों के आपस में मस्तक या सिर से एक दूसरे पर आघात करने या धक्का देने की क्रिया या भाव। क्रि० प्र–लड़ना।–लड़ाना। ४. वेगपूर्वक आगे बढ़ने के समय किसी वस्तु या व्यक्ति के अगले या ऊपरी भाग का मार्ग में पड़नेवाली किसी बड़ी या भारी चीज के साथ इस प्रकार लगनेवाली ठोकर या होनेवाली भिडन्त कि उनमें से किसी एक अथवा दोनों को किसी प्रकार की आघात लगे। जैसे–अँधेरे में चलते समय खंभे या दीवार से लगनेवाली टक्कर। मुहावरा–इधर-उधर टक्करें खाना या मारना=जगह-जगह मारे-मारे फिरना। दुर्दशा भोगते हुए कभी कहीं और कभी कहीं आना जाना। ५. बराबर के दो पक्षों में होनेवाला ऐसा मुकाबला या सामना जिसमें दोनों एक दूसरे को गिराना या दबाना चाहते हों या उन्हें हानि पहुँचाना चाहते हों। जैसे–दो देशों या विचार धाराओं में होनेवाली टक्कर। पद–टक्कर का=जोड़, बराबरी या मुकाबले का। जैसे–भगवद्गीता या रामचरितमानस की टक्कर की पुस्तक विश्व-साहित्य में मिलना दुर्लभ है। मुहावरा–(किसीसे) टक्कर लेना=बराबरी या मुकाबला करना। जैसे–यह घोड़ा दौड़ में रेलगाड़ी से टक्कर लेता है। ६. घाटा। हानि। (क्व०)।
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