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शब्द का अर्थ
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ज्वार :
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स्त्री० [सं० यवनाल, यवाकार या जूर्ण] १. एक प्रसिद्ध पौधा और उसके दाने या बीज जिनकी गिनती अनाजों में होती है। २. समुद्र उससे संबद्ध नदियों की वह स्थिति जब कि उनमें ऊँची-ऊँची तरंगें उठ रही हों। ‘भाटा’ का विपर्याय। विशेष–चंद्रमा और सूर्य के आकर्षक के फलस्वरूप दिन-रात में एक बार बहुत ऊँची-ऊँची लहरें उठती है जिसे ज्वार कहते है और दूसरी बार यह लहरें बिलकुल थम जाती हैं जिससे संबद्ध नदियों का पानी बहुत उतर या घट जाता है। इसी को भाटा कहते हैं। अमावस्या और पूर्णिमा के दिन ज्वार का रूप बहुत ही उग्र या प्रबल होता है। स्त्री०=ज्वाला(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
ज्वार-भाटा :
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पुं० [हिं० ज्वार+भाटा] समुद्र में लहरों का वेगपूर्वक बहुत ऊँचे उठना और बराबर नीचे गिरना। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
ज्वारी :
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पुं०=जुआरी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
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