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जिल्द  : स्त्री० [अ०] [वि० जिल्दी] १. शरीर के ऊपर की खाल या चमड़ा। त्वचा। २. कागज, चमड़े आदि से मढ़ी हुई वह दफ्ती जो किसी पुस्तक के ऊपर और नीचे उसके पृष्ठों की रक्षा के लिए लगाई जाती है। क्रि० प्र०–चढ़ाना।–बाँधना।–मढ़ना। ३. पुस्तक की प्रति। ४. पुस्तक का ऐसा खंड जो अलग भाग के रूप में हो। भाग।
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जिल्दगर  : पुं० [फा०] जिल्द बंद।
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जिल्दबंद  : पुं० [फा०] पुस्तकों पर जिल्दें बाँधनेवाला कारीगर।
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जिल्दबंदी  : स्त्री० [फा०] जिल्द बाँधने की क्रिया, भाव या मजदूरी।
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जिल्दसाज  : पुं० [फा०] [भाव० जिल्दसाजी] जिल्द बाँधनेवाला व्यक्ति। जिल्दबंद।
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जिल्दसाजी  : स्त्री० [फा०] जिल्द बाँधने का काम या पेशा।
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जिल्दी  : वि० [अ०] त्वचा संबंधी। जैसे–जिल्दी बीमारी।
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