शब्द का अर्थ
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चित्रा :
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स्त्री० [सं०√चित्र+अच्-टाप्] १. सत्ताइस नक्षत्रों में से चौदहवाँ नक्षत्र जिसमें तीन तारे होते हैं। इसमें गृह-प्रवेश, गृहारंभ और यानों, वाहनों आदि का व्यवहार शुभ कहा गया है। २. मूषिकपर्णी या मूसाकानी लता। ३. ककड़ी खीरा आदि फल। ४. दंती वृक्ष। ५. गाँडर नामक घास। ६. मँजीठ। ७. बायबिंडग। ८. अजवायन। ९. चितकबरी गाय। १॰. एक अप्सरा का नाम। ११. सुभद्रा का एक नाम। १२. एक प्राचीन नदी। १३. एक प्रकार की रागिनी जो भैरव राग की पत्नी कही गई है। १४. संगीत में एक प्रकार की मूर्च्छना। १५. एक प्रकार का पुराना बाजा। १६. पंद्रह अक्षरों की एक वर्णवृत्ति जिसमें पहले तीन नगण, फिर दो यगम होते हैं। १७. एक प्रकार की चौपाई जिसके प्रत्येक चरण में सोलह मात्राएँ होती हैं और अंत में एक गुरु होता है। इसकी पाँचवी, आठवीं और नवीं मात्रा लघु तथा अंतिम मात्रा गुरु होती है। |
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चित्रा-विरली :
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स्त्री० [सं०] एक प्रकार का पुराना कामदार कपड़ा जो आज-कल की जामदानी की तरह का होता था। |
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चित्रांकन :
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पुं० [चित्र-अंकन, ष० त०] [भू० कृ० चित्रांकित] चित्र अंकित करने या हाथ में तसवीर बनाने का काम। आलेख्य कर्म। (पेन्टिंग)। |
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चित्रांकित :
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भू० कृ० [सं० चित्र-अंकित, स० त० जो चित्र के रूप में या चित्र में अंकित किया गया हो। चित्रित। |
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चित्राक्ष :
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पुं० [चित्र-अक्षि, ब० स० षच्] धृतराष्ट्र के एक पुत्र का नाम। वि० [स्त्री० चित्राक्षी] विचित्र और सुन्दर आँखोंवाला। |
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चित्राक्षी :
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स्त्री० [सं० चित्राक्ष+ङीष्] मैना पक्षी। |
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चित्रांग :
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भू० [चित्र-अंग, ब० स०] जिसके अंग पर चित्तियाँ धारियाँ चिन्ह्र आदि हों। पुं.१.चित्रक या चीता नाम का पेड़। २. चीतल सांप। ३. ईगुर। सिंदूर। ४. हरताल। |
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चित्रांगद :
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पुं० [चित्र-अंगद, ब० स०] १. सत्यवती के गर्भ से उत्पन्न राजा शांतनु के एक पुत्र और विचित्रवीर्य्य के छोटे भाई। २. पुराणानुसार एक गंधर्व। ३. महाभारत के अनुसार दशार्ण के एक राजा। |
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चित्रांगदा :
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स्त्री० [सं० चित्रांगद+टाप्] १. मणिपुर के राजा चित्रवाहन की कन्या जो अर्जुन को ब्याही थी। और जो बभ्रुवाहन की माता थी। २. रावण की एक पत्नी जिसके गर्भ से वीरबाहु का जन्म हुआ था। |
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चित्रांगी :
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स्त्री० [सं० चित्रांग+ङीष्] १. मँजीठ। २. कनखजूरा। |
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चित्राटीर :
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पुं० [सं० चित्रा√अट् (गति)+ईरच्] १. चंद्रमा। २. शिव का घंटाकर्ण नामक अनुचर। |
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चित्रादित्य :
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पुं० [चित्र-आदित्य, मध्य० स०] प्रभास क्षेत्र में चित्रगुप्त की स्थापित सूर्य्य की मूर्ति। (स्कंद पुराण)। |
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चित्राधार :
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पुं० [चित्र-आधार, ष० त०] कोरे पन्नों की नत्थी की हुई वह पुस्तक जिसमें आग्रहण, चित्र, रेखा-चित्र आदि लगाये जाते हैं। (एलबम)। |
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चित्रान्न :
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पुं० [चित्र-अन्न, कर्म० स०] बकरी के दूध में पकाया और बकरी के कान के रक्त में रंगा हुआ जौ और चावल। (कर्मकांड)। |
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चित्रायस :
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पुं० [चित्र-अयस्, कर्म० स० टच्] इस्पात। (लोहा)। |
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चित्रायुध :
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पुं० [चित्र-आयुध, कर्म० स०] १. विलक्षण अस्त्र। २. [ब० स०] धृतराष्ट्र का एक पुत्र। वि० जिसके पास विचित्र या विलक्षण अस्त्र-शस्त्र हों। |
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चित्रार :
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पुं० चित्रकार। उदाहरण–किरि कठचीत्र पूतली निज करि चीत्रारै लागी चित्रण।–प्रिथीराज। |
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चित्राल :
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पुं० [?] कश्मीर के पश्चिम का एक पहाड़ी प्रदेश। चितराल। |
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चित्रालय :
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पुं० [चित्र-आलय, ष० त०] चित्रशाला। (दे०)। |
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चित्रावसु :
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स्त्री० [सं०] तारों से शोभित रात। |
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चित्राश्व :
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पुं० [चित्र-अश्व, ब० स०] सत्यवान् का एक नाम। |
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