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चिकन  : पुं० [फा०] एक प्रकार का सूती कपड़ा जिस पर सूई और डोरे के कढ़े हुए उभारदार फूल या बूटियाँ बनी होती है।
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चिकनकारी  : स्त्री० [फा०] कपड़े पर सूई-डोरे की सहायता से उभारदार फूल, बूटियाँ आदि काढ़ने या बनाने की कला काम।
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चिकनगर  : पुं० [फा०] चिकन का काम करनेवाला कारीगर।
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चिकनदोज  : पुं०=चिकनगर।
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चिकना  : वि० [सं० चिक्कण, प्रा० चिक्कण्ण, गु० चिकोणु, मरा० चिक्कण] [वि० स्त्री० चिकनी] १. जिसका ऊपरी तल जरा भी ऊबड़-खाबड़ या खुरदुरा न हो, बल्कि इतना समतल हो कि हाथ फेरने से कहीं उभार न जान पड़े। जैसे–चिकना, पत्थर चिकनी लकड़ी। २. जिसका ऊपरी तल बहुत ही कोमल और समतल हो। जिस पर पैर या हाथ बिना किसी बाधा या रुकावट के आगे बढ़ता या फिसलता जाय। जैसे–चिकनी जमीन, चिकनी मलमल। ३. जिसका ऊपरी तल या रूप बना सँवारकर बहुत ही मोहक और स्वच्छ किया गया हो। जैसे–तुम्हारा यह चिकना मुँह देखकर ही कोई तुम्हें नौकरी देगा। मुहावरा–चिकने घड़े पर पानी पड़ना=अच्छी बातों का उसी प्रकार व्यर्थ सिद्ध होना जिस प्रकार चिकने घड़े पर पानी पड़ना इसलिए व्यर्थ सिद्ध होता है कि वह पानी तुरंत बहकर नीचे चला जाता है। पद–चिकना घड़ा (क) वह जिस पर उपदेश, दंड आदि का कुछ भी प्रभाव न पड़ता हो, फलतः निर्लज्ज या लापरवाह। (उक्त मुहावरे के आधार पर) चिकना-चुपड़ा= (क) घी, तेल आदि अच्छी तरह लगाकर चिकना और साफ करना। (ख) अच्छी तरह सजाया हुआ। (ग) ऊपर से देखने पर बहुत अच्छा जान पड़ने या प्रिय लगनेवाला। जैसे–चिनकी-चुपड़ी बातें। ४. जिस पर घी, चरबी तेल या ऐसा ही और कोई स्निग्ध पदार्थ चुपड़ा या लगा हो। जिसका खुरदरापन या रूखाई किसी प्रकार दूर कर दी गई हो। ५. जिसका ऊपरी रूप केवल दिखाने के विचार से सँवारकर सुन्दर बनाया गया हो। मुहावरा–चिकना देखकर फिसल पड़ना=केवल वैभव, सजावट, सौन्दर्य आदि देखकर मोहित होना। केवल ऊपरी रूप देखकर रीझना। ६. केवल दूसरों को प्रसन्न करने के लिए चिकनी-चुपड़ी अर्थात् मीठी और सुन्दर बातें कहनेवाला। खुशामदी। चाटुकार। ७. अनुराग, प्रेम या स्नेह करनेवाला। (क्व०)। पुं० घी चरबी तेल आदि चिकने पदार्थ। जैसे–इसमें चिकना बहुत अधिक पड़ा है।
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चिकनाई  : स्त्री० [हिं० चिकना+ई(प्रत्य०)] १. चिकने होने की अवस्था या भाव। चिकनापन। चिकनाहट। २. मन, व्यवहार आदि की सरसता या स्निग्धता। ३. घी, तेल आदि चिकने पदार्थ।
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चिकनाना  : स० [हिं० चिकना] १. खुरदरापन दूर करके ऊपरी तल चिकना, सम या साफ करना। २. घी, तेल या कोई चिकना पदार्थ लगाकर रूखापन दूर करना। ३. किसी प्रकार साफ या स्वच्छ करना या बनाना-सँवारना। ४. केवल बिगड़ी हुई बातें बनाने के लिए बनावटी बातें कहना। अ० १. चिनका होना। २. चिकने पदार्थ से युक्त होकर स्निग्ध बनना। ३. शरीर में कुछ चरबी भरने और ऊपर से सँवारे-सजाये जाने के कारण डील-डौल या रूप रंग अच्छा निकलना या बनना। जैसे–जब से उनका रोजगार चला है, तब से बहुत कुछ चिकना गये है। ४. अनुराग स्नेह आदि से युक्त होना। उदाहरण–ज्यों ज्यों रुख रुखो करति त्यों-त्यों चित चिकनाय।–बिहारी।
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चिकनापन  : पुं० [हिं० चिकना+पन (प्रत्यय)] चिकने होने की अवस्था या भाव। चिकनाई। चिकनाहट।
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चिकनावट  : स्त्री० [हिं० चिकना] १. चिकनी-चुपड़ी बातें कहने की अवस्था या भाव। २. बिगड़ा हुआ काम बनाने के लिए मीठी बातें कहने की क्रिया या भाव। जैसे–तुम्हारी यह चिकनाहट हमें अच्छी नहीं लगती। ३. दे० ‘चिकनाहट’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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चिकनाहट  : स्त्री० [हिं० चिकना+हट (प्रत्यय)] चिकने होने की अवस्था या भाव। चिकनापन।
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चिकनिया  : वि० [हिं० चिकना] (व्यक्ति) जो प्रायः या सदा तेल-फुलेल आदि लगाकर और खूब बन-ठनकर रहता हो। छैला और बाँका। सजधजवाला और सुन्दर। उदाहरण–सूरदास प्रभु तजी कामरी अब हरि भय चिकनियाँ।–सूर।
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चिकनी-मिट्टी  : स्त्री० [हिं० चिकनी+मि्टटी] १. एक प्रकार की लसदार मिट्टी जो सिर मलने आदि के काम आती है। करैली मि्टटी। २. पीले या सफेद रंग की वह लसीली मिट्टी जो हाथ धोने तथा जमीन दीवार आदि लीपने-पोतने के काम आती है।
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चिकनी-सुपारी  : स्त्री० [सं० चिक्कणी] एक प्रकार की उबाली हुई बढ़िया सुपारी जो चिपटी और अधिक स्वादिष्ट होती है। चिकनी डली।
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