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घन  : पुं० [सं०√हन् (हिंसा)+अप्, घनादेश] १. मेघ। बादल। २. लोहा पीटने का बहुत बड़ा हथौड़ा। ४. झुंड। समूह। ५. कपूर। ६. अभ्रक। ७. बजाने का बड़ा घंटा। घड़ियाल। ८. एक प्रकार की सुगंधित घास। ९. कफ। श्लेष्मा। १॰. नृत्य का एक प्रकार या भेद। ११. संगीत में धातु का ढला हुआ वह बाजा जो केवल ताल देने के काम आता हो। जैसे–झाँझ, मँजीरा आदि। १२. किसी चीज या बात की अधिकता या यथेष्ठ मान। जैसे–आनन्द-घन। उदाहरण–पवन के घन घिरे पड़ते ये बने मधु अंध।–प्रसाद। 1३. मुख। (डिं०) १४. गणित में किसी अंक को किसी अंक के वर्ग से गुणा करने पर निकलनेवाला गुणनफल। जैसे–४ का घन (४´×१६=) ६४ होगा। १५. पदार्थों के मान का वह रूप जिसमें उनकी लंबाई (या ऊँचाई) चौड़ाई (या गहराई) और मोटाई के कुल विस्तारों का अंतर्भाव होता है। 1६. ज्यामिति में वह पदार्थ जिसके छः समान वर्गित पक्ष हों। १७. वैज्ञानिक क्षेत्रों में, पदार्थ की तीन स्थितियों में से एक जिसमें उसके अणु एक साथ इस प्रकार सटे होते हैं कि वे अलग तथा अकेले क्रियाशील या गतिशील नहीं हो सकते हैं। वि०१. घना (देखें)। पद-घन का=(क) देखने में बहुत अधिक घना जैसे–घन का बादल। (ख) मात्रा या मान में बहुत अधिक। जैसे–घन की विपत्ति। २. (पदार्थ) जिसमें अणु इस साथ एक प्रकार सटे हुए हों कि वे अलग-अलग क्रियाशील या गतिमान न हो सकते हों। ठस या ठोस। ३. भारी। ४. दृढ़। पक्का। पुं०=शत्रुघन।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) उदाहरण–रघुनंदन बिनु बंधु कुअवसर जद्यपि घनु दूसरे हैं।–तुलसी।
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घन-काल  : पुं० [ष० त० ] वर्षा ऋतु। बरसात।
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घन-कोदंड  : पुं० [ष० त०] इन्द्रधनुष।
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घन-क्षेत्र  : पुं० [ष० त०] किसी चीज की गहराई, चौड़ाई और लंबाई का समूचा विस्तार।
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घन-फल  : पुं० [ष० त०] १. वह गुणनफल जो किसी संख्या को उसी संख्या से दो बार गुणा करने से निकलता है। घन। २. वह जो किसी ठोस चीज की लंबाई, चौड़ाई और मोटाई (या गहराई) के मानों को एक दूसरे से गुणा करने पर निकलता है।
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घन-बेला  : पुं० [हिं० घन+बेला] [स्त्री० अल्पा० घन-बेली] एक प्रकार के बेले का पौधा और उसका फूल।
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घन-मान  : पुं० [ष० त०] किसी वस्तु की लंबाई, चौड़ाई और मोटाई का सम्मिलित मान। (क्यूब मेजर)।
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घन-मूल  : पुं० [ष० त०] गणित में किसी घन (राशि) का मूल अंक। (क्यूब रूट) जैसे–२७ का घन-मूल ३ होता है, क्योकि ३ को ३ से दो बार गुणा करने पर ही २७ होता है।
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घन-रस  : पुं० [ष० त०] १. जल। पानी। २. कपूर। ३. हाथियों का एक रोग जिसमें उनका खून बिगड़ जाता और नाखून गलने लगते हैं।
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घन-वर्धन  : पुं० [तृ० त०] [वि० घनवर्धनीय, भाव० घनवर्धनीयता] धातुओं आदि को हथौड़े से पीटकर बढ़ाना।
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घन-वाह  : पुं० [घनं√वह (ले जाना)+णिच्+अण्,उप० स०] वायु।
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घन-वाही  : स्त्री० [हिं० घन+वाही(प्रत्यय)] १. किसी चीज को घन या हथौड़े से कूटने का काम। घन चलाना। २. वह गड्ढा या स्थान जहाँ खड़े होकर घन (हथौड़ा) चलाया जाता है।
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घन-श्याम  : वि० [उपमि० स०] जिसका रंग बादल के समान श्याम हो। हल्का नीलापन लिये हुए काला। पुं० १. काला बादल। २. श्रीकृष्ण का एक नाम।
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घन-सार  : पुं० [ष० त०] १. कपूर। २. चंदन। ३. जल। ४. सुंदर बादल। ५. [ब० स०] पारा।
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घनक  : स्त्री० [सं० घन] १. गर्जन। २. गड़गड़ाहट। ३. चोट। प्रहार।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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घनकना  : अ० [हिं० घनक] जोर की आवाज करना। गरजना। स० चोट या प्रहार करना।
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घनकफ  : पुं० [ष० त०] ओला।
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घनकारा  : वि० [हिं० घनक] ऊँची आवाज करने या गरजने वाला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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घनगरज  : स्त्री० [हिं० घन+गर्जन] १. बादल के गरजने की ध्वनि। २. खुभी की जाति का एक छोटा पौधा जिसकी तरकारी बनती है। ढिंगरी। ३. एक प्रकार का तोप।
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घनघटा  : स्त्री० [हिं० घन+घटा] बादलों की गहरी या घना घटा।
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घनघनाना  : अ० [अनु०] घन घन शब्द होना। घंटे की ऐसी ध्वनि निकलना। स० घन-घन शब्द उत्पन्न करना।
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घनघनाहट  : स्त्री० [अनु०] घन-घन शब्द निकलने की धव्नि या भाव।
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घनघोर  : वि० [हिं० घन+घोर] १. बहुत अधिक घना। जैसे–घनघोर बादल। २. भीषण या विकट। जैसे–घनघोर युद्ध। ३. (कलन या गणित) जिसमें लंबाई, चौड़ाई और मोटाई तीनों का योग या विचार हों। (क्यूब)। पुं० १. तुमुलनाद । भीषण ध्वनि। २. बादलों की गरज।
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घनचक्कर  : पुं० [हिं० घन+चक्र] १. वह व्यक्ति जिसकी बुद्धि सदा चंचल रहे। बहुत चंचल बुद्धि का आदमी। २. बेवकूफ। मूर्ख। ३. वह जो बराबर इधर-उधर व्यर्थ घूमता फिरे। ४. जंजाल। झंझट। ५. एक प्रकार की आतिशबाजी जो चक्कर के रूप में होती और बहुत जोर का शब्द करती है। ६. सूरजमुखी (पौधा और फूल)।
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घनता  : स्त्री० [सं० घन+तल्-टाप्] १. घने होने की अवस्था या भाव। घनापन। २. अणुओं आदि की पारस्परिक ठोस गठन। ठोसपन। ३. दृढ़ता। मजबूती। ४. किसी पदार्थ की सारी लंबाई, चौड़ाई और मोटाई का समूह।
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घनताल  : पुं० [सं० घनता√अल् (पर्याप्ति)+अच्] १. चातक। पपीहा। २. [घन-ताल, कर्म० स०] करताल की तरह का एक बड़ा बाजा।
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घनतोल  : पुं० [सं० घन√तुल् (तोलना)+अणु, उप० स०] चातक। पपीहा।
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घनत्व  : पुं० [सं० घन+त्व]=घनता।
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घननाद  : पुं० [ष० त०] १. बादलों की गरज। २. मेघनाद (रावण का पुत्र)।
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घनपति  : पुं० [ष० त०] मेघों के अधिपति, इन्द्र।
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घनप्रिय  : वि० [ब० स० वा ष० त०] बादल जिसे प्रिय हों अथवा जो बादलों का प्रिय हो। पुं० १. मोर। मयूर। २. मोरशिखा नाम की घास।
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घनबहेड़ा  : पुं० [हिं० घन+बहेड़ा] अमलतास।
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घनबान  : पुं० [हिं० घन+बाण] १. एक प्रकार का बाण।
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घनवाहन  : पुं० [ब० स०] इन्द्र, जिसका वाहन मेघ माना गया है।
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घनहर  : पुं० [सं० घन=बादल] बादल। मेघ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घनहस्त  : वि० [ब० स०] जो लंबाई, चौड़ाई और मोटाई या गहराई तीनों आयामों में एक-एक हाथ भर हो। पुं० १. क्षेत्र या पिंड जो एक हाथ लंबा, एक हाथ चौड़ा और एक हाथ गहरा या मोटा हो। २. अन्न आदि नापने का एक पुराना मान जो एक हाथ लंबा, एक हाथ चौड़ा और एक हाथ गहरा होता था। खारी। खारिका।
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घना  : वि० [सं० घन] [स्त्री० घनी] १. (वस्तु) जिसके विभिन्न अंश, अवयव या कण इस प्रकार आपस में मिल या सट गये हों कि वह अविभिन्न समूह जान पड़े। जैसे–घना कोहरा,घना बादल। २. (अवकाश या स्थान) जिसमें बहुत सी वस्तुएँ सट-सटकर खड़ी, पड़ी या रहती हों। जैसे–घना जंगल, घना शहर। ३. (वस्त्र आदि) जिसकी बुनावट के ताने-बाने आपस में खूब सटे हो। गफ। गझिन। ४. जिसमें गाढ़ता या प्रखरता बहुत अधिक हो। जैसे–घना अंधकार, घनी नीलिमा। ५. जिसमें आपसदारी या समीपता बहुत अधिक हो घनिष्ठ। गहरा। जैसे–घना संबंध। ६. बहुत अधिक। अतिशय। जैसे–घनी पीड़ा। जैसे–जिनके लाड़ बहुतेरे, उनके दुःख भी घनेरे। (कहा०) स्त्री० [सं० गन+अच्-टाप्] १. माषपर्णी। २. रूद्रजटा। जटाधारी लता। ३. एक प्रकार का पुराना बाजा।
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घनाकर  : पुं० [घन-आकार, ष० त०] वर्षाऋतु।
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घनाक्षरी  : स्त्री० [घन-अक्षर, ब० स० ङीष्] एक वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में ३१ वर्ण होते हैं और अंत में प्रायः गुरु वर्ण होता है। इसे कवित्त भी कहते हैं।
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घनागम  : पुं० [घन-आगम, ष० त०] वर्षाऋतु का आरम्भ।
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घनाघन  : पुं० [सं०√हन्(हिंसा)+अच्, नि० सिद्धि] १. देवताओं का राजा इंद्र। २. बरसनेवाला बादल। उदाहरण–गगन अंगन घनाघन ते सघन तम।–सेनापति। ३. मस्त हाथी। क्रि० वि० लगातार घन-घन शब्द करते हुए।
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घनांजनी  : स्त्री० [घन-अंजन, ब० स० ङीष्] दुर्गा।
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घनांत  : पुं० [घन-अंत, ब० स०] वर्षा की समाप्ति पर आनेवाली शरद् ऋतु।
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घनात्मक  : वि० [सं० घन-आत्मन्, ब० स० कप्] १. (पदार्थ) जिसकी लंबाई, चौडाई और मोटाई या गहराई बराबर हो। २. (क्षेत्रफल) जो लंबाई, चौड़ाई और मोटाई को गुणा करने से निकला हो।
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घनात्यय  : पुं० [घन-अत्यय, ब० स०]=घनांत।
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घनानंद  : पुं० [घन-आनंद,ब० स० ] गद्य काव्य का एक भेद।
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घनामय  : पुं० [घन-आमय, ब० स०] खजूर।
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घनाली  : स्त्री० [सं० घन-अवली] बादलों की पंक्ति या समूह। उदाहरण–चंचला थी चमकी घनाली घहराई थी।–मैथिलीशरण।
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घनाश्रय  : पुं० [घन-आश्रय, .ष० त०] आकाश।
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घनिष्ठ  : वि [सं० घन+इष्ठन्] जिसके साथ बहुत अधिक या घना हेल-मेल, मित्रता, संबंध या सहचार हो। जैसे–घनिष्ठ मित्र।
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घनिष्ठता  : स्त्री० [सं० घनिष्ठ+तल्-टाप्] १. घनिष्ठ होने की अवस्था,गुण या भाव। २. वह स्थिति जिसमें दो व्यक्तियों में पारस्परिक इतना मेल या स्नेह होता कि वे एक दूसरे के सुख-दुःख को अपना सुख-दुःख समझने लगते हैं।
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घनीभवन  : पुं० [सं० घन+च्वि ईत्व√भू (होना)+ल्युट-अन] किसी तरल या द्रव पदार्थ का जमकर गाढ़ा, घना या ठोस होना।
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घनीभाव  : पुं० [सं० घन+च्वि,ईत्व√भू+घञ्] =घनीभवन।
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घनीभूत  : भू० कृ० [सं० घन+च्वि, ईत्व√भू+क्त] १. जो गाढ़ा होकर या जमकर घना हो गया हो। २. जो किसी प्रकार बढ़कर बहुत अधिक या घोर हो गया हो। जैसे–जो घनीभूत पीड़ा थी।–प्रसाद।
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घनेतर  : वि० [घन-इतर,पं० त०] १. जो घन न हो, बल्कि उससे भिन्न हो। २. तरल।
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घनेरा  : वि० [हिं० घना] १. मान, संख्या आदि में बहुत अधिक या बहुत सा। २. घना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घनोदधि  : पुं० [घन-उदधि, ब० स०] एक नरक।
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घनोदय  : पुं० [घन-उदय,ब० स०] वर्षाऋतु का आरम्भ।
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घनोपल  : पुं० [घन-उपल, ष० त०] ओला।
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घन्नई  : स्त्री० दे० ‘घड़नई’।
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