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शब्द का अर्थ
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गोश :
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पुं० [फा०] सुनने की इंद्रिय। कान। |
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समानार्थी शब्द-
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गोश-गुजार :
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वि० [फा०] किसी के कानों तक पहुँचाया हुआ। (विवरण या समाचार)। |
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गोशपेंच :
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पुं० [फा०] कान में पहनने का एक प्रकार का गहना। |
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गोशम :
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पुं० दे० ‘कोसम’। |
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गोशमायल :
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पुं० [फा०] मोतियों का वह गुच्छा जो कान के पास लटकाया जाता था। |
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गोशमाली :
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स्त्री० [फा०] १. किसी को दंड देने के लिए उसके कान उमेठना या मलना। २. चेतावनी मिली हुई भर्त्सना। ताड़ना। |
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गोशवारा :
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पुं० [फा०] १. खंजक नामक पेड़ का गोंद जो मस्तगी का सा होता है और मस्तगी ही की जगह काम में लाया जाता है। २. कान में पहनने का कुंडल या बाला। ३. ऐसा बड़ा मोती जो सीप में से अकेला ही निकला हो। ४. कलगी। तुर्रा। ५. कलाबत्तू या बना हुआ पगड़ी का आँचल जो प्रायः झब्बे के रूप में कान के पास लटकता है। ६. संख्याओं का योग। जोड़। ७. वह संक्षिप्त लेखा जिसमें हर मद का आय-व्यय अलग अलग दिखाया गया हो। ८. पंजी, बही आदि में भिन्न मदों या विभागों का शीर्षक। |
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गोशा :
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पुं० [फा० गोशः] १. अंतराल। कोण। कोना। २. एकान्त स्थान। ३. कमान की नोक। धनुष की कोटि। ४. ओर। दिशा। |
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गोशा-नसीन :
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वि० [फा०] [भाव० गोशा-नशीनी] घर–गृहस्थी या संसार से विरक्त होकर एकान्त वास करनेवाला। |
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गोश्त :
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पुं० [फा०] १. शरीर के अंदर का मांस। २. मारे हुए पशु का मांस जो लोग खाते हैं। जैसे–बकरी या भेंड़ का गोश्त। |
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