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किनारा  : पुं० [फा० किनारः] [स्त्री० अल्पा० किनारी] १. किसी चीज या चौड़ाई की लंबाई के बल का वह सारा विस्तार जहाँ उस चीज का अंत होता है। किसी ओर का अंतिम सादा सिरा। जैसे—खेत, चौकी या तख्ते का किनारा। २. अधिक लंबी और कम चौड़ी वस्तु के वे दोनों सिरे, जहाँ उसकी चौड़ाई का अंत होता है। लंबाई के बल का सारा विस्तार या सिरा। जैसे—चादर या धोती का किनारा,नदी का किनारा। ३. किसी वस्तु के समूचे विस्तार का वह भाग जहाँ किसी दिशा में उसके विस्तार का अंत होता है। जैसे—पैसे या रुपए का किनारा,समुद्र का किनारा। मुहावरा—किनारे पहुँचना=अंत या समाप्ति के पास पहुँचना। किनारे लगाना-पूर्णता या समाप्ति तक पहुँचाना जैसे—इतने दिनों बाद आपने ही यह काम किनारे लगाया है। (किसी व्यक्ति को) किनारे लगाना=कष्ट या संकट से किसी का उद्धार या मुक्ति करना। ४. बगल। पार्श्व। मुहावरा—किनारा खींचना=संबंध तोड़कर अलग या दूर होना। किनारे न जाना-कुछ भी संपर्क या संबंध न रखना। किनारे बैठना या होना-बिना कोई सबंध रखे अलग या दूर रहना। ५. कपड़ों आदि में चौड़ाई का वह अंतिम विस्तार जिस पर शोभा या सजावट के लिए कुछ अलग प्रकार या रंग की बनावट अथवा बेल-बूटे आदि होते हैं। हाशिया। (बार्डर)।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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