शब्द का अर्थ
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इक :
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वि० =एक।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
इकइस :
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वि० =इक्कीस।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
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इकंक :
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अव्य० [हिं० एक+अंक] निश्चित रूप से। निश्चय ही।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
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इकंग :
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वि० [सं० एकाग्ङ] एक अंगवाला। एकांगी। पुं० [सं० एकाग्ङ] शिव।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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इकटा :
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वि० [हिं० एक+टा० प्रत्यय] [स्त्री० इकटी] १. पहला। २. इकहरा। उदाहरण—इकुटी बिकुटी त्रिकुटी संधि।—गोरखनाथ। |
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इकट्ठा :
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वि० [सं० एकस्थ, प्रा० एकट्ठी] [स्त्री० इकट्ठी] एक स्थान पर जमा किया या रखा हुआ। एकत्र किया हुआ। जैसे—घर में कूड़ा करकट इकट्ठा करना। अव्य० एक बार में। एक साथ। जैसे—सारा ऋण इकट्ठा चुकाना। |
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इकंत :
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अव्य० [सं० एकांत] १. एकांत या निराले में। २. अच्छी तरह ध्यान देकर या टक लगाकर। एक-टक होकर। उदाहरण—मदन लाज बस तिय-नयन देखत बनत इकंत।—पद्याकर। पुं० =एकांत।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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इकतर :
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वि० =एकत्र।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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इकतरा :
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पुं० [सं० एकांतर] एक एक दिन के अंतर पर होनेवाला ज्वर। अँतरिया। अँतरा। |
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इकता :
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स्त्री० =एकता।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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इकताई :
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स्त्री० [सं० एकता] १. एकता। २. एकांत-प्रियता।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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इकतान :
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वि० [हिं० एक+तान] १. एक-सा। एक-रस। २. शांत और स्थिर।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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इकतार :
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वि० [हि०+तार] एक-रस। एक समान। उदाहरण—हरिके केसन सों सटी लसतर इकतार।—व्यास। |
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इकतारा :
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पुं० [हिं० एक+तार] [स्त्री० अल्पा० इकतारी] १. सितार की तरह का एक बाजा जिसमें एक ही तार रहता है। २. हाथ से बुना जानेवाला एक प्रकार का कपड़ा। |
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इकताला :
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पुं० [हिं० एक+ताल] संगीत में एक प्रकार का ताल। |
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इकतीस :
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वि० [सं० एकत्रिंशत्, पा० एकतीसा] जो गिनती में तीस और एक हो। पुं० इकतीस का सूचक अंक। ३१। |
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इकत्र :
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अव्य० =एकत्र। |
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इकन्नी :
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स्त्री० =एकन्नी। |
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इकबारगी :
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अव्य० =एकबारगी। |
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इकबाल :
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पुं० [अ०] १. स्वीकार करने की क्रिया या भाव। कबूल करना। २. प्रताप। ३. भाग्य ४. धन-संपत्ति। वैभव। |
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इकरदन :
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पुं० =एकरदन। |
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इकराम :
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पुं० - [अ० करम (अनुग्रह) का बहु०] अनेक प्रकार के अनुग्रह या कृपाएं, विशेषतः प्रतिष्ठा या सम्मान की वृद्धि करनेवाले अनुग्रह। |
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इकरार :
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पुं० [अ०] १. किसी को कोई काम करने या किसी बात का वचन देना। २. इस प्रकार दिया हुआ वचन। प्रतिज्ञा। वादा। ३. कोई बात मान लेना। स्वीकृति। |
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इकरारनामा :
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पुं० [अ० इकरार+फा० नामः] अनुबंध-पत्र। |
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इकरारी :
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वि० [अं०] १. इकरार संबंधी। इकरार का। २. इकरार करने (मान लेने या वचन देने) वाला। |
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इकलंत :
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वि० =अकेला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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इकला :
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वि० =अकेला। |
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इकलाई :
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स्त्री० [हिं० एक+लाई या लोई-परत] १. एक पाट का महीन और बढ़िया दुपट्टा। २. ऐसी चीज जो जोड़ी या जोड़े के रूप में नहीं, बल्कि अकेली या एक-एक करके बनती और बिकती हो। जैसे—इकलाई की धोती या साड़ी। अकेलापन। |
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इकलोई :
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वि० [हिं० एक+लोई-पर्त] एक ही लोई (चादर या परत) से बना हुआ। जैसे—इकलोई कड़ाही। |
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इकलौता :
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वि० [हिं० इकला+ऊत(पूत)] [स्त्री०इकलौती] (वह लड़का) जो अपने माँ-बाप का एक ही हो, अर्थात् जिसके और कोई भाई या बहन न हो। |
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इकल्ला :
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वि० [हिं० एक+ला(प्रत्यय)] १. अकेला। २. इकहरा। |
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इकवाई :
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स्त्री० [हिं० एक+वाहु] एक तरह की निहाई। स्त्री० [?] जो गिनती में तीन हो। तीन। (दलाल)। |
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इकस :
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स्त्री० [अ० अक्स] १. ईर्ष्या या द्वेष। २. लालसा। उदाहरण—मन री मन रै माँहि अकबर रै रहगी इकस।—दुरसाजी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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इकसठ :
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वि० [सं० इकषष्टि, पा० एकसट्ठि] जो गिनती में साठ और एक हो। पुं० इकसठ का सूचक अंक। ६१। |
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इकसर :
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वि० [हिं० एक+सर(प्रत्यय)] अकेला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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इकसरि :
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वि० स्त्री० =अक्सीर। |
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इकसूत :
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वि० [सं० एकश्रुत-लगातार] एक में मिला हुआ। एक साथ। क्रि० वि० निरंतर। लगातार।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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इकहरा :
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वि० [हिं० एक+धरा(हरा)प्रत्यय] [स्त्री०इकहरी] एक ही परतवाला। एकहरा। |
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इकहाई :
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क्रि० वि० [हिं० एक+हाई(प्रत्यय)] १. एक ही बार में। एक दम। एक बारगी। २. तत्काल। तुरंत। ३. अचानक। सहसा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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इकहाऊ :
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अव्य० =इकहाई।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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इकाई :
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स्त्री० [हिं० एक+आई (प्रत्यय)] १. गिनती या संख्या में एक होने की अवस्था या भाव। २. गणित में, पहला और सबसे छोटा पूर्णाक जो एक है। ३. संख्याएँ लिखने के क्रम में वह अंतिम स्थान जहाँ 9 या उससे कम के सूचक अंक लिखे जाते हैं। जैसे—यदि हम लिखें ५७२ तो इसमें का ५ सैकड़ेवाले के स्थान पर, ७ दहाईवाले स्थान पर और २ इकाई वाले स्थान पर लिखा हुआ कहलावेगा। ४. किसी पूरे मान, वर्ग या समूह का कोई ऐसा अंग या भाग जो विश्लेषण के काम के लिए किसी प्रकार अलग और स्वतंत्र माना या समझा जाता हो। जैसे—(क) हमारा समाज वास्तव में बहुत से व्यक्तियों की इकाइयों से बना है। (ख) पैर, मुँह, हाथ अथवा खून, चमड़ा, हड्डी आदि हमारे शरीर की इकाइयाँ है। ५. कोई ऐसी मात्रा या मान जो किसी प्रकार की नाप-जोख के लिए मानक मान लिया गया हो और जिसका गुणा या विभाग करके उस वर्ग के शेष सभी मात्राएं या मान सूचित अथवा स्थिर किये जाते हों। (यूनिट, उक्त सभी अर्थों के लिए) जैसे—यदि कोई कपड़ा १0 गिरह लंबा हो तो गिरह उसकी इकाई होगी और यदि कोई दीवार २0 गज लंबी हो तो गज उसकी इकाई कहलावेगा। अथवा जब हम कहेंगे-पचास अठन्नियाँ (या इकन्नियाँ) तब अठन्नी (या इकन्नी) इकाई होगी। |
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समानार्थी शब्द-
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इकांत :
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वि० =एकांत।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
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इकार :
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पुं० [सं० इ+कार] देवनागरी वर्णमाला का तीसरा स्वर ‘इ’। |
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इकारांत :
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वि० [इकार-अंत, ब० स०] (शब्द) जिसके अंत में ‘इ’ हो। |
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इकेला :
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वि० =अकेला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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इकैठ :
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वि० [सं० एकस्थ, पा० एकट्ठ] इकट्ठा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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इकोतर :
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वि० =एकोतर। वि० [सं० एकोत्तर] (नियत संख्या से) एक अधिक। जैसे—इकोत्तर सौ।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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इकोतर सौ :
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पुं० [सं० एकोत्तर शत] वह जो गिनती में एक सौ से एक अधिक हो। वि० एक सौ एक। |
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इकौंज :
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स्त्री० [सं० एक (इक)+बन्ध्या (हिं० बाँझ) अथवा एक+जा] वह स्त्री जो एक बार प्रसव करने के उपरांत फिर और संतान का प्रसव न करे। काक। बंध्या। |
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इकौना :
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पुं० [हिं० एक+बनना] बिना चुना या छाँटा हुआ अन्न। वि० [हिं० एक] [स्त्री० इकौनी] अनुपम। बेजोड़।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
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इकौसा :
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वि० [हिं० एक+वास] [स्त्री० एकौंसी] १. जहाँ कोई न हो। एकांत। २. जिसके साथ कोई न हो। अकेला। ३. अलग। पृथक्। उदाहरण—ह्वे रहे इकौसे हौ न जानौ कौन हेत है।—सेनापति।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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इकौसा :
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वि० =इकौसा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
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इक्कट :
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पुं० [सं०√क्विप्-इत्-कट (ब० स०) पृषो० त को क] सरकंडे की जाति की एक वनस्पति जिससे चटाइयाँ आदि बनती हैं। |
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समानार्थी शब्द-
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इक्कबाल :
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पुं० [अ० इकबाल] ताजक ज्योतिष का एक ग्रहयोग जो प्रताप और वैभव बढ़ाने वाला कहा गया है। |
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इक्का :
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वि० [सं० एक] १. अकेला। पद—इक्का-दुक्का=जो या तो अकेला हो या जिसके साथ कोई एक और हो। अकेला-दुकेला। २. अनुपम। बेजोड़। पुं० १. एक प्रकार की छोटी सवारी जिसमें केवल एक घोड़ा जोता जाता है। २. ताश का वह पत्ता जिसमें केवल एक बूटी बनी होती है। ३. युद्ध में अकेला लड़नेवाला योद्धा। ४. ऐसा पशु जो अपने झुंड से छूटकर अलग हो गया या अकेला पड़ गया हो। ५. काम में पहनने की एक प्रकार की बाली। |
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समानार्थी शब्द-
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इक्कावन :
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वि० पुं० =इक्यावन। |
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समानार्थी शब्द-
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इक्कासी :
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वि० पुं० =इक्यासी। |
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इक्की :
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स्त्री० [सं० एक+ई (प्रत्यय)] ताश का वह पत्ता जिसमें केवल एक बूटी बनी हो। इक्का। |
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इक्कीस :
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वि० [सं० एकविंशत्, प्रा० एक्कवीस] १. जो गिनती में बीस और एक हो। २. (किसी की अपेक्षा) अधिक अच्छा। श्रेष्टतर। उदाहरण—तुलसी तेहि औसर लावनिता दस, चारि, नौ, तीनि इकीस सबै।—तुलसी।पुं० बीस और एक की सूचक संख्या। २१। |
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इक्षु :
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पुं० [सं०√इष्(गति)+कुसु] [भाव०इक्षुता] १. ईख। गन्ना। २. कोकिला वृक्ष। ३. इच्छा। |
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इक्षु-कांड :
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पुं० [ष० त०] १. गन्ने का डंठल। २. काँस। ३. मूँज। ४. राम शर। |
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इक्षु-दंड :
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पुं० [ष० त०] १. ईख का डंठल। २. ईख। ऊख। |
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इक्षु-पाक :
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पुं० [ष० त०] गुड़ जो ईख का रस पकाने से बनता है। |
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समानार्थी शब्द-
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इक्षु-प्रमेह :
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पुं० [मध्य० स०] मधुमेह। (दे०)। |
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समानार्थी शब्द-
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इक्षु-मेह :
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पुं० [मध्य० स०] मधु-मेह। (दे०)। |
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समानार्थी शब्द-
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इक्षु-रस :
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पुं० [ष० त०] १. ईख या गन्ने का रस। २. काँस। |
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इक्षु-शर्करा :
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स्त्री० [मध्य० स०] ईख या गन्ने के रस से बनी हुई चीनी। (केन शूगर, सर्कोज)। |
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इक्षु-सार :
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पुं० [ष० त०] ईख के रस से तैयार की हुई कोई चीज। जैसे—गुड़, चीनी, मिसरी आदि। |
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इक्षुगंधा :
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स्त्री० [सं० इक्षुगंध+टाप्] १. गोखरू। २. तालमखाना। ३. काँस। ४. सफेद विदारी-कंद। ५. सफेद भूमि कुष्मांड। |
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इक्षुज :
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वि० [सं० इक्षु√जन् (प्रादुर्भाव)+ड] (पदार्थ) जो गन्ने के रस से बना हो। |
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इक्षुमती :
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स्त्री० [स० इक्षु+मतुप्-ङीष्] (फर्रुखाबाद के पास की) ईखन नदी का पुराना नाम। |
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इक्षुमालिनी :
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स्त्री० [सं० इक्षिमाला+इनि-ङीष्] इंद्र पर्वत से निकलने वाली एक नदी। (पुराण)। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
इक्षुर :
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पुं० [सं० इक्षु√रा(देना)+क] १. गोखरू। २. तालमखाना। |
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इक्षुविदारी :
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स्त्री० [उपमि० स०] विदारीकंद। |
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इक्ष्वाकु :
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पुं० [सं० इक्षु-आ√कृ (करना)+डु] १. एक प्रसिद्ध सूर्यवंशी राजा जो वैवस्तव मनु के पुत्र कहे गए हैं और जिनके वंश में रामचंद्र हुए थे। २. उक्त राजा के वंशज जो एक वीर जाति के रूप में प्रसिद्ध हुए थे। ३. तितलौकी। कड़ुई लौकी। |
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समानार्थी शब्द-
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