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शब्द का अर्थ
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आढ :
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स्त्री० [?] एक प्रकार की मछली। वि० [सं० आढ्यक] कुशल। दक्ष। स्त्री० [हिं० आड़ ?] १. बीच में पड़नेवाला अंतर या विस्तार। २. टाल-मटोल। बहाने-बाजी। ३. दे० आड़। पुं० =आढ़क। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
आढक :
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पुं० [सं० आ√ढौक (देखना)+घञ्, पृषो० सिद्धि] १. चार सेर की एक तौल। २. नापने का काठ का वह पात्र जिसमें चार सेर अनाज आता है। ३. अरहर। ४. गोपी चंदन। |
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समानार्थी शब्द-
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आढ़की :
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स्त्री० [सं० आ√ढौक्+अच्, पृषो० अकार आदेश, ङीष्] १. अरहर। २. गोपी चंदन। |
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आढ़त :
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स्त्री० [सं० अट्ट, प्रा० आड़हति, पा० आड़हइ, पं० बँ० मरा० आड़त, तेल० अड़िति] १. व्यवसाय की वह प्रथा जिसमें व्यवसायी दूसरे का माल अपने यहाँ थोक ब्रिकी के लिए रखता और उनकी ब्रिकी होने पर कुछ नियत धन अपने लिए लेता है। २. वह धन जो उक्त व्यवसाय में व्यवसायी को पारिश्रमिक या लाभ के रूप में मिलता है। ३. वह स्थान जहाँ बैठकर कोई व्यक्ति उक्त प्रकार का व्यवसाय करता है। ४. किसी कुटनी का वह स्थान जहाँ दुश्चरित्रा स्त्रियाँ चोरी से पहुँचकर धन के लोभ से व्यभिचार कराती हैं। |
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आढ़तदार :
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पुं० [हिं० आढ़त+फा० दार(प्रत्यय)]-आढ़तिया। |
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समानार्थी शब्द-
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आढ़तिया :
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पुं० [हिं० आढ़त+इया (प्रत्यय)] वह जो आढ़त का काम करता हो। |
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आढ़्य :
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वि० [सं० आ√ध्यै (चिंतन करना)+क, पृषो० सिद्धि] १. किसी चीज या बात से पूरी तरह से युक्त। जैसे—धनाढ्य गुणाढ्य आदि। २. धनी। संपन्न। |
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आढ्यक :
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पुं० [सं० आढ्य] धन-राशि। |
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आढ्यंकर :
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वि० [सं० आढ्य√कृ (करना)+ट,मुम्] गरीब को धन देकर धनी बनानेवाला। |
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