शब्द का अर्थ
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अलग :
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वि० [सं० अलग्न, प्रा० अलंग] १. जो किसी के साथ जुड़ा, मिला, लगा या सटा न हो। पृथक्। जैसे—उँगली कटकर अलग हो गयी। २. गुण, प्रकार रूप आदि के विचार से औरों से भिन्न। विशिष्ट। जैसे—आपकी राय तो सदा सबसे अलग होती है। ३. जिसका संपर्क या संबंध न हो या न रह गया हो। दूर हटा हुआ। जैसे घर से अलग, झगड़ों से अलग, नौकरी से अलग आदि। ४. राशि, समूह आदि में से निकालकर एक ओर रखा या लाया हुआ। जैसे—(क) अपनी पुस्तक अलग कर लो। (ख) सौ रुपये अलग रखे हैं। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अलगंगीर :
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पुं० दे० ‘अरकगीर’। |
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अलगंट :
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क्रि० वि० [हिं० अलग] बिना दूसरों से कोई संबंध रखें। वि० १. अकेला। २. नारला। बेजोड़। |
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अलगनी :
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स्त्री० [सं० आलग्न] दोनों सिरों पर बँधी हुई वह आड़ी रस्सी या बाँस जिस पर कपड़े आदि लटकाये जाते है। |
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अलगरज :
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क्रि० वि० [अ० अलगरज] गरज (तात्पर्य या सांराश) यह कि। वि० दे० ‘अलगरजी’। |
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अलगरजी :
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वि० [अ०] १. जिसे गरज या परवाह न रह गई हो। बेपरवाह। २. जो स्वभावतः किसी की परवाह न करता हो। लापरवाह। ३.अपने स्वार्थ साधन में पक्का। परम स्वार्थी। स्त्री० १. बेपरवाही। २. लापरवाही। ३. स्वार्थपरता।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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अलगर्द :
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पुं० [√लग्(संग)+क्विप्√अर्द (हिंसा)+अच्० न० त०] पानी में रहनेवाला एक प्रकार का साँप। |
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अलगा-गुजारी :
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स्त्री० [हिं० अलग+फा० गुजारी] १. अलग-अलग करने या होने की क्रिया या भाव। २. परिवार के सदस्यों, मित्रों या हिस्सें दारों में मत-भेद, लड़ाई-झगड़ा आदि होने के कारण सबके अंश अलग-अलग होने की क्रिया या भाव। |
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अलगाउ :
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वि० [हिं० अलगाना] अलग करने या रखनेवाला। |
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अलगाना :
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स० [हिं० अलग] अलग या पृथक् करना। |
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अलगाव :
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पुं० [हिं० अलग] अलग होने की अवस्था, क्रिया या भाव। |
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अलगोजा :
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पुं० [अ०] एक प्रकार की बाँसुरी। |
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अलगौझा :
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पुं०=अलगा-गुजारी। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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