शब्द का अर्थ
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अपु :
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अव्य० [हिं० अपना<सं० आत्मनः] १. आप। स्वयं। २. आपस में। उदाहरण—रचि महाभारत कहूँ लरावत अपु में मैया-भैया।—सत्यनारायण। पुं० -दे० ‘आपस’।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
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अपुट्ठना :
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अ० [सं० आपृष्ठ] पीछे लौटना। वापस आना। |
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अपुण्य :
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वि० [सं० न० त०] १. जो पुण्य या पवित्र न हो। अपवित्र। २. बुरा। पुं० १. पुण्य का अभाव या विरोधी भाव। २. पाप। |
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अपुत्र :
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वि० [सं० न० ब०] १. जिसे पुत्र न हो। निःसंतान। २. =कुपुत्र।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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अपुत्रक :
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वि० [न० ब० कप्] [स्त्री० अपुत्री]=अपुत्र। |
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अपुत्रिक :
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पुं० [सं० न० ब०कप्, ह्रस्व ?] वह व्यक्ति जिसे पुत्र न हो, केवल ऐसी पुत्री हो जिसको लड़का न हो। विशेष—धर्म-शास्त्र के अनुसार ऐसी लड़की इसी लिए पुत्र के स्थान पर ग्रहण नहीं की जा सकती है। (दे० ‘पुत्रिका’) |
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अपुत्रिका :
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स्त्री० [सं० न० ब०कप्-टाप्, इत्व] अपुत्रक पिता की ऐसी पुत्री जिसके आगे लड़का न हो और इसी लिए जो पिता की संपत्ति की उत्तराधिकारिणी न हो सकती हो। |
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अपुनपौ :
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पुं०=अपनपौ।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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अपुब्ब :
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वि०=अपूर्व।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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अपुराण :
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वि० [सं० न० त०] जो पुराना न हो। फलतः आधुनिक या नया। |
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अपुरुष :
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वि० [सं० न० त०] १. जो पुरुष न हो। २. (कार्य या बात) जो मानव धर्म के अनुरूप या उपयुक्त न हो। ३. अमानुषिक। |
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अपुवै :
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अव्य० [हिं० अपु+वै (प्रत्यय)] १. आप ही। स्वयं। २. आप ही आप। स्वतः। |
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अपुष्कल :
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वि० [सं० न० त०] १. जो पुष्कल या बहुत न हो। छोड़ा। २. श्रेष्ठ न हो। ३. नीचा। निम्न। |
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अपुष्ट :
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वि० [न० त०] १. जो पुष्ट न हो। २. जिसका पालन-पोषण अच्छी तरह से न हुआ हो। ३. मंद। (स्वर)। ४. (कथन या तथ्य) जिसकी पुष्टि न हुई हो। |
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अपुष्पफल :
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वि० [सं० अपुष्य, न० ब०अपुष्प-फल,ब० स०] (वृक्ष) जो बिना फूले ही फल देता हो। जैसे—कटहल, गूलर आदि। पुं० उक्त प्रकार का वृक्ष या उसका फल। |
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