शब्द का अर्थ
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अपल :
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वि० [सं० न० ब०] १. पल-रहित। २. मांस-रहित। निरामिष। वि० दे० ‘अपलक’। पुं० [अप√ला (लेना)+क] अर्गल। |
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अपलक :
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वि० [सं० अ=नहीं+फलक] जिसकी पलकें न गिरें। जो टक लगाकर देख रहा हो। क्रि० वि० बिना पलकें गिराये या झपकाये। एकटक। |
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अपलक्षण :
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पुं० [सं० प्रा० स०] १. अशुभ या बुरा लक्षण या चिन्ह। २. दोष। ३. साहित्य में, किसी चीज का बतलाया जानेवाला ऐसा लक्षण जिसमें अतिव्याप्ति या अव्याप्ति दोष हो। दूषित या त्रुटिपूर्ण लक्षण। |
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अपलाप :
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पुं० [सं० अप√लप् (कहना)+घञ्] १. व्यर्थ की बकबक। बकवाद। २. प्रसंग टालने के लिए इधर-उधर की बातें कहना। बात बनाना। ३. जान-बूझकर कोई बात न कहना। बात का छिपाव या दुराव। |
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अपलापिका :
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स्त्री० [सं० अप√लप् (इच्छा)+ण्वुच्-अक] [वि० अपलापी, अपलापुक] १. बहुत अधिक तृष्णा या लालसा। २. पिपासा। प्यास। |
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अपलापी (पिन्) :
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वि० [सं० अप√लप्+णिनि] १. अपलाप करनेवाला। २. बकवादी। बक्की। |
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अपलाभ :
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पुं० [सं० प्रा० स०] अनुचित या अनैतिक रूप से प्राप्त किया हुआ अत्यधिक लाभ। (प्रॉफिटियरिंग) |
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अपलाभन :
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पुं० [सं० अपलाभ+णिच्+ल्युट्-अन] अपलाभ प्राप्त करने की क्रिया या भाव। |
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अपलेखन :
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पुं० [सं० अप√लिख् (लिखना)+ल्युट्-अन] [भू० कृ० अपलिखित] पावने की ऐसी रकम रद्द करना जो वसूल न हो सकती हो। बट्टेखाते लिखना। |
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अपलोक :
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पुं० [सं० प्रा० स०] लोक में होनेवाली निंदा या बदनामी। उदा०—लोक में लोक बड़ो अपलोक सुकेशव दास जु होउ सो होऊ।—केशव। |
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