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अन्योन्य  : वि० [सं० अन्य, द्वित्व, सु का आगम, रूत्व उत्व, गुण] [भाव० अन्योन्यता] आपस में या एक-दूसरे से लिया दिया जानेवाला। (रेसिप्रोकल) पुं० साहित्य में, एक अलंकार जिसमें दो कार्यों, वस्तुओं आदि के एक दूसरे के कारण कार्य का संबंध बतालाया जाता है अथवा दोनों के एक दूसरे के प्रति समान रूप से कार्य करने का उल्लेख होता हैं। जैसे—(क) बीज से वृक्ष और वृक्ष से बीज होता है। (ख) चंद्रमा के बिना रात और रात के बिना चंद्रमा की शोभा नहीं होती।
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अन्योन्य-प्रजनन  : पुं० [ब० स०] विभिन्न जाति के पशुओं या पौधों के पारस्परिक संसर्ग द्वारा उत्पन्न पशु या पौधे। (क्रास-ब्रीडिंग)
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अन्योन्य-विभाग  : पुं० [स० त०] पैतृक संपत्ति का बँटवारा करने की क्रिया या भाव।
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अन्योन्यता  : स्त्री० [सं० अन्योन्य+तल्-टाप्] अन्योन्य होने या आपस में एक-दूसरे के साथ किए या लिये दिये जाने की अवस्था या भाव। (रेसिप्रोसिटी)
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अन्योन्याभाव  : पुं० [सं० अन्योन्य-अभाव, ष० त०] तर्कशास्त्र में इस बात का सूचक स्थिति कि जो कुछ एक वस्तु है वह दूसरी वस्तु नहीं हो सकती।
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अन्योन्याश्रय  : पुं० [अन्योन्य-आश्रय, ष० त०] १. दो वस्तुओं का आपस में या एक-दूसरे पर आश्रित होना। २. न्याय में, एक वस्तु के ज्ञान से दूसरी वस्तु का होनेवाला ज्ञान। सापेक्ष ज्ञान।
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अन्योन्याश्रयी (यिन्)  : वि० [अन्योन्य-आश्रित, ष० त०] दे० ‘अन्योन्याश्रयी’।
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