शब्द का अर्थ
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अचक :
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वि० [सं० चक्र=समूह ढेर) १. अधिक से अधिक। २. बहुत अधिक। भरपूर। ३. जितना चाहिए उतना। पुं० [सं० चक्र=भ्रांत होना) आश्चर्य। विस्मय। |
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समानार्थी शब्द-
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अचकन :
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पुं० [सं० खञ्चुक, प्रा०अंचुक) अंगे या अंगरखे की तरह का एक लंबा पहनावा। |
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अचकाँ :
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क्रि० वि० =अचानक।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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अचकित :
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वि० [सं० न० त०] जो चकित न हुआ हो। |
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अचक्का :
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पुं० (हिं० अ+√चक्) अचानक होने की स्थिति या भाव। मुहावरा— अचक्के में=औचक में। अचानक। |
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अचक्र :
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वि० [सं० न० ब०] १. जिसमें चक्र न हो। चक्र रहित। २. जो हिले नहीं। फलतः स्थिर। |
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अचक्षु (स्) :
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वि० [सं० न० ब०] १. जिसे चक्षु या आँखें न हो। नेत्र रहित। २. अंधा। |
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अचक्षुदर्शन :
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पुं० [सं० अचक्षुर्दर्शन) चक्षुओं या नेत्रों से भिन्न परन्तु किसी और साधन या अन्य इंद्रियों के द्वारा प्राप्त होने वाला ज्ञान। |
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अचक्षुविषय :
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वि० [सं० अचुक्षुर्विषय) १. (विषय) जो चक्षुओं के द्वारा गृहीत न हो। २. जो दिखाई न देता हो या न दे रहा हो। अदृश्य। पुं० ऐसा विषय जिसका ज्ञान चक्षुओं के न होता हो। |
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