शब्द का अर्थ
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अगर :
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अव्य (फा०) यदि। जो। मुहावरा—अगर मगर करना=(क) बहस या तकरार करना। (ख) आगा-पीछा करना। क्रि० वि० [सं० अग्र) आगे। पुं० [सं० अगरू, गुज० बँ० मरा० अगर) एक प्रसिद्ध वृक्ष जिसकी लकड़ी बहुत सुगन्धित होती है। ऊद। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अगर-बगर :
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क्रि० वि० दे० ‘अगल-बगल'। |
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अगरना :
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अ० [सं० अग्र) १. आगे बढ़ना। २. आगे-आगे चलना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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अगरपार :
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पुं० [सं० अग्र] क्षत्रियों की एक जाति या शाखा। |
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अगरबत्ती :
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स्त्री० [सं० अगरुवर्तिका] वह बत्ती जो सुगंधि के निमित जलाई जाती है। |
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अगरवाला :
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पुं० [दे० अगरोहावाला अथवा आगरे वाला] वैश्यों का भेद। अग्रवाल। |
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अगरसार :
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पुं० [सं० अगरु) अगर नामक वृक्ष। |
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अगरा :
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वि० [सं० अग्र) १. आगे या सामने का। आगे वाला। अमल। २. औरों से बढ़कर। अच्छा। बढ़िया। ३. अधिक। ज्यादा। जैसे—बैल लीजे कजरा, दाम दीजे अगरा।—कहा०। ४. कुशल। निपुण। ५. उग्र। विकट। वि० [सं० अनर्गल) अनुचित और व्यर्थ का। उदाहरण—केलि परयौं रस को झगरौ, अरि ही अगरौ निबरै न चुकाएँ—घनानन्द।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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अगराई :
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वि० [सं० अगरु] अगर की लकड़ी की तरह कालापन लिए सुनहले रंग का। |
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अगराना :
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सं० [सं० अंग] १. दुलार या प्यार से छूना। २. अधिक दुलार करके सिर चढ़ाना। ढ़ोठ बनाना। अ० दुलार के कारण बिगड़ कर धृष्टता करना। अ०=अंगड़ाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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अगरी :
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स्त्री० [सं० अग्र] फूस की छाजन का एक ढंग। स्त्री० [सं० अगिर=अवाच्य) १. अंड-बंड या बुरी बात। अनुचित बात। २. घमंड या धृष्टता से भरी बात। ३. घमंड या धृष्टता का व्यवहार। ढिठाई। स्त्री० [सं० अर्गल) वह डंडा जो किवाड़ बंद करके उसको खुलने से रोकने के लिए अन्दर की ओर लगाया जाता है। अर्गल। स्त्री० [सं० ) १. एक प्रकार का विष-नाशक पदार्थ। २. देवताड़क नामक वृक्ष। ३. एक प्रकार की घास। |
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अगरू :
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पुं० [सं०] अगर नामक वृक्ष और उसकी सुगंधित लकड़ी। ऊद। |
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अगरे :
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क्रि० वि० [सं० अग्र=आगे) १. समझ। सामने। २. आगे। पहले।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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अगरो :
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वि० [सं० अग्र)=अगरा (अगला या अच्छा)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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