शब्द का अर्थ
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वात :
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पुं० [सं०√वा (जाना आदि)+क्त] १. वायु। हवा। २. वैद्यक के अनुसार शरीर में होनेवाला वायु का प्रकोप। |
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वात-गुल्म :
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पुं० [सं० तृ० त] वात के प्रकोप से होनेवाला गुल्म रोग। |
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वात-चक्र :
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पुं० [सं० ब० स०] १. ज्योतिष में एक योग। २. [ष० त०] बवंडर। चक्रवात। |
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वात-तूल :
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पुं० [सं० तृ० त०] बहुत ही महीन तागों के रूप में हवा में इधर-उधर उड़ती हुई दिखाई देनेवाली चीज। |
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वात-नीड़ा :
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स्त्री० [सं०] एक प्रकार का रोग जिसमें वायु के प्रकोप से दाँत की जड़ में नासूर हो जाता है। (पायोरिया)। |
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वात-पुत्र :
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पुं० [सं० ष० त०] १. हनुमान। २. भीम। ३. नेवला। |
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वात-प्रकृति :
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वि० [सं० ष० त०] १. (व्यक्ति) जिसकी प्रकृति में वात की प्रधानता हो। २. (पदार्थ) जो खाने पर शरीर में वात का प्रकोप बढ़ानेवाला हो। |
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वात-प्रकोप :
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पुं० [सं० ष० त०] शरीर में वात या वायु का इस प्रकार बढ़ना या बिगड़ना कि कोई रोग उत्पन्न होने लगे। |
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वात-मृग :
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पुं० [सं० मध्य० स०] वायु की विपरीत दिशा में दौड़नेवाला एक प्रकार का मृग। |
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वात-रक्त :
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पुं० [सं० ब० स०] रक्त में रहनेवाला वात के प्रकोप से उत्पन्न होनेवाला एक रोग जिसमें पैरों के तलवे से घुटने तक छोटी-छोटी फुँसियाँ हो जाती है, जठराग्नि मंद पड़ जाती है और शरीर दुर्बल होता जाता है। |
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वात-सारथि :
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पुं० [सं० ब० स०] अग्नि। |
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वात-स्कंध :
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पुं० [सं० ष० त०] आकाश का वह भाग जिसमें वायु चलती है। |
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वात-स्वप्न :
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पुं० [सं० ब० स०] अग्नि। |
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वातकंटक :
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पुं० [सं० ब० स०] एक प्रकार का बात रोग जिसमें पैरों की गाँठों या जोड़ों में बहुत पीड़ा होती है। |
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वातकी (किन्) :
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वि० [सं० वात+इनि, कुकच्] बात रोग से ग्रस्त। |
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वातकुंभ :
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पुं० [ष० त०] नख-क्षत। |
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वातकेतु :
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पुं० [सं० ष० त०] धूल। गर्द। |
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वातकेलि :
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स्त्री० [सं० ष० त०] १. सुन्दर। आलाप। २. स्त्री के उपपति का दंत-क्षत। |
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वातगंड :
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पुं० [सं० ष० त०] बात के प्रकोप के कारण होनेवाला एक तरह का गलगंड रोग। |
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वातघ्नी :
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स्त्री० [सं० वात√हन् (मारना)+टक्+ङीष्] १. शालपर्णी। २. अश्वगंधा। |
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वातज :
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वि० [सं० वात√जन् (उत्पन्न करना)+ड] वात या वायु के प्रकोप से उत्पन्न होनेवाला। जैसे–वातज रोग। |
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वातंड :
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पुं० [सं० वतंड+अण्] एक गोत्रकार ऋषि जिनके गोत्रवाले वातंड्य कहलाते हैं। |
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वातंड्य :
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पुं० [सं० वातंड+ष्यञ्] [स्त्री० वातंड्यायिनी] वातंड ऋषि के गोत्र में उत्पन्न व्यक्ति। |
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वातध्वज :
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पुं० [सं० ब० स०] मेघ। बादल। |
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वातपट :
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पुं० [सं० ष० त०] पताका। ध्वजा। |
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वातर :
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वि० [सं० वात√रा (लेना)+क] १. वात-सम्बन्धी। २. अन्धड या तूफान से सम्बन्ध रखनेवाला। ३. हवा की तरह तेज। |
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वातरंग :
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पुं० [सं० ब० स०] पीपल। |
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वातरथ :
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पुं० [सं० ब० स०] मेघ। बादल। |
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वातरायण :
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पुं० [सं० वात√रै (शब्द करना)+ल्युट-अन] १. निष्प्रयोजन पुरुष। निकम्मा आदमी। ३. बौखलाया हुआ आदमी। ३. लोटा। ४. कुट नामक ओषधि। |
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वातल :
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पुं० [सं० वात√वला (लेना)+क०] चना। वि० वात का प्रकोप उत्पन्न करनेवाला। |
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वातव :
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वि० [सं०] १. वात से संबंध रखनेवाला। वात का। २. वात के कारण उत्पन्न होनेवाला (रोग या विकार) जैसे–वातव लासक। |
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वातवलासक :
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पुं० [सं० ब० स०] एक प्रकार का घातक बात रोग जिसमें रोगी को ज्वर के साथ कलेजें की धड़कन अंगों की सूजन और नेत्र-कष्ट होता है। (बेरी-बेरी)। |
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वातव्याधि :
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स्त्री० [सं० तृ० त०] १. वात के प्रकोप से उत्पन्न होनेवाला रोग। २. गठिया नामक रोग। |
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वाताट :
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पुं० [सं० वात√अट् (चलना)+अच्] १. सूर्य का घोड़ा। २. हिरन। |
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वातांड :
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पुं० [सं० ब० स०] अंडकोश-संबंधी एक प्रकार का वायु रोग जिसमें एक अंड चलता रहता है। |
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वातात्मज :
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पुं० [सं० ष० त०] हनुमान। |
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वाताद :
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पुं० [सं० वात√अद् (खाना)+घञ्] बादाम। |
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वातानुकूलन :
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पुं० [सं०] [भू० कृ० वातानुकूलित] यांत्रिक या वैज्ञानिक प्रक्रिया से ऐसी व्यवस्था करना कि किसी घिरे हुए स्थान के तापमान पर उसके बाहर के ताप-मान का प्रभाव न पड़ने पावे, अर्थात् उस स्थान के अंदर की गरमी या सरदी नियंत्रित और नियमित रहे। (एयर-कन्डिशनिंग)। |
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वातानूकूलित :
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भू० कृ० [सं०] (स्थान) जिसका तापमान वातानुकूलन वाली प्रक्रिया से नियंत्रित और नियमित किया गया हो। (एयर-कन्डिशन्ड)। |
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वातापी :
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पुं० [सं०] एक राक्षस जो आतापि का भाई था (इन दोनों भाइयों को अगस्त्य ऋषि ने खा लिया था)। |
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वाताप्य :
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पुं० [सं० वातापि-यत्] १. जल। २. सोम। |
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वाताम :
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पुं० [सं० पृषो० सिद्धि] बादाम। |
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वातायन :
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पुं० [सं० ब० स०] १. झरोखा जो घरों आदि में इसलिए बनाया जाता है कि बाहर से प्रकाश और वायु अन्दर आवे। २. मंत्र-द्रष्टा ऋषि। ३. एक प्राचीन जनपद। ४. घोड़ा। |
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वातायनी :
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स्त्री० [सं० वातायन-ङीष्] लकड़ी लोहे सीमेन्ट आदि की वह रचना जो छत के नीचे दीवार में इसलिए बनाई जाती है कि कमरे में प्रकाश और वायु आ सके। (वेन्टिलेटर)। |
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वातारि :
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पुं० [सं० ष० त०] १. एरंड। रेंड। २. शतमूली। ३. वायन। ४. बायबिडंग। ५. जमीकन्द। सूरन। ६. भिलावाँ। ७. थूहड़। सेंहुड़। ८. शतावर। ९. नील का पौधा। तिलक। |
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वाताली :
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स्त्री० [सं० वाताल-ङीष्,ष० त०] १. तूफान। २. बवंडर। |
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वातावरण :
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पुं० [कर्म० स०] [वि० वातावरणिक] १. वायु की वह राशि जो पृथ्वी, ग्रह आदि पिडों को चारों ओर से घेरे रहती है। शरीर स्वास्थ्य आदि के विचार से वायु का उतना अंश जो किसी प्रदेश स्थान आदि में होता है। जैसे–बिहार का वातावरण, कमरे का वातावरण। ३. किसी वस्तु या व्यक्ति के आसपास की वह परिस्थिति या बात जिसका उस वस्तु या व्यक्ति के अस्तित्व जीवन-निर्वाह विकास आदि पर प्रभाव पड़ता है। ४. किसी कलात्मक या साहित्यिक कृति के वे गुण या विशेषताएँ जो दर्शक या पाठक के मन में उस कृति के रचनाकाल,रचना-स्थान आदि की कल्पना या मनोभाव उत्पन्न करती है। जैसे– इस मूर्ति का वातावरण बतलाता है कि यह शुंग काल की है,अथवा गांधार की बनी है (एडमाँस्फियर)। |
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वातावरणिक :
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वि० [सं०] १. वातावरण संबंधी। २. वातावरण का या वातावरण में होनेवाला। |
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वाताष्ठीला :
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स्त्री० [सं० तृ० त०] एक रोग जिसमें वात के प्रकोप के कारण पेट में गाँठ सी पड़ जाती है। (वैद्यक)। |
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वातास :
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स्त्री० [सं० वात] वायु। हवा। उदाहरण–जो उठती हो बिना प्रयास। ज्वाला सी पाकर वातास।–पंत। |
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वाति :
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पुं० [सं०√वा (जाना)+अति] १. वायु। हवा। २. सूर्य। ३. चन्द्रमा। |
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वातिक :
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वि० [सं० वात+ठञ्-इक] १. वात संबंधी। वात का। २. जिसे वात का कोई रोग हो। वात-ग्रस्त। ३. तूफान या बवंडर से सम्बन्ध रखनेवाला। ४. बकवादी। पुं० १. पागल। विक्षिप्त। २. एक प्रकार का ज्वर। ३. चातक। पपीहा। |
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वातुल :
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वि० [सं० वात+उलच्] [भाव० वातुलता] १. वात-संबंधी। २. वात के प्रकोप के कारण होनेवाला। जैसे–गठिया (रोग) पुं० पागल बावला। |
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वातोदर :
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पुं० [सं० तृ० त] एक रोग जिसमें हाथ, पाँव, नाभि, काँख, पसली, पेट, कमर और पीठ में पीड़ा होती है, इसके साथ कब्ज और खांसी भी होती है। (वैद्यक)। |
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वातोन्माद :
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पुं० [सं० वात+उन्माद, ब० स०]अपतंत्रक नामक रोग। (हिस्टीरिया) देखें ‘अपतंत्रक’। |
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वातोर्मी :
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पुं० [सं० ब० स०] ग्यारह अक्षरों का एक वर्णवृत्त जिसमें मगण भगण तगण और अन्त में दो गुरु होते हैं। |
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वात्य :
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वि० [सं०वात+यत्] वात या वायु-सम्बन्धी। जैसे– वात्य भार। |
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वात्या :
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स्त्री० [सं०वात+य+टाप्] १. बहुत तेज चलनेवाली हवा। २. विशेषतः ४॰ से ७५ मील प्रति घंटे चलनेवाली तेज आँधी (गेल)। |
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वात्स :
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पुं० [सं० वत्स+अण्] [स्त्री० वात्सी] १. एक गोत्रकार ऋषि का नाम। २. ब्राह्मण द्वारा शूद्रा के गर्भ से उत्पन्न व्यक्ति। |
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वात्सरिक :
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पुं० [सं० वत्सर+ठक्–इक] ज्योतिषी। वि०१. वत्सर या वर्ष संबंधी। जैसे– वात्सरिक श्राद्ध। २. प्रतिवर्ष होनेवाला। वार्षिक। |
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वात्सल्य :
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पुं० [सं०] १. प्रेम। २. विशेषतः माता-पिता के ह्रदय में होनेवाला अपने बच्चों के प्रति नैसर्गिक प्रेम। |
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वात्सल्य भाजन :
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पुं० [सं०] वह जिसके प्रति वत्स का सा प्रेम हो। वत्स के समान प्रिय। |
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वात्स्य :
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पुं० [सं० वत्स+यञ्] १. एक प्राचीन ऋषि। २. एक गोत्र जिसमें ओर्व, च्यवन, भार्गव, जामदग्न्य और आप्नुवान नामक पाँच प्रवर होते हैं। |
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वात्स्यायन :
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पुं० [सं० वात्स्य+फक्-आयन] १. कामसूत्र के रचियता एक प्रसिद्ध ऋषि। २. न्याय शास्त्र के भाष्यकार एक प्रसिद्ध पंडित। |
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