शब्द का अर्थ
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वल :
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पुं० [सं०√वल् (घूमना-फिरना)+अच्] १. मेघ। बादल। २. एक असुर जो देवताओं की गौएँ, चुराकर एक गुहा में जा छिपा था। इन्द्र ने जब इससे गौएँ छुड़ा ली,तब यह बैल बनकर बृहस्पति के हाथों मारा गया था। |
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समानार्थी शब्द-
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वलन :
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पुं० [सं०√वल्+ल्युट-अन] १. किसी ओर घूमना या मुड़ना। २. चारों ओर घूमना। चक्कर लगाना। ३. ज्योतिष में,किसी ग्रह का अयंनाश से हटकर कुछ इधर या उधर होना। |
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वलना :
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स० [सं० वलय] १. घेरना। २. लपेटना। ३. पहनना। (राज०) उदाहरण-वले वलै निधि विधि वलित।–प्रिथीराज। |
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वलना :
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अ० [सं०वलन] १. किसी ओर घूमना या मुड़ना। २. वापस आना। लौटना। स०१. घुमाया फिराना। २. लपेटना। |
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वलनिक :
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वि० [सं०वलय] १. जिसका वलय किया जा सके। २. जो तह करके या मोड़कर छोटा किया जा सके (फोल्डिंग)। |
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वलनी :
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स्त्री० [सं० वलन] १. वह स्थान जहाँ से कोई चीज किसी ओर घूमती या मुड़ती हो। २. कोई ऐसी चीज जो घूमे या मुड़े हुए रूप में हो (बेंड)। |
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वलंब :
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पुं०=अवलंब।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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वलभी :
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स्त्री० [सं०√वल् (आच्छादित होना)+अभि+ङीष्] १. वह छोटा मंडप जो घर के ऊपर शिखर पर बना हो। गुमटी। निगोल। २. घर का ऊपरी भाग ३. छप्पर। ४. छत। ५. काठियावाड़ की एक प्राचीन नगरी। |
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वलय :
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पुं० [सं०√वल+कयन्] १. गोलाकार घेरा। मंडल। २. घेरने, लपेटने आदि वाली चीज। वेष्टन। ३. हाथ में पहनने का कंगन। ४. वृत्त की परिधि। ५. एक प्रकार की व्यूह रचना जिसमें सैनिक मंडल बनाकर खड़े होते हैं। ६. एक प्रकार का गल-गंड रोग। ७. शाखा। |
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वलयित :
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भू० कृ० [सं० वलय+णिच्+क्त] १. घेरा या लपेटा हुआ। परिवृत्त। वेष्टित। |
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वलवला :
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पुं० [अ० वल्वलः] १. शोर-गुल। २. मन की उमंग। आवेश। क्रि० प्र०–उठना। |
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वलसूदन :
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पुं० [सं० वल√सूद् (मारना)+ल्यु-अन] इंद्र। |
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वलाक :
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पुं० [स्त्री० वलाका]=बलाक (बगला)। |
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वलायत :
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स्त्री०=विलायत। |
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वलाहक :
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पुं० [सं० वारि-वाहक, ष० त० पृषो० सिद्धि] १. मेघ। बादल। २. मुस्तक। ३. पर्वत। पहाड़। ४. कुश द्वीप का एक पर्वत। श्रीकृष्ण के एक रथ का एक घोड़ा। ५. एक प्राचीन नद। ६. साँपों की एक जाति जो दर्व्वीकर के अन्तर्गत मानी गई है। |
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वलि :
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पुं० [सं०√वल्+इन्] १. रेखा। लकीर। २. चंदन आदि से बनाये जानेवाले चिन्ह या रेखाएँ। ३. देवताओं आदि को चढ़ाई जानेवाली वस्तु। ४. देवताओं के उद्देश्य से मारे जाने वाले पशु। ५. झुर्री। बल। सिकुड़न। ६. पंक्ति। श्रेणी। कतार। ७. एक दैत्य जो प्रह्लाद का पौत्र था और जिसे विष्णु ने वामन अवतार लेकर छला था। ८. पेट के दोनों ओर पेटी के सिकुड़ने के कारण पड़ी हुई रेखा। वल। जैसे– त्रिवली। ९. राजकर। १॰. बवासीर का मसा। ११. छाजन की ओलती। १२. गंधक। १३. पुरानी चाल का एक प्रकार का बाजा। |
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वलि-मुख :
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पुं० [सं० ब० स०] १. बानर। बंदर। २. गरम दूध में मठा मिलाने से उत्पन्न होनेवाला एक प्रकार का विकार। |
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वलिक :
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पुं० [सं० वलि+कन्] ओलती। |
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वलित :
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भू० कृ० [सं०√वल्+क्त] १. घूमा, मुड़ा या बल खाया हुआ। २. झुका या झुकाया हुआ। ३. घिरा या घेरा हुआ। परिवृत्त। ४. जिसमें झुर्रिया या सिकुड़ने पड़ी हों। ५. किसी के चारों ओर लिपटा हुआ। आच्छादित। ६. मिला हुआ। युक्त। सहित। पुं० १. काली मिर्च। २. हाथ की एक मुद्रा। |
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वली :
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स्त्री० [सं० वलि+ङीष्] १. झुर्री। शिकन। २. अवली। पंक्ति। श्रेणी। ३. रेखा। लकीर। ४. चंदन आदि के बनाए हुए चिन्ह या रेखाएँ। ५. पेट पर पड़नेवाली रेखा। जैसे–त्रिवली। पुं० [अ०] १. वह धर्मात्मा और महात्मा जो ईश्वर की दृष्टि में प्रिय और मान्य हो। २. वह व्यक्ति जो किसी नाबालिग या स्त्री की संपत्ति का कर्ता-धर्ता तथा रक्षक हो। अभिवाहक। ३. स्वामी। |
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वली-अल्लाह :
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पुं० [अ०] एक प्रकार के सिद्ध मुसलमान फकीर। |
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वली-अहद :
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पुं० [अ०] युवराज। |
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वलीक :
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पुं० [सं०√वल्+कीकन्] १. ओलती। २. सरकंडा। |
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वलीमुख :
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पुं०=वलिमुख (बंदर)। |
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वलूक :
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पुं० [सं०√वल्+अक] १. कमल की जड़। २. एक प्रकार का पक्षी। |
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वले :
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अव्य, [फा०] १. लेकिन। मगर। २. पुनः। |
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वलेकिन :
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अव्य०=लेकिन। |
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वलै :
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पुं०=वलय।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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वल्क :
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पुं० [सं०√वल्+क, नि०] १. पेड़ की छाल। वल्कल। २. मछली के ऊपर का चमकीला छिल्का। मछली की चोई। |
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वल्क-द्रुम :
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पुं० [सं० मध्य० स०] भोज पत्र का वृक्ष। |
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वल्कल :
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पुं० [सं०√वल्+कलन्] १. पेड़ों के धड़ और काण्ड पर का आवरण। छाल। २. प्राचीन काल में वह छाल जो जंगली लोग, तपस्वी आदि कपड़े की तरह ओढ़ते-पहनते थे। ३. एक दैत्य। ४. ऋग्वेद की वाष्कल नामक शाखा। |
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वल्कला :
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स्त्री० [सं० वल्कल+टाप्] १. एक प्रकार का सफेद पत्थर जिसका गुण शीतल और शान्तिकारक माना जाता है। शिला वल्का। २. तेजबल नामक वनस्पति। |
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वल्कली (लिन्) :
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वि० [सं० वल्कल+इनि] (पेड़) जिसकी छाल ओढ़ने पहनने के काम आती है। |
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वल्गन :
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पुं० [सं०√वल्ग् (उछलना)+ल्युट-अन] १. उछलने, कूदने या फाँदने की क्रिया या भाव। २. दुलकी। ३. व्यर्थ की उछल-कूद और बकवाद। |
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वल्गा :
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स्त्री० [सं०√वलग्+अच्+टाप्] बाग। रास। लगाम। |
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वल्गु :
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वि० [सं०√वल्+ड,गुक्-आगम] १. रूपवान्। सुंदर। २. प्रिय। मधुर। ३. बहुमूल्य। पुं० [सं०] १. बौद्धों के बोधि द्रुम के चार अधिकृत देवताओं में से एक। २. बकरा। |
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वल्गुक :
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पुं० [सं० वल्गु+कन्] १. चंदन। २. जंगल। वन। ३. पण। बाजी। ४. क्रय-विक्रय। सौदा। ५. मूल्य। दाम। वि० वल्गु। |
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वल्गुल :
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पुं० [सं०√वल्गु+उल्] १. एक प्रकार का चमगादड़। २. गीदड़। श्रृंगाल। |
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वल्गुला :
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स्त्री० [सं० वल्गु√ला (लेना)+क+टाप्] १. बकुची। २. चमगादड़। |
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वल्गुलिका :
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स्त्री० [सं० वल्गुल+कन्+टाप्, इत्व] १. कत्थई रंग का पतंग जाति का कीड़ा जिसे ‘तेलपायी’ भी कहते हैं। चपड़ा। २. पिटारी। मंजूषा। |
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वल्गुली :
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स्त्री० [सं० वल्गुल+ङीष्] १. चमगादड़। गेदुर। २. पिटारी। मंजूषा। |
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वल्द :
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पुं० [अ०] पुत्र। बेटा। |
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वल्दियत :
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स्त्री० [अ०] पुत्र होने की अवस्था या भाव। पद—वल्दियत लिखाना=यह लिखना कि हम किसके पुत्र है। पिता का नाम बतलाना। |
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वल्मीक :
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पुं० [सं०√वल्+कीकन्, नुम्-आगम] १. दीमकों का लगाया हुआ मिट्टी का ढेर। बाँघी। विमौट। २. ऐसा मेघ जिस पर सूर्य की किरणें पड़ रही हों। ३. एक प्रकार का रोग जिसमें संधि-स्थलों में सूजन आ जाती है। ५. वाल्मीकि ऋषि। |
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वल्ल :
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पुं० [सं०√वल्ल (ढकना)+अच्] १. घुंघची। २. एक पुरानी तौल जो किसी के मत से तीन और किसी के मत से छः रत्ती की होती थी। ३. आवरण। ४. निषेध। ५. अनाज ओसाना या बरसाना। ६. शल्लकी। सलई। |
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वल्लकी :
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स्त्री० [सं०√वल्ल+क्वुन्+ङीष्] १. वीणा। २. नारद की वीणा का नाम। ३. सलई का पेड़। |
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वल्लभ :
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वि० [सं०√वल्ल+अभच्] [स्त्री० वल्लभा] अत्यन्त प्रिय। प्रियतम। प्यारा। पुं० १. अत्यन्त प्रिय व्यक्ति। २. स्त्री का पति। ३. मालिक। स्वामी। ४. अच्छे लक्षणोंवाला घोड़ा। ५. एक प्रकार का सेम। ६. दे० ‘वल्लभाचार्य’। |
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वल्लभ-मत :
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पुं०=वल्लभ संप्रदाय। |
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वल्लभ-संप्रदाय :
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पुं० [सं० ष० त०] महाप्रभु वल्लभाचार्य द्वारा स्थापित पुष्टिमार्ग संप्रदाय का दूसरा नाम। दे० ‘पुष्टि-मार्ग’। |
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वल्लभा :
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वि० स्त्री० [सं० वल्लभ+टाप्] सं० ‘वल्लभ’ का स्त्री। |
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वल्लभी :
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पुं०=वलभी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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वल्लर :
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पुं० [सं०√वल्ल+अरन्] १. निकुंज। २. वन। ३. लता। ४. मंजरी। ५. अगर। |
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वल्लरी :
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स्त्री० [सं० वल्लर+ङीष्] १. वल्ली। लता। २. मंजरी। ३. मेघी। ४. वचा। बच। ५. पुरानी चाल का एक प्रकार का बाजा। |
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वल्लव :
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पुं० [सं० वल्ल√वा (गति)+क] [स्त्री० वल्लवी] १. गोप। ग्वाला। २. रसोइया। |
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वल्लव :
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पुं० [सं०] एक दैत्य जिसे बलराम जी ने मारा था। इल्लव। |
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वल्लाह :
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अव्य० [अ०] १. ईश्वर की शपथ लेते हुए। २. सचमुच। |
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वल्लि :
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स्त्री० [सं०√वल्लि+इन्] १. लता। २. पृथिवी। |
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वल्लि-दूर्वा :
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स्त्री० [सं० मध्य० स०] सफेद दूब। |
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वल्लिका :
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स्त्री० [सं० वल्लि+कन्+टाप्] १. लता। वल्ली। २. बेला। ३. पोई नामक साग। |
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वल्लिज :
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पुं० [सं० वल्लि√जन् (उत्पत्ति)+ड] मिर्च। |
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वल्ली :
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स्त्री० [सं० वल्ली+ङीष्] १. लता। २. काली अपराजिता। ३. केवटी मोथा। ४. अग्नि दमयन्ती। ५. शाल का वृक्ष। |
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वल्लुर :
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पुं० [सं०√वल्ल+उरच्] १. कुंज। २. मंजरी। ३. क्षेत्र। ४. निर्जल स्थान। |
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वल्लूर :
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पुं० [सं० वल्ल+ऊरच्] १. धूप में सुखाया हुआ मांस विशेषता मछली का मांस। २. सूअर का मांस। ३. ऊसर जमीन। ४. जंगल। वन। ५. उजाड़ जगह। वीरान। |
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