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लीक  : स्त्री० [सं० लिख्] १. लंबी, पतली रेखा के रूप में बना हुआ अथवा बनाया हुआ चिन्ह। लकीर। जैसे—(क) गिनती या संख्या सूचित करने के लिए खींची जानेवाली लीक। उदाहरण—भट मँह प्रथम लीक जन जासू।—तुलसी। (ख) कच्ची जमीन पर आने-जानेवाली बैलगाड़ियों के पहिओं के कारण बनी हुई लीक। (ख) खेतों जंगलों आदि में आदमियों के आने-जाने के कारण पग-डंडियों के रूप में बनी हुई लीक। उदाहरण—लीक-लीक गाड़ी चलै लीकै चलै कपूत। मुहावरा—लीक करना या खींचना=प्राचीन परम्परा के अनुसार किसी प्रकार की प्रतिज्ञा करने अथवा अपने कथन की दृढ़ता या पुष्टि सूचित करने के लिए जमीन पर तर्जनी उँगली आदि से छोटी सीधी रेखा खींचना या बनाना। लीक पकड़ना=आदमियों, गाड़ियों आदि के आने-जाने से बनी हुई लीक पर चलते हुए कहीं जाना। जैसे—यही लीक पकड़कर सीधे चले जाओ। २. आचरण या लोक-व्यवहार के क्षेत्र में बहुत दिनों से चली आई हुई कोई परम्परा, रीति या विधि जो कुछ प्रसंगों में तो प्रतिष्ठा या मर्यादा की सूचक होती है और कुछ प्रसंगों में त्याज्य तथा निंदनीय भी मानी जाती है। उदाहरण—(क) नन्द-नन्दन के नेह-मेह जिन लोक-लीक लोपी।—सूर। (ख) अजहुँ गाव स्रुति चिन्ह कै लीका।—तुलसी। मुहावरा—लीक पीटना= (क) किसी पुरानी चली आई हुई निकम्मी प्रथा या रीति का बिना सोचे-समझे अनुकरण करते चलना। जैसे—अशिक्षित, गँवार आदि अब भी ब्याह-शादी में वह पुरानी लीक पीटते चलते हैं। (ख) कोई दुर्घटना या हानि हो चुकने के उपरान्त उसके अवशिष्ट चिन्हों आदि पर अपना रोष-प्रकट करना। जैसे—साँप तो चला गया, अब लीक पीटने से क्या होगा। लीक लीक चलना=पुरानी परिपाटी या प्रथा का पालन करना। उदाहरण—लीक लीक गाड़ी चलै लीकै चलैं कपूत। ३. किसी काम या बात के संबंध में नियत की हुई मर्यादा। सीमा। हद। ४. दुष्कर्म, दुर्नाम आदि का सूचक चिन्ह। कलंक की रेखा। लांछन। उदाहरण—तिहि देखत मेरो पट काढ़त लीक लगी तुम काज।—सूर। क्रि० वि०—लगना। स्त्री० [देश] मटियाले रंग की एक चिड़िया जो बत्तख से कुछ छोटी होती है।
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लीकति  : स्त्री०=लीक।
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