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मुझ  : सर्व० [हिं० मुझे] सर्व ‘मैं’ का वह रूप जो उसे कर्ता और संबंध कारक की विभक्तियों के अतिरिक्त अन्य कारकों की विभक्तियों लगने पर प्राप्त होता है। जैसे—मुझको, मुझसे, मुझपर आदि। विशेष—जब इस शब्द का प्रयोग सार्वनामिक विशेषण के रूप में होता है तब इसके साथ लगनेवाली विभक्ति से पहले वक्ता से संबंध कोई विशेषण भी आ जाता है जैसे—(क) मुझ गरीब पर यह बोझ मत रखो। (ख) मुझ दुखिया को इतना मत सताओ। (ग) मुझ रोगी से यह आशा मत रखो। ऐसी अवस्था में इसका प्रयोग संबंधकारक में भी होता है। जैसे—मुझ अभागे का यहाँ तुम्हारे सिवा और कौन है।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
मुझे  : सर्व० [सं० मध्यम, प्रा० मज्झम] सर्व ‘मैं’ का कर्म और संप्रदाय में होनेवाला रूप जो उक्त कारकों की विभक्तियों से युक्त समझा जाता है।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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