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निधि  : स्त्री० [सं० नि√धा+कि] १. वह आधार, पात्र या स्थान जिसमें कोई गुण या पदार्थ व्याप्त अथवा स्थित हो। आश्रय-स्थान। जैसे–दयानिधि, गुणनिधि, क्षीरनिधि, जलनिधि। २. जमीन में गड़ी हुई धनराशि। ३. किसी विशेष कार्य के लिए अलग रखा या जमा किया हुआ धन। जैसे–नागर-विधि। ४. कुबेर के नौ रत्न, यथा–पद्म, महापद्म, शंख, मकर, कच्छप, मुकुंद, कुंद, नील और बर्च्च। ५. उक्त के आधार पर नौ की संख्या। ६. विष्णु। ७. शिव। ८. जीवक नामक ओषधि। ९. नली नामक गंधद्रव्य।
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निधि-पति  : पुं० [ष० त०] निधिनाथ। (दे०)
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निधिनाथ  : पुं० [ष० त०] १. निधियों (जो गिनती में नौ हैं) के स्वामी, कुबेर, २. वह व्यक्ति जिसकी देख-रेख में कोई निधि, संपत्ति या कुछ वस्तुएँ रखी गई हों।
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निधिप  : पुं० [सं० निधि√पा (रक्षा)+क] निधिनाथ। (दे०)
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निधिपाल  : पुं० [निधि√पाल् (रक्षा)+णिच्+अच्] निधिनाथ (दे०)
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निधिबन  : पुं० [सं०] वृन्दावन के पास का एक कुंज। उदा०–निधिबन करि दंडौत, बिहारी कौ मुख जोवै।–भगवत रसिक।
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