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झाँझ  : स्त्री० [सं० झर्झर] [स्त्री० अल्पा० झाँझड़ी] १. काँसे, पीतल आदि के मोटे पत्तर की बनी हुई एक प्रकार की कम उबारदार कटोरियों का जो़ड़ा जो पूजन आदि के समय एक दूसरी पर आघात करके बजाई जाती है। छैना। क्रि० प्र०–पीटना।–बजाना। २. क्रोध। गुस्सा। ३. किसी दूषित मनोविकार का आवेग। ४. पाजीपन। शरारत। क्रि० वि० -उतरना।-चढ़ना।-निकलना। ५.ऐसा जलाशय जिसका जल सूख गया हो। स्त्री०=झाँझन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झाँझड़ी  : स्त्री० १=छोटी झाँझी। २. =झाँझन (पैर में पहनने का गहना)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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झाँझन  : स्त्री० [अनु०] चाँदी आदि का बना हुआ नक्काशीदार कड़ा जिसे स्त्रियाँ पैरों में पहनती हैं और जिससे झनझन शब्द निकलता है। पैजनी। पायल।
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झाँझर  : स्त्री० [अनु०] १. झाँझन। पैंजनी नाम का गहना जो पैर में पहना जाता है। २. आटा आदि छानने की छाननी। वि० [सं० जर्जर] १. झँजरा। २. जर्जर। ३. बहुत ही खिन्न और दुःखी। कष्ट या दुःख से क्षीण या जर्जर। (पूरब) उदाहरण–एक हम झाँझरि हरि बिनु हो, पीतम मेल त्यागी।–स्त्रियों का गीत।
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झाँझरी  : स्त्री० [देश०] १. झाँझ नाम का बाजा। झाल। २. झाँझन या पैजनी नाम का पैर में पहनने का गहना।
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झाँझा  : पुं० [हिं० झंझारा] १. फसल के पत्ते आदि खा जानेवाले कुछ छोटे कीड़ों का एक वर्ग। २. वह बड़ा पौना जिससे कहाड़ी में सेव (नमकीन पकवान) छाना या गिराया जाता है। ३. घी में भूनकर चीनी के साथ मिलाई हुई भाँग की पत्तियाँ जो यों ही फाँक ली जाती हैं। पुं० १. झंझट या बखेड़े की बात। ३. तकरार। हुज्जत। पुं०=बड़ी झाँझ।
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झाँझिया  : पुं० [हिं० झाँझ+इया(प्रत्यय)] वह जो झाँझ बजाता हो।
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झाँझी  : स्त्री० [हिं० झँझरी] १. एक उत्सव जिसमें बालिकाएँ रात के समय झँझरीदार हाँडी में दीपक रखकर गीत गाती हुई घर-घर जाती और वहां से पैसे या अनाज पाती है। २. उक्त अवसर या उत्सव पर गाये जानेवाले गीत।
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