शब्द का अर्थ
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चौं :
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अव्य० [हिं० क्यों] क्यों। इसलिए। उदाहरण–झुकि जा बदरिया बरस चौं न जाय। (व्रज का लोक गीत)। |
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समानार्थी शब्द-
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चौंक :
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स्त्री०[हिं० चौंकना] चौंकने की क्रिया या भाव। |
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चौंकड़ा :
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पुं० [देश०] करील का पौधा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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चौंकना :
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अ० [?] १. एकाएक किसी प्रकार की आहट, ध्वनि या शब्द सुनकर कुछ उत्तेजित तथा विकल हो उठना। २. सहसा कोई भयभीत करनेवाली बात सुनकर अथवा वस्तु या व्यक्ति को देखकर घबरा जाना। ३. स्वप्न में कोई विलक्षण या भीषण बात, वस्तु आदि देखने पर एका-एक घबराकर जाग उठना। ४. किसी प्रकार की अहित संबंधी अप्रत्याशित सूचना मिलने पर चौंकन्ना या सतर्क होना। ५. आशंका, भयआदि से सहमना या काँपने लगना। ६. बिदकना। भड़कना। जैसे–चलते-चलते घोड़े का चौंकना। |
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चौंकाना :
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स० [सं० चौंकना] १. कोई ऐसा काम करना या बात कहना जिसे सहसा देख अथवा सुनकर कोई चौंक उठे। २. संभावित अहित, क्षति या हानि की सूचना किसी को देना और उसे उससे बचने के लिए सतर्क तथा सावधान करना। ३. भड़कना। |
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चौंचंदहाई :
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वि० स्त्री० [हिं० चौचंद+हाई(प्रत्य०)] (स्त्री) जिसे दूसरों की निंदा करने का व्यसन हो। |
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चौंचा :
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पुं० [हिं० चौ+फा० चह] सिंचाई के लिए पानी एकत्र करने का गड्ढा। |
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चौंटना :
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स० [हिं० चुटकी] हाथ की चुटकी से फूल आदि तोड़ना। चोंटना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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चौंटली :
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स्त्री० [सं० चूड़ाला या श्वेतोच्चटा] सफेद घुँघची। श्वेत। चिरभिटी। |
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चौंड़ा :
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पुं० [सं० चुंड़ा] १. वह स्थान जहाँ मोट का पानी गिराया जाता है। २. दे० चोड़ा। पुं० चोंड़ा (स्त्रियों के सिर के बाल)। |
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चौंतरा :
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पुं०=चबूतरा। |
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चौंतिस :
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वि० [सं० चतुस्त्रिशत्प् प्रा० चतुत्तिंसो, पा० चउतीसो] जो गिनती में तीस और चार हो। पुं० उक्त की सूचक संख्या जो इस प्रकार लिखी जाती है–३४। |
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चौंतिसवाँ :
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वि० [हिं० चौंतिस+वाँ (प्रत्य)] क्रम या गिनती में चौतिस के स्थान पर पड़नेवाला। |
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चौंतीस :
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वि० पुं० चौंतिस। |
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चौंदती :
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स्त्री० [हिं० चौदंता] १. नव-यौवन के समय का अल्हड़पन। २. ढिठाई। धृष्टता। ३. अक्खड़पन। उद्दंडता। |
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चौंध :
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स्त्री० [सं०√चक चमकना या चौं चारों ओर+अंध] प्रखर और प्रायः क्षणिक प्रकाश की वह स्थिति जिसे नेत्र सहसा सहन नहीं कर पाते और इसलिए क्षण भर के लिए मुँद जाते हैं। क्रौध। चकाचौंध। |
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चौंधना :
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अ० [हिं० चौंध] किसी वस्तु का क्षणिक किन्तु प्रखर प्रकाश से युक्त होना। कौंधना। चमकना। |
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चौंधियाना :
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अ० [हिं० चौंध] नेत्रो का, किसी वस्तु के चौंधने पर स्वतः पलकें झपकने लगना (जिसके कारण कोई चीज ठीक प्रकार से सुझाई नहीं पड़ती) स० ऐसा काम करना जिससे किसी की आँखे प्रकाश के कारण क्षण भर के लिए झपक या मुँद जाएँ। किसी की आँखों में चौंध उत्पन्न करना। |
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चौंधियारी :
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स्त्री० दे० ‘कस्तूरी’। |
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चौंधी :
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स्त्री०=चौंध। |
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चौंबक :
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वि० [सं० चुम्बक+अण्] १. चुंबक-संबंधी। चुबंक का। चुबंकीय। २. चुबक से युक्त। जिसमें चुंबक मिला या लगा हो। |
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चौंर :
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पुं० [सं० चामर ?] १. पिंगल में मगण के पहले भेद (ऽ) की संज्ञा। २. भड़भाँड़ या सत्यानाशी नामक पौधे की जड़। पुं.१. चँवर। (देखें)। २. झालर। ३. किसी चीज का गुच्छा। |
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चौंरगाय :
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स्त्री०[हिं०चौंर+सं०गो] सुरागाय। |
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चौंरा :
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पुं० [सं० चुंडगड्ढा] १. वह गड्ढा जिसमें सुरक्षा के लिए अन्न गाड़ा जाता है। २. ‘चौंड़ा’। |
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चौंराना :
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स० [सं० चौंर+आना (प्रत्यय)] १. किसी के ऊपर या चारों ओर चँवर डुलाना। चँवर करना। २. जमीन पर झाड़ देना या लगाना। |
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चौंरिंदी :
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वि०=चउरिंदी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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चौंरी :
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स्त्री० [हिं० चौंर+ई (प्रत्यय)] १. छोटा चँवर। चँवरी। २. रेशम या सूत का वह लच्छा जिससे स्त्रियाँ सिर के बाल बाँधती है। चोटी। ३. किसी चीज के आगे लटकने वाला फुँदना।। ४. सफेद पूँछवाली गाय। ५. सुरागाय। |
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चौंरेठा :
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पुं० [हिं० चाउर(=चावल)+पीठा] चावल को महीन पीस कर बनाया जानेवाला चूर्ण जो कई प्रकार के पकवान बनाने के काम आता है। |
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चौंवालिस :
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वि० पुं०=चौंवलिस। |
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चौंसठ :
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वि० [सं० चतुः षष्टि, प्रा० चउसट्टि] जो गिनती में साठ से चार अधिक हो। पुं० उक्त की सूचक संख्या जो इस प्रकार लिखी जाती है।–६४। |
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चौंसठवाँ :
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वि० [हिं० चौंसठ+वाँ (प्रत्य)] क्रम या गिनती में चौंसठ के स्थान पर पड़नेवाला। |
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चौंह :
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पुं० [देश०] गलफड़ा। |
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चौंही :
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स्त्री० [देश०] हल में की एक लकड़ी। परिहारी। |
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