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चोली  : स्त्री० [सं० चोल+ङीष्,हिं० चोला] १. स्त्रियों का वह मध्य युगीन पहनावा जिससे उनका वक्ष-स्थल ढका रहता था, और जिसमें नीचे की लगी हुई तनियाँ या बंद पीठ की ओर खींचकर बाँधे जाते थे। २. आज-कल उक्त पहनावे का वह हुआ सुधरा रूप जो स्त्रियाँ स्तनों को ढलने से बचाने के लिए कुरती आदि के नीचे पहनती है। ३. अँगरखें आदि का वह ऊपरी भाग जिसमें बंद लगे रहते हैं। पद-चोली दामन का साथ वैसा ही अभिन्न, घनिष्ट और सदा बना रहनेवाला साथ जैसे–अँगरखें के उक्त ऊपरी भाग तथा दामन या नीचे वाले भाग में होता है। जैसे–रिश्तेदारी में तो आपस में चोली दामन का साथ होता है। ४. साधु-संतों आदि के पहनने का कुछ मोटा चोला। स्त्री०[?] तमोंलियों की पान रखने की डलिया या दौरी।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
चोली-मार्ग  : पुं० [मध्य० स०] वाम मार्ग का वह भेद या संप्रदाय जिसमें उपासिकाओं की चोलियाँ एक बरतन में ढककर रख दी जाती हैं, और तब निकालने पर जिस स्त्री की चोली जिस उपासक के हाथ में आती है, उसी के साथ वह संभोग करता है।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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