शब्द का अर्थ
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कुस :
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पुं० =कुश।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
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कुसंगति :
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स्त्री० [सं० कुगति स०] दे० ‘कुसंग’। |
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कुसगुन :
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पुं० [सं० कु+हिं० सगुन] बुरा सगुन। असगुन। |
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कुसना :
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स० [सं० कुश] खेतों में उगी हुई घास आदि उखाड़ना। निराना। |
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कुसमिसाना :
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अ०=कसमसाना। |
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कुसर :
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पुं० [देश] पानी बेल या मूसल नामक लता की जड़ जो दवा के काम आती है। वि०=कुशल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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कुसल :
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वि० पुं० =कुशल।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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कुसलई :
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स्त्री० १. =कुशलता। २. =कुशलात।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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कुसलछेम :
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पुं० =कुशल-क्षेम। |
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कुसलाई :
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स्त्री० १. =कुशलता। २. =कुशलात।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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कुसलात :
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स्त्री० १. =कुशलता। २. =कुशलात।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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कुसली :
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स्त्री० [हिं० कसैली] १. आम की गुठली। २. आम की गुठली के आकार का एक पकवान। गोझा। वि०=कुशली। |
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कुसवा :
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पुं० [सं० कुश] धान की फसल में होनेवाला खैरा नामक रोग। |
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कुसवारी :
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पुं० [सं० कोशकार] १. रेशम का जंगली कीड़ा। २. रेशम का कोया। |
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कुसवाहा :
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[?] कोइरी (हिंदू जाति)। काछी। पुं० =कुशवाहा। |
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कुससथली :
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स्त्री०=कुश-स्थली। |
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कुसाइत :
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स्त्री० [सं० कु+अ० सायत] १. ऐसी साइत या मुहूर्त्त जो उत्तम न हो। बुरी साइत। २. अनुपयुक्त अवसर या समय। |
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कुसाखी :
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पुं० [सं० कु+शाखिन्=वृक्ष] खराब या बुरा पेड़। पुं० [सं० कु+साक्षी] खराब या बुरा गवाह।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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कुसांब :
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पुं० =कुशांब। |
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कुसारी :
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स्त्री० दे० ‘कुसवारी’। |
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कुसिया :
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स्त्री०=कुसी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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कुसियार :
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पुं० [सं० कोशकार] १. सफेद रंग का एक बढ़िया गन्ना। थून। २. ईख। गन्ना। |
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कुसियारी :
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पुं० =कुसवारी। |
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कुसी :
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स्त्री० [सं० कुशी] १. हल का नुकीला भाग। फाल। स्त्री०=खुशी (प्रसन्नता) उदाहरण—निस दिन होत कुसी।—मीराँ। वि०=खुश (प्रसन्न)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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कुसीद :
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पुं० [सं०√कुस् (श्लेष)+ईद, न गुणः (नि०)] [स्त्री० कुसीदा, वि० कुसीदिक] १. सूद पर रुपया देना। महाजनी। २. मूलधन का ब्याज या सूद। ३. ब्याज या सूद पर दिया जानेवाला धन। ४. लाल चंदन। वि० १. सूदखोर। २. सुस्त। |
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कुसीद-वृद्धि :
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स्त्री० [मध्य० स०] ब्याज। |
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कुसीदजीवी (विन्) :
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पुं० [सं० कुसीद√जीव् (जीना)+णिनि] महाजनी करने वाला। सूदखोर महाजन। |
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कुसीदिक :
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वि० [सं० कुसीद+ष्ठन्-इक] कुसीद या ब्याज-संबंधी। पुं० =कुसीद। |
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कुसीनार :
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पुं० =कुशीनगर। |
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कुसुंब :
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पुं० [सं० कुसुम्भ या कुसुम्बक] १. भारत, बरमा चीन आदि में पाया जानेवाला एक प्रकार का वृक्ष। २. दे० ‘कुसुम’। |
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कुसुंबिया :
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स्त्री० दे० ‘कुसुब’। वि० [हिं० कुसुंब] १. कुसुंब संबंधी। २. कुसुंब के रंग का। |
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कुसुंभ :
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पुं० [सं०√कुस्+उम्भ, गुणभाव (नि०)] १. कुसुम या बर्रे नाम का पौधा। २. केसर। कुमकुम। |
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कुसुंभा :
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पुं० [सं० कुसुंभ] १. कुसुम का रंग। २. अफीम और भाँग के योग से बननेवाला एक मादक पेय। स्त्री० [सं० कुसुंभ+टाप्] आषाढ़ शुक्ल पक्ष की छठ। |
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कुसुंभी :
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वि० [सं० कुसुंभ] कुसुम के रंग का। लाल। |
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कुसुम :
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पुं० [सं०√कुस्+उम, गुणाभाव (नि०)] [वि० कुसुमित] १. पुष्पों। फूल। २. स्त्रियों का रजस्राव। ३. लाल रंग। ४. ऐसा गद्य जिसमें छोटे-छोटे वाक्य हो। ५. वर्तमान अवसर्पिणी के छठे अर्हत् के गणधर। ६. एक राग जो मेघराग का पुत्र कहा गया है। ७. आँखों का एक रोग। ८. छंदशास्त्र में ठगण का छठा भेद जिसमें क्रमशः लघु, गुरु, और लघु (।ऽ॥) होते हैं। पुं० [सं० कुसुभ] एक प्रसिद्ध पौधा जो रबी की फसल के साथ बीजों या फूलों के लिए बोया जाता है। बर्रे। कुसुंब। |
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कुसुम-कार्मुक :
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पुं० [ब०स] कामदेव, जिनका धनुष फूलों का है। |
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कुसुम-चाप :
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पुं० =कुसुम-कार्मुक। |
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कुसुम-पंचक :
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पुं० [ष० त०] कामदेव के पाँच बाण। |
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कुसुम-पल्ली :
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स्त्री० [ष० त०] १. रजस्वली स्त्री। २. दे० ‘कुसुमपुर’। |
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कुसुम-पुर :
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पुं० [मध्य० स०] आधुनिक पटना नगर का प्राचीन नाम। |
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कुसुम-बाण :
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पुं० [ब०स] कामदेव। |
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कुसुम-रेणु :
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पुं० [ष० त०] पराग। |
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कुसुम-विचित्रा :
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स्त्री० [उपमित० स०] एक वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में क्रमशः नगण, यगण, नगण और यगण होता है। |
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कुसुम-शर :
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पुं० [ब०स] कामदेव। |
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कुसुम-स्तवक :
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पुं० [ष० त०] दंडक छंद का वह भेद जिसमें प्रत्येक चरण में नौ या नौ से अधिक सगण होते हैं। |
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कुसुमवान :
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पुं० [सं० कुसुम-बाण] कामदेव।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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कुसुमाकर :
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पुं० [कुसुम-आकर, ष० त०] १. वसंत ऋतु। २. फुलवारी। बगीचा। ३. छप्पय का एक भेद। |
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कुसुमांजन :
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पुं० [कुसुम-अंजन, मध्य० स०] जस्ते को फूँककर तैयार की हुई भस्म। |
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कुसुमांजलि :
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स्त्री० [कुसुम-अंजलि, मध्य० स०] फूलों से भरी हुई अजंली। पुष्पांजलि। |
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कुसुमाधिप, कुसुमाधिराज :
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पुं० [कुसुम-अधिप, कुसुम अधिराज, ष० त०] चंपा का पेड़। |
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कुसुमायुध :
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पुं० [कुसुम-आयुध, ब० स०] कामदेव। |
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कुसुमाल :
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पुं० [कुसुम-आ√ला (लेना)+क] चोर। |
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कुसुमावलि :
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स्त्री० [कुसुम-आवलि, ष० त०] फूलों का गुच्छा या समूह। |
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कुसुमासव :
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पुं० [कुसुम-आसव, ष० त०] १. फूलों का रस। मकरंद। २. मधु। शहद। |
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कुसुमित :
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वि० [सं० कुसुम+इतच्] १. (पौधा) जिसमें फूल लगें हों। २. खिला हुआ। (क्व०) ३. (स्त्री) जिसका रजस्राव हो रहा हो। |
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कुसुमित-लता-वेल्लिता :
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स्त्री० [कुसुमित-लता, कर्म० स, कुसुमितलता-वेल्लिता, उपमित० स०] एक वर्ण वृत्त जिसके प्रत्येक चरण में क्रमशः मगण, तगण, नगण, यगण, यगण और यगण होता है। |
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कुसुमी :
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वि० [सं० कुसुम] १. कुसुम संबंधी। कुसुम का। २. कुसुम के फूलों के रंग का। पीलापन लिये हुए लाल रंग का। जैसे—कुसुमी साड़ी। |
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कुसुमेषु :
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पुं० [कुसुम-इष्, ब० स०] कामदेव। |
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कुसुली :
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स्त्री०=कुसली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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कुसूत :
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पुं० [सं० कु-सूत्र, प्रा० सुत्त] १. खराब या बुरा सूत। २. कु-प्रबंध। |
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कुसूर :
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पुं० [अ० क़ुसूर] १. भूल। २. अपराध। ३. दोष। |
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कुसूरवार :
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पुं० [अ०+फा] १. अपराधी। २. दोषी। |
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कुसूल :
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पुं० =कुशूल। |
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कुसेस :
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पुं० दे० ‘कुसेसय’। |
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कुसेसय :
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पुं० [सं० कुशेशय] कमल।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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कुस्तंबरु :
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पुं० [सं० कुस्तंबरु] धनिया का बीज। |
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कुस्ती :
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स्त्री०=कुश्ती। |
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कुस्तुभ :
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पुं० [सं० कु√स्तुम्भ् (धारण)+क] विष्णु। |
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कुस्सा :
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पुं० [देश] कुदाल। |
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