| शब्द का अर्थ | 
					
				| काँक					 : | पुं० [सं० कंकु] कँगनी नाम का अन्न। पुं० [सं० कंक] सफेद चील।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| काँकड़ा					 : | पुं० [हिं० कंकड़] १. कपास का बीज। विनौला। २. कंकड़।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| काँकर					 : | पुं० [स्त्री० काँकरी]=कंकड़।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| काँकरी					 : | स्त्री० [हिं०काँकर का अल्प०] छोटा कंकड़। मुहावरा—काँकरी चुनन=घोर, चिंता वियोग आदि के समय पागलों की तरह चुपचाप सिर झुकाकर बैठे रहना या समय बिताने के लिए जमीन पर पड़ी हुई कंकड़ियाँ उठा-उठाकर इधर-उधर करना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| काँकरेच					 : | स्त्री० [?] गौओं, बैलों की एक जाति या नसल। | 
			
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				| काँकुनी					 : | स्त्री०=कँगनी। | 
			
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				| कांक्षा					 : | स्त्री० [वि० कांक्षनीय, कांक्षी, भू० कृ० कांक्षित]=आकांक्षा। | 
			
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				| कांक्षित					 : | वि० [सं०√कांक्ष् (चाहना)+क्त] जिसकी कांक्षा या इच्छा की गई हो। | 
			
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				| काँक्षी (क्षिन्)					 : | वि० [सं०√कांक्ष्+णिनि] काँक्षा या इच्छा करनेवाला। आकांक्षी। | 
			
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