संभोग से समाधि की ओर
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संभोग से समाधि की ओर...
और वह झलक आपको दिखाई पड़ जाए तो फिर उस झलक के लिए ध्यान के मार्ग से श्रम
किया जा सकता है। उस झलक को फिर ध्यान की तरफ से पकड़ा जा सकता है। उस झलक को
फिर ध्यान के रास्ते से जाकर परिपूर्ण रूप से, पूरे रूप से जाना और जिया जा
सकता है। और अगर वह ज्ञान हमारे जानने और जीवन का हिस्सा बन जाए तो आपके जीवन
में सेक्स की कोई जगह नहीं रह जाएगी।
एक मित्र ने पूछा है कि अगर इस भांति सेक्स विदा हो जाएगा तो दुनिया में
संतति का क्या होगा? अगर इस भांति सारे लोग समाधि का अनुभव करके ब्रह्मचर्य
को उपलब्ध हो जाएंगे तो बच्चों का क्या होगा?
जरूर इस भांति के बच्चे पैदा नहीं होगे, जिस भांति आज पैदा होते हैं। यह ढंग
कुत्ते, बिल्लियों और इल्लियों का तो ठीक है, आदमियों का ठीक नहीं। यह कोई
ढंग है? यह कोई बच्चों की कतार लगाए चले जाना-निरर्थक, अर्थहीन, बिना
जाने-बूझे-यह भीड़ पैदा करते चले जाना। यह भीड़ कितनी हो गई? यह भीड़ इतनी हो गई
है कि वैज्ञानिक कहते हैं कि अगर सौ बरस तक इसी भांति बच्चे गंदा होते रहे और
कोई रुकावट नहीं लगाई जा सकी, तो जमीन पर टहनी हिलाने के लिए भी जगह नहीं
बचेगी। हमेशा आप सभा में ही खड़े हुए मालूम होंगे। जहां जाएंगे, वही सभा मालूम
होगी। सभा करना बहुत मुश्किल हो जाएगा। टहनी हिलाने की जगह नहीं रह जाने वाली
है सौ साल के भीतर, अगर यही स्थिति रही।
वह मित्र ठीक पूछते हैं कि अगर इतना ब्रह्मचर्य उपलब्ध होगा तो बच्चे कैसे
पैदा होंगे? उनसे भी में एक और बात कहना चाहता हूं वह भी अर्थ की है औंर आपके
ख्याल में आ जानी चाहिए ब्रह्मचर्य से भी बच्चे पैदा हो सकते है, लेकिन
ब्रह्मचर्य से बच्चों के पैदा करने का सारा प्रयोजन और अर्थ बदल जाता है। काम
से बच्चे पैदा होते हैं, सेक्स से बच्चे पैदा होते हैं। सेक्स से बच्चे पैदा
होना-बच्चे पैदा करने के लिए कोई सेक्स में नहीं जाता है।
बच्चे पैदा होना आकस्मिक है, एक्सीडेंटल है।
सेक्स में आप जाते हैं किसी और कारण से बीच में बच्चे आ जाते हैं। बच्चों के
लिए आप कभी सेक्स में नहीं जाते। बिना बुलाए मेहमान हैं बच्चे और इसीलिए
बच्चों के प्रति आपके मन मे वह प्रेम नहीं हो सकता है, जो बिना बुलाए
मेहमानों के प्रति होता है। घर में कोई आ जाए अतिथि बिना बुलाए तो जो हालत घर
में हो जाती है-बिस्तर भी लगाते हैं उसको सलाने के लिए खाना भी खिलाते है
उसको खिलाने के लिए आवभगत भी करते हैं हाथ भी जोड़ते हैं। लेकिन पता होगा आपको
कि बिना बुलाए मेहमान के साथ क्या घर की हालत हो जाती है? यह सब ऊपर-ऊपर होता
है, भीतर कुछ भी नहीं। और पूरे वक्त यही इच्छा होती है कि कब आप विदा हों, कब
आप जाएं।
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