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संभोग से समाधि की ओर

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संभोग से समाधि की ओर...


जब भी कोई आदमी राम राम राम राम जपते मिले तो जरा गौर करना। उसके भीतर राम राम के जप के पीछे काम का जप चल रहा होगा सेक्स का जप चल रहा होगा। स्त्री को देखेगा और माला फेरने लगेगा, कहेगा राम राम राम राम राम। वह स्त्री दिखी कि वह ज्यादा जोर से राम राम कहता है।
क्यों?
वह भीतर जो काम बैठा है, वह धक्के मार रहा है। राम का नाम ले-लेकर उसे भुलाने की कोशिश करता है। लेकिन इतनी आसान तरकीबों से जीवन बदलते होते तो दुनिया कभी की बदल गई होती। उतना आसान रास्ता नहीं है। तो मैं आपसे कहना चाहता हूं कि काम को समझना जरूरी है अगर आप अपने राम की और परमात्मा की खोज को भी समझना चाहते हैं। क्यों? यह इसलिए मैं कहता हूं, कि एक आदमी बंबई से कलकत्ता की यात्रा करना चाहे, वह कलकत्ते के संबंध में पता लगाए कि कलकत्ता कहां है, किस दिशा मे है? लेकिन उसे यही पता न हो कि बंबई कहां है और किस दिशा में है और कलकत्ता की वह यात्रा करना चाहे, तो क्या वह कभी सफल हो सकेगा? कलकत्ता जाने के लिए सबसे पहले यह पता लगाना जरूरी है कि बंबई कहां है? जहां मैं हूं। वह किस दिशा में है? फिर कलकत्ते की तरफ दिशा विचार की जा सकती है। लेकिन मुझे यही पता नहीं कि बंबई कहां है, तो कलकत्ते के बाबत की सारी जानकारी फिजूल है...क्योंकि यात्रा मुझे बंबई से शुरू करनी पड़ेगी। यात्रा का प्रारंभ बंबई से करना है। और प्रारंभ पहले है, अंत बाद में है।
आप कहां खड़े हैं?
राम की यात्रा करना चाहते हैं वह ठीक। भगवान तक पहुंचना चाहते है, वह ठीक। लेकिन खड़े कहां हैं आप? खड़े तो काम में हैं खडे तो वासना में है, खड़े तो सेक्स में हैं। वह आपका निवासगृह है, जहां से आपको कदम उठाने हैं और यात्रा करनी है। तो पहले तो उस जगह को समझ लेना जरूरी है, जहां हम हैं। जो है उसे, जो एक्चुअलिटी, पहले जो वास्तविक है उसे पहले समझ लेना जरूरी है, तब हम उसे भी समझ सकते हैं जो संभावना है। जो पासिबिलटि है, जो हम हो सकते हैं उसे जानने के लिए, जो हम हैं उसे जान लेना जरूरी है। अंतिम कदम
को समझने के पहले पहला कदम समझ लेना जरूरी है, क्योंकि पहला कदम ही अंतिम कदम तक पहुंचाने का रास्ता बनेगा, और अगर पहला कदम ही गलत होगा तो अंतिम कदम कभी भी सही नहीं होने वाला है।
राम से भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण काम को समझना है, परमात्मा से भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण सेक्स को समझना है। क्यों इतना महत्वपूर्ण है?
इसलिए महत्त्वपूर्ण है कि अगर परमात्मा तक पहुंचना है तो सेक्स को बिना समझे आप नहीं पहुंच सकते। इसलिए यह मत पूछें।
रह गई अथारिटी की बात कि मैं अथारिटी हूं या नहीं-यह कैसे निर्णय होगा। अगर मैं ही इस संबंध में कुछ कहूंगा तो वह निर्णायक नहीं रहेगा क्योंकि मेरे संबंध में ही निर्णय होना है। अगर मैं ही कहूं कि मैं अथारिटी हूं तो उसका कोई मतलब नहीं है, अगर मैं कहूं कि मैं अथारिटी नहीं हूँ तो उसका भी कोई मतलब नहीं है; क्योंकि मेरे दोनों वक्तव्यों के संबंध में विचारणीय है कि अथारिटेटिव आदमी कह रहा है कि गैर अथारिटेटिव। मैं जो भी कर्हूगा इस संबंध में, वह फिजूल है। मैं अथारिटी हूं या नहीं यह तो आप थोड़े सेक्स की दुनिया में प्रयोग करके देखना। जब अनुभव आएगा तो पता चलेगा कि जो मैंने कहा था, वह अथारिटी थी या नहीं, उसके बिना कोई रास्ता नहीं है।

मैं आपसे कहता हूं कि तैरने का यह रास्ता है, आप कहे कि लेकिन हम कैसे मानें कि आप तैरने के संबंध में प्रामाणिक बात कह रहे हैं? तो मैं कहता हूं कि चलिए, आपको साथ लेकर नदी में उतरा जा सकता है, आपको नदी में उतारे देता हूं। मैंने जो कहा है आपको. अगर वह कारगर हो जाए पार होने में, हाथ-पैर चलाने मे और तैरने में तो आप समझना कि मैने कहा है, वह कुछ जानकर कहा है।

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