संभोग से समाधि की ओर
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संभोग से समाधि की ओर...
और मुझे नहीं दिखाई पड़ता कि ज्ञान मनुष्य को कही भी कोई हानि पहुंचा सकता है।
हानि हमेशा अंधकार से पहुंचती है और अज्ञान से। इसलिए अगर मनुष्य-जाति भ्रष्ट
हो गई; यौन के संबंध में विकृत और विक्षिप्त हो गई, सेक्स के संबंध में पागल
हो गई तो उसका जिम्मा उन लोगों पर नहीं है, जिन्होंने सेक्स के संबंध में
ज्ञान को खोज की है। उसका जिम्मा उन नैतिक, धार्मिक और थोथे साधु-संतों पर
है, जिन्होंने मनुष्य को हजारों वर्षों से अज्ञान में रखने की चेष्टा की है।
यह मनुष्य जाति कभी की सेक्स से मुक्त हो गई होती।
लेकिन नहीं यह हो सका। नहीं हो सका उनकी वजह से, जो अंधकार कायम रखने की
चेष्टा कर रहे हैं।
तो मैंने समझा कि अगर थोड़ी-सी किरण से इतनी बेचैनी हुई है तो फिर पूरे प्रकाश
की चर्चा कर लेनी उचित है। ताकि साफ हो सके कि जान मनुष्य को धार्मिक बनाता
है या अधार्मिक बनाता है। यह कारण था इसलिए यह विषय चुना। और अगर यह कारण न
होता तो शायद मुझे अचानक ख्याल न आता इसे चुनने का। शायद इस पर मैं कोई बात न
करता। इस लिहाज से वे लोग धन्यवाद के पात्र हैं, जिन्होंने अवसर पैदा कर दिया
और यह विषय मुझे चुनना पड़ा। और अगर आपको धन्यवाद देना हो तो मुझे मत देना।
वह भारतीय विद्याभवन ने, जिन्होंने सभा आयोजित की थी, उनको धन्यवाद देना।
उन्होंने ही यह विषय चुनवा दिया है। मेरा इसमें कोई हाथ नहीं है।
एक मित्र ने पूछा है कि मैंने कहा कि काम का रूपांतरण ही प्रेम बनता है। तो
उन्होंने पूछा है कि मां का बेटे के लिए प्रेम-क्या वह भी काम है, वह भी
सेक्स है? और भी कुछ लोगो ने इसी तरह के प्रश्न पूछे हैं।
इसे थोड़ा समझ लेना उपयोगी होगा।
अगर मेरी बात आपने ध्यान से सुनी है तो मैंने कहा कि सेक्स के अनुभव की बड़ी
गहराइयां हैं। जिन तक आदमी पहुंच भी नहीं पाता है। तीन तल हैं सेक्स के अनुभव
के, सेक्स के, वह मैं आपसे कहूं।
एक तल तो शरीर का तल है-बिल्कुल फिजियोलॉजीकल। एक आदमी वेश्या के पास जाता
है। उसे जो सेक्स का अनुभव होता हैँ, वह शरीर से गहरा नहीं हो सकता। वेश्या
शरीर बेच सकती है, मन नहीं बेचा जा सकता। और आत्मा को बेचने का तो कोई उपाय
नहीं है। शरीर मिल सकता है।
एक आदमी बलात्कार करता है, तो बलात्कार में किसी का मन भी नहीं मिल सकता और
किसी की आत्मा भी नहीं। शरीर पर बलात्कार किया जा सकता है। आत्मा पर बलात्कार
करने का न कोई उपाय है, न खोजा जा सका है, न खोजा जा सकता है। तो बलात्कार
में जो भी अनुभव होगा वह शरीर का होगा। सेक्स का प्राथमिक अनुभव शरीर से
ज्यादा गहरा नहीं होता। लेकिन शरीर के अनुभव पर ही जो रुक जाते हैं वे सेक्स
के पूरे अनुभव को उपलब्ध नहीं होते। उन्हें, मैंने जो गहराइयों की बातें कही
हैं उसका उन्हें कोई पता नहीं चल सकता। और अधिक लोग शरीर के तल पर ही रुक गए
हैं।
इस संबंध में यह भी जान लेना जरूरी है कि जिन देशों में भी प्रेम के बिना
विवाह होता है, उस देश में सेक्स शरीर के तल पर ही रुक जाता है और उससे गहरा
नहीं जा सकता।
विवाह दो शरीरों का हो सकता है, दो आत्माओं का नहीं। दो आत्माओं का प्रेम हो
सकता है।
तो अगर प्रेम से विवाह निकलता हो, तब तो विवाह एक गहरा अर्थ ले लेता है और
अगर विवाह दो पंडितों के और दो ज्योतिषियों के हिसाब-किताब मै निकलता हो, और
जाति के विचार से निकलता हो और धन के विचार से निकलता हो तो वैसा विवाह कभी
भी शरीर से ज्यादा गहरा नहीं जा सकता।
लेकिन ऐसे विवाह का एक फायदा है। शरीर मन के बजाए ज्यादा स्थिर चीज है। इसलिए
शरीर जिन समाजों में विवाह का आधार है, उन समाजों में विवाह सुस्थिर होगा।
जीवन-भर चल जाएगा।
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