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संभोग से समाधि की ओर

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संभोग से समाधि की ओर...


इन तीन दिनों में यही थोड़ी-सी बातें मैंने आपसे कहीं। निश्चित ही एक नए मनुष्य को जन्म देना है। मनुष्य के प्राण आतुर हैं ऊंचाइयों को छूने के लिए, आकाश में उठ जाने के लिए, चांद-तारों जैसे रोशन होने के लिए, फूलों जैसे खिल जाने के लिए, नृत्य के लिए, संगीत के लिए, आदमी की आत्मा रोती है और प्यासी है। और आदमी कोल्हू के बैल की तरह चक्कर में घूमता है और उसी में समाप्त हो जाता है! चक्कर के बाहर नहीं उठ पाता है! क्या है कारण?

मनुष्य के संभोग को हम द्वार नहीं बना सके समाधि का इसीलिए। मनुष्य का संभोग समाधि का द्वार बन सकता है।
इन तीन दिनों में इसी छोटे-से मत्र पर मैंने सारी बाते कहीं और अंत में एक बात दोहरा दूं और आज की चर्चा मैं पूरी करूं।
मैं यह कह देना चाहता हूं कि जीवन के सत्यों से आंखें चुराने वाले लोग मनुष्य के शत्रु हैं। जो आपसे कहें कि संभोग और सेक्स की बात का विचार भी नहीं करना चाहिए, वह आदमी मनुष्य का दुश्मन है, क्योंकि ऐसे ही दुश्मनों नें हमें सोचने नहीं दिया। अन्यथा यह कैसे संभव था कि हम आज तक वैज्ञानिक दृष्टि न खोज लेते। और जीवन को नया करने का प्रयोग न खोज लेते।
जो आपसे कहे कि सेक्स का धर्म से कोई सबंध नहीं है, वह आदमी सौ प्रतिशत गलत बात कहता है, क्योंकि सेक्स की ऊर्जा ही परिवर्तित और रूपांतरित होकर धर्म के जगत् मे प्रवेश पाती है। वीर्य की शक्ति ही उर्ध्वम्बा होकर मनुष्य को उन लोकों में ले जाती है, जिनका हमे कोई भी पता नहीं है, जहां कोई मृत्यु नहीं है, जहा कोई दुःख नहीं है, जहां आनंद के अतिरिक्त और कोई अस्तित्व नहीं है।

उस सतचित आनंद में ले जाने वाली शक्ति और ऊर्जा किसके पास है और कहां है?

हम उसे व्यय कर रहे हैं। हम उन पात्रों की तरह हैं जिनमें छेद हैं जिन्हें हम कुओं में डालते है खींचने के लिए। ऊपर तक पात्र तो आ जाता है शोरगुल भी बीच में बहुत होता है और पानी गिरता है और लगता है कि पानी आता होगा। लेकिन पानी सब बीच में गिर जाता है। खाली पात्र हाथ में वापस आ जाते है।
हम उन नावों की तरह है जिनमें छेद हैं। हम नावों को खेते है-सिर्फ डूबने के लिए; नावें किसी किनारे पर नहीं पहुंच पाती है, सिर्फ मंझधार में डुबा देती है और नष्ट कर देती हैं।
और ये सारे छिद्र मनुष्य की सेक्स ऊर्जा के गलत मार्गों से प्रवाहित और बह जाने के कारण हैं। और उन गलत मार्गों पर बहाने वाले लोग वे नहीं हैं, जिन्होने नंगी तस्वीरे लटकाई हैं वे नहीं हैं जिन्होंने नंगे उपन्यास लिखे हैं, वे नहीं है जो नंगी फिल्में बना रहे हैं।

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