संभोग से समाधि की ओर
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संभोग से समाधि की ओर...
नहीं प्रेम की शिक्षा का मतलब है : प्रेम का कारण नहीं; प्रेमपूर्ण होने की
सुविधा और व्यवस्था कि बच्चा प्रेमपूर्ण हो सके।
जो मां कहती है कि मुझसे प्रेम कर क्योंकि मैं मां हूं, वह प्रेम नहीं सिखा
रही। उसे यह कहना चाहिए कि यह तेरा व्यक्तित्व, यह तेरे भविष्य, यह तेरे आनंद
की बात है कि जो भी तेरे मार्ग पर पड़ जाए तू उससे प्रेमपूर्ण हो-पत्थर पड़
जाए, फूल पड़ जाए, आदमी पड़ जाए, जानवर पड़ जाए। यह सवाल जानवर को प्रेम देने का
नही, फूल को प्रेम देने का नहीं, मां को प्रेम देने का नहीं, तेरे प्रेमपूण
होने का है; क्योंकि तेरा भविष्य इस पर निर्भर करेगा कि तू कितना प्रेमपूर्ण
है। तेरा व्यक्तित्व कितना प्रेम से भरा हुआ है, उतना तेरे जीवन में आनंद की
संभावना बढ़ेगी।'
प्रेमपूर्ण होने की शिक्षा चाहिए मनुष्य को, तो वह कामुकता से मुक्त हो सकता
है।
लेकिन हम तो प्रेम की कोई शिक्षा नहीं देते, हम तो प्रेम का कोई भाव पैदा
नहीं करते, हम तो प्रेम के नाम पर भी जो बातें करते हैं वह झूठ ही सिखाते है
उनको।
क्या आपको पता है कि एक आदमी एक के प्रति प्रेमपूर्ण है और दूसरे के प्रति
घृणापूर्ण हो सकता है? यह असंभव है।
प्रेमपूर्ण आदमी प्रेमपूर्ण होता है, आदमी से कोई संबंध नहीं है उस बात का।
अकेले में बैठता है तो भी प्रेमपूर्ण होता है। कोई नहीं होता तो भी
प्रेमपूर्ण होता है। प्रेमपूर्ण होना उसके स्वभाव की बात है। वह आपसे संबंधित
होने का सवाल नही।
क्रोधी आदमी अकेले में भी क्रोधपूर्ण होता है। घृणा से भरा आदमी अकेले में भी
घृणा से भरा होता है। वह अकेले भी बैठा है तो आप उसको देख कर कह सकते हैं कि
यह आदमी क्रोधी है, हालांकि वह किसी पर क्रोध नहीं कर रहा है। लेकिन उसका
सारा व्यक्तित्व क्रोधी है।
प्रेमपूर्ण आदमी अगर अकेले में बैठा है तो आप कहेंगे, यह आदमी कितने प्रेम से
भरा हुआ बैठा है।
फूल एकांत में खिलते हैं जंगल के तो वहां भी सुगंध बिखेरते रहते हैं, चाहे
कोई सूंघने वाला हो या न हो, रास्ते से कोई निकले या न निकले। फूल सुगंधित
होता रहता है। फूल का सुगंधित होना स्वभाव है। इस भूल में आप मत पड़ना कि आपके
लिए सुगंधित हो रहा है।
प्रेमपूर्ण होना व्यक्तित्व बनाना चाहिए। वह हमारा व्यक्तित्व हो, इससे कोई
संबंध नहीं कि वह किसके प्रति।
लेकिन जितने प्रेम करने वाले लोग हैं वे सोचते है कि मेरे प्रति प्रेमपूर्ण
हो जाए और किसी के प्रति नहीं। और उनको पता नहीं कि जो सबके प्रति प्रेमपूर्ण
नहीं, वह किसी के प्रति प्रेमपूर्ण नहीं हो सकता!
पत्नी कहती है पति से, मुझे प्रेम करना बस, फिर आ गया स्टाप। फिर इधर-उधर
कहीं देखना मत, फिर और कही तुम्हारे प्रेम की जरा-सी धारा न बहे, बस प्रेम
यानी इस तरफ। ओर उस पत्नी को सता नहीं कि यह प्रेम झूठा वह अपने हाथ से किए
ले रही है। जो पति प्रेमपूर्ण नहीं है हर स्थिति में, हरेक के प्रति वह पत्नी
के प्रति भी प्रेमपूर्वक कैसे हो सकता है?
प्रेमपूर्ण चौबीस घंटे के जीवन का स्वभाव है। वह ऐसी कोई बात नहीं कि हम किसी
के प्रति प्रेमपूर्ण हो जाए और किसी के प्रति प्रेमहीन हो जाएं, लेकिन आज तक
मनुष्यता इसको समझने में समर्थ नहीं हो पायी।
बाप कहता है कि मेरे प्रति प्रेमपूर्ण! लेकिन घर में जो चपरासी है उसके
प्रति-वह तो नौकर है! लेकिन उसे पता है कि जो बेटा एक बूढ़े नौकर के प्रति
प्रेमपूर्ण नहीं हो पाया है...वह बूढ़ा नौकर भी किसी का बाप है।
लेकिन उसे पता नहीं कि जो बेटा एक बूढ़े नौकर के प्रति प्रेमपूर्ण नहीं हो
पाया है, वह बूढा नौकर भी किसी का बाप है। वह आज नहीं कल जब उसका बाप भी बूढ़ा
हो जाएगा, उसके प्रति भी प्रेमपूर्ण नहीं रह जाएगा। तब यह बाप पछताएगा कि
मेरा लड़का मेरे प्रति प्रेमपूर्ण नहीं है। लेकिन इस बाप को पता ही नहीं कि
लड़का प्रेमपूर्ण हो सकता था उसके प्रति भी, अगर जो भी आसपास थे, सबके प्रति
प्रेमपूर्ण होने की शिक्षा दी गयी होती तो वह उसके प्रति भी प्रेमपूर्ण होता।
प्रेम स्वभाव की बात है, संबध की बात नहीं है।
प्रेम रिलेशनशिप नहीं है, प्रेम है 'स्टेट ऑफ माइड'! मनुष्य के व्यक्तित्व का
भीतरी अंग है
तो हमे प्रेमपूर्ण होने की दूसरी दीक्षा दी जानी चाहिए-एक-एक चीज के प्रति।
अगर बच्चा एक किताब को भी गलत बात से रखे तो गलत बात है, उसे उसी क्षण टोकना
चाहिए कि यह तुम्हारे व्यक्तित्व के लिए शोभादायक नहीं है कि तुम इस भांति
किताब को रखो। कोई देखेगा कोई सुनेगा कोई पाएगा कि तुम किताब के साथ
दुर्व्यवहार किए हो? तुम कुत्ते के साथ गलत ढंग से पेश आए हो। यह तुम्हारे
व्यक्तित्व की गलती है।
एक फकीर के बाबत मुझे खयाल आता है। एक छोटा-सा फकीर का झोपड़ा था। रात थी, जोर
से वर्षा होती थी। रात के बारह बजे होंगे। फकीर और उसकी पत्नी दोनों सोते थे।
किसी आदमी ने दरवाजे पर दस्तक दी। छोटा-सा झोपड़ा कोई शायद शरण चाहता है। उसकी
पत्नी से उसने कहा कि द्वार खोल दे, कोई द्वार पर खड़ा है, कोई यात्री, कोई
अपरिचत मित्र।
सुनते हैं उसकी बात? उसने कहा, कोई अपरिचित मित्र! हमारे तो जो परिचित हैं वह
भी मित्र नहीं होते। उसने कहा कोई अपरिचित मित्र। यह प्रेम का भाव है।
कोई अपरिचित मित्र द्वार पर खड़ा है, द्वार खोल। उसकी पत्नी ने कहा, लेकिन जगह
तो बहुत कम है, हम दो के लायक ही मुश्किल से है। कोई तीसरा आदमी भीतर आएगा तो
हम क्या करेंगे?
उस फकीर ने कहा, पागल यह किसी अमीर का महल नहीं है कि छोटा पड़ जाए, यह गरीब
की झोपड़ी है; अमीर का महल छोटा पड़ जाता है हमेशा एक मेहमान आ जाए तो महल छोटा
पड़ जाता है। यह गरीब की झोपड़ी है।
उसकी पत्नी ने कहा, इसमें झोपड़ी...अमीर ?भइाएएर गरीब क्या सवाल है? जगह छोटी
है।
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