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संभोग से समाधि की ओर

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संभोग से समाधि की ओर...


उस अनुभव को अगर हम देख पाएं तो हम सेक्स के ऊपर उठ सकते है। अगर उस अनुभव को हम न देख पाएं तो हम सेक्स में ही जिएंगे और मर जाएंगे। उस अनुभव को अगर हम देख पाएं-अंधेरी रात है और अंधेरी रात में बिजली चमकती है। बिजली की चमक अगर हमें दिखाई पड़ जहर और बिजली को अगर हम समझ लें तो अंधेरी रात को हम मिटा भी सकते हैं। लेकिन अगर हम यह समझ लें कि अंधेरी रात के कारण बिजली चमकती है तो फिर हम अंधेरी रात को और घना करने की कोशिश करेंगे, ताकि बिजली चमके!
सेक्स की घटना में बिजली चमकती है एक। वह सेक्स से अतीत है, ट्रांसेंड करती है, पार से आती है। उसपार के अनुभव को अगर हम पकड़ ले, तो हम सेक्स के ऊपर उठ सकते हैं अन्यथा नहीं। लेकिन जो लोग सेक्स के विरोध में खड़े हो जाते हैं वे अनुभव को समझ भी नहीं पाते कि-वह अनुभव क्या है। वे कभी यह ठीक विश्लेषण भी नही कर पाते कि हमारी आतुरता किस चीज के लिए हैं।

मैं आपसे कहना चाहता हूं कि संभोग का इतना आकर्षण क्षणिक समाधि के लिए है। और संभोग से आप उस दिन मुक्त होंगे, जिस दिन आपको समाधि बिना संभोग के मिलना शुरू हो जाएगी। उसी दिन संभोग से आप मुक्त हो जाएंगे, सेक्स से मुक्त हो जाएंगे।
क्योंकि एक आदमी हजार रुपए खोकर थोड़ा-सा अनुभव पाता हो और कल हम उसे बता दें कि रुपए खोने की कोई जरूरत नहीं, इस अनुभव की तो खदानें भरी पड़ी हैं। तुम चलो इस रास्ते से और उस अनुभव को पा लो। तो फिर वह हजार रुपए खोकर उस अनुभव को खरीदने बाजार में नही जाएगा।
सेक्स जिस अनुभूति को लाता है, अगर वह अनुभूति किन्हीं और मार्गों से उपलब्ध हो सके, तो आदमी का चित्त सेक्स की तरफ बढ़ना, अपने आप बंद हो जाता है। उसका चित्त एक नई दिशा लेनी शुरू कर देता है।
इसलिए मैं कहता हूं, जगत् में समाधि का पहला अनुभव मनुष्य को सेक्स के अनुभव से ही उपलब्ध हुआ है।
लेकिन वह बहुत महंगा अनुभव है, वह अति महंगा अनुभव है। और दूसरा कारण है कि वह अनुभव कभी एक क्षण से ज्यादा गहरा नहीं हो सकता। एक क्षण को झलक मिलेगी और हम वापस अपनी जगह पर लौट आते हैं। एक क्षण को किसी लोक में उठ जाते हैं किसी गहराई पर, किसी पीक एक्सपीरिएस पर, किसी शिखर पर पहुंचना होता है। और हम पहुंच भी नहीं पाते और वापस गिर जाते हैं। जैसे समुद्र की एक लहर आकाश में उठती है, उठ भी नही पाती, पहुंच भी नहीं पाती, हवाओं में सिर उठा भी नहीं पाती और गिरना शुरू हो जाती है।
ठीक हमारा सेक्स का अनुभव-बार-बार शक्ति को इकट्ठा करके हम उठने की चेष्टा करते है। किसी गहरे जगत में, किसी, ऊंचे जगत में एक क्षण को हम उठ भी नहीं पाते और सब लहरें बिखर जाती हैं। हम वापस अपनी जगह खड़े हो जाते है और उतनी शक्ति और ऊर्जा को गंवा देते हैं।

लेकिन अगर सागर की लहर बर्फ का पत्थर बन जाए, जम जाए और बर्फ हो जाए तो फिर उसे नीचे गिरने की कोई जरूरत नहीं है। आदमी का चित्त जब तक सेक्स की तरलता मैं बहता है, तब तक वापस उठता है, गिरता है। उठता है गिरता है, सारा जीवन यही करता है।
और जिस अनुभव के लिए इतना तीव आकर्षण है-डगोलैसनेस के लिए-अहंकारशून्य हो जाए मैं आत्मा को जान लूं। समय मिट जाए और मैं उसको जान लूं, जो 'इंटरनल' है जो टाइमलेस है। उसके जान लू, जो समय के बाहर है, अनंत और अनादि है। उसे जानने की चेष्टा मे सारा जगत सेक्स के केंद्र पर घूमता रहता है।

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