संभोग से समाधि की ओर
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संभोग से समाधि की ओर...
बिजली की तरफ हम आंख मूंदकर खड़े हो जाते तो हम कभी बिजली के राज को न समझ
पाते और न कभी उसका उपयोग कर पाते। वह हमारी दुश्मन ही बनी रहती। लेकिन नहीं
आदमी ने बिजली के प्रति दोस्ताना भाव बरता। उसने बिजली को समझने की कोशिश की,
उसने प्रयास किए जानने के और धीरे-धीरे बिजली उसकी साथी हो गई। आज बिना बिजली
के क्षणभर जमीन पर रहना मुश्किल मालूम होगा।
मनुष्य के भीतर बिजली से भी बड़ी ताकत है सेक्स की।
मनुष्य के भीतर अणु की शक्ति से भी बड़ी शक्ति है सेक्स की।
कभी आपने सोचा लेकिन यह शक्ति क्या है और कैसे हम इसे रूपांतरित करें? एक
छोटे-से अणु में इतनी शक्ति है कि हिरोशिमा का पूरा-का-पूरा एक लाख का नगर
भस्म हो सकता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि मनुष्य के काम की ऊर्जा का एक
अणु एक-नए व्यक्ति को जन्म देता है? उस व्यक्ति में गाधी पैदा हो सकता है, उस
व्यक्ति मैं महावीर रौदा हो सकता है, उस व्यक्ति में बुद्ध पैदा हो सकता है,
क्राइस्ट पैदा हो सकता है। उससे आइंसटीन पैदा हो सकता है, और न्यूटन पैदा हो
सकता है। छोटा-सा अणु एक मनुष्य की काम ऊर्जा का, एक गांधी को छिपाए हुए है।
गांधी जैसा विराट् व्यक्तित्व जन्म पा सकता है।
लेकिन हम सेक्स को समझने को राजी नही हैं! लेकिन हम सेक्स की ऊर्जा के संबंध
में बात करने की हिम्मत जुटाने को राजा नही हैं! कौन-सा भय हमें पकडे दुए है
कि जिससे सारे जीवन का जन्म होता है, उस शक्ति को हम समझना नही चाहते? कौन-सा
डर है, कौन-सी घबराहट है?
मैंने पिछली बंबई की सभा मे इस संबंध में कुछ बातें की थीं, तो बड़ी घबराहट
फैल गई। मुझे बहुत-से पत्र पहुंचे कि आप इस तरह की बातें मत कहें। इस तरह की
बात ही मत करें! मैं बहुत हैरान हुआ कि इस तरह की बात क्यों न की जाए? अगर
शक्ति है हमारे भीतर तो उसे जाना क्यों न जाए? उसे क्यों न पहचाना जाए? और
बिना जाने पहचाने, बिना उसके नियम समझे, हम उस शक्ति को और ऊपर कैसे ले जा
सकते हैं? पहचान से हम उसको जीत भी सकते हैं बदल भी सकते हैं? लेकिन बिना
पहचाने तो हम उसके हाथ में ही मरेंगे और मडेंगे, और कभी उससे मुक्त नही हो
सकते।
जो लोग सेक्स के संबंध मे बात करने की मनाही करते हैं वे ही लोग पृथ्वी को
सेक्स के गड्ढे में डाले हुए हैं यह मैं आपसे कहना चाहता हूं। जो लोग घबराते
हैं और जो समझते हैं कि धर्म का सेक्स से कोई संबंध नहीं वे खुद तो पागल है
ही, वे सारी पृथ्वी को पागल बनाने में सहयोगी हो रहे हैं।
धर्म का संबंध मनुष्य की ऊर्जा के 'टांसफामेंशन' से है। धर्म का संबंध मनुष्य
की शक्ति को रूपांतरित करने से है।
धर्म चाहता है कि मनुष्य के व्यक्तित्व मेँ जो छिपा है, वह श्रेष्ठतम रूप से
अभिव्यक्त हो जाए। धर्म चाहता है कि मनुष्य का जीवन निम्न से उच्च की एक
यात्रा बने। पदार्थ से परमात्मा तक पहुंच जाए।
लेकिन यह चाह तभी पूरी हो सकती है...हम जहां जाना चाहते हैं उस स्थान को
समझना उतना उपयोगी नहीं, जितना उस स्थान को समझना उपयोगी है, जहां हम खड़े
हैं; क्योंकि वही में यात्रा शुरू करनी पड़ती है।
सेक्स है फैक्ट, सेक्स जो है वह तथ्य है मनुष्य के जीवन का। और परमात्मा?
परमात्मा अभी दूर है। सेक्स हमारे जीवन का तथ्य है। इस तथ्य को समझकर हम
परमात्मा के सत्य तक यात्रा कर भी सकते हैं, लेकिन इसे बिना समझे एक इंच आगे
नहीं जा सकते। कोल्हू के बैल की तरह इसी के आसपास घूमते रहेंगे।
मैंने जो पिछली सभा में कुछ बातें कही तो मुझे ऐसा लगा कि जैसे हम जीवन की
वास्तविकता को समझने की भी तैयारी नहीं दिखाते! तो फिर हम और क्या कर सकते
हैं? और आगे क्या हो सकता है? फिर ईश्वर, परमात्मा की सारी बातें सात्वना की,
कोरी सांत्वना की बातें हैं और झूठी हैं। क्योंकि जीवन के परम सत्य चाहे
कितने ही नग्न हों, उन्हें जानना ही पड़ेगा, समझना ही पड़ेगा।
तो पहली बात तो यह जान लेना जरूरी है कि मनुष्य का जन्म सेक्स में होता हैं।
मनुष्य का सारा व्यक्तित्व सेक्स के अणुओं से बना हुआ है। मनुष्य का सारा
प्राण सेक्स की ऊर्जा से भरा हुआ है। जीवन की ऊर्जा अर्थात् काम की ऊर्जा। यह
जो काम की ऊर्जा है, यह जो 'सेक्स इनजीं' है, यह क्या है? यह क्यों हमारे
जीवन को इतने जोरसे आंदोलित करती है! क्यों हमारे जीवन को इतना प्रभावित करती
है? क्यों हम घूम-घूम कर सेक्स के आसपास इर्द-गिर्द ही चक्कर लगाते है और
समाप्त हो जाते हैं? कौन-सा आकर्षण है इसका?
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