संभोग से समाधि की ओर
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संभोग से समाधि की ओर...
यह लड़का फूलों का ताज पहनता और नाचता और वृक्ष बहुत खुश होता। उसके प्राण
आनंद से भर जाते। हवाएं सनसनातीं और वह गीत गाता।
फिर लड़का और बड़ा हुआ। वह वृक्ष के ऊपर भी चढ़ने लगा, उसकी शाखाओं से झूलने भी
लगा। वह उसकी शाखाओं पर विश्राम भी करता और वृक्ष बहुत आनंदित होता। प्रेम
आनंदित होता है, जब प्रेम किसी के लिए छाया बन जाता है।
अहंकार आनंदित होता है, जब किसी की छाया छीन लेता है।
लेकिन लड़का बड़ा होता चला गया। दिन बढ़ते चले गए। जब लड़का बडा हो गया तो उसे और
दूसरे काम भी दुनिया में आ गए। महत्वाकांक्षाएं आ गईं। उसे परीक्षाएं पास
करनी थी उसे मित्रो को जीतना था। वह फिर कभी-कभी आता, कभी नहीं भी आता, लेकिन
वृक्ष उसकी प्रतीक्षा करता कि वह आए वह आए। उसके सारे प्राण पुकारते कि आओ,
आओ!
प्रेम निरंतर प्रतीक्षा करता है कि आओ, आओ।
प्रेम एक प्रतीक्षा है, एक अवेटिंग है।
लेकिन वह कभी आता, कभी नहीं आता तो वृक्ष उदास हो जाता।
प्रेम की एक ही उदासी है-जब वह बांट नहीं पाता है, तो उदास हो जाता है। जब वह
दे नहीं पाता तो उदास हो जाता है।
और प्रेम की एक ही धन्यता है कि जब वह बांट देता है, लुटा देता है तो आनंदित
हो जाता है।
फिर लड़का और बड़ा होता चला गया और वृक्ष के पास आने के दिन कम होते चले गए।
जो आदमी जितना बड़ा होता चला जाता है महत्वाकांक्षा के जगत में, प्रेम के निकट
आने की सुविधा उतनी ही कम होती चली जाती है। उस लड़के की
एबीशन महात्त्वाकांक्षा बढ़ रही थीं। कहां वृक्ष, कहां जाना!
फिर एक दिन वहां से निकला था तो वृक्ष ने उसे कहा, सुनो। हवाओं में उसकी आवाज
गूंजी कि सुनो, तुम आते नहीं, मैं प्रतीक्षा करता हूं। मैं तुम्हारे लिए
प्रतीक्षा...राह करता हूं, राह देखता हूं, बाट जोहता हूं?
उस लड़के ने कहा, क्या है तुम्हारे पास जो मैं आऊ? मुझे रुपए चाहिए। हमेशा
अहंकार पूछता है कि क्या है तुम्हारे पास, जो मैं आऊं। अहंकार मांगता है कि
कुछ हो तों मैं आऊं। न कुछ हो तो आने की कोई जरूरत नहीं। अहंकार एक प्रयोजन
है, एक परपज है। प्रयोजन पूरा होता है तो मैं आऊं! अगर कोई प्रयोजन न हो तो
आने की जरूरत क्या है।
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