अमेरिकी यायावर
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उत्तर पूर्वी अमेरिका और कैनेडा की रोमांचक सड़क यात्रा की मनोहर कहानी
रास्ते के दोनों तरफ जंगल था और ऐसा लगता था कि यह जंगल सदियों से ऐसा ही रहा
होगा। कभी-कभी मृत हो गये वृक्षों के तने दिखते थे। सर्दियों में यहाँ पर इन
वृक्षों की जगह केवल उनके ठूँठ ही रहते होंगे। क्योंकि सर्दियाँ आते ही सारे
पत्ते झड़ जाते हैं। जब उन पर बर्फ पड़ती होगी तो यहाँ की सारी वनस्पति समाधि
में चली जाती होगी और मौसम बदलने पर फिर से वही पत्ते और प्रकृति निखर आती
होगी। अमेरिका का अधिकांश भू-भाग जहाँ सर्दियों में बर्फ पड़ती है, लगभग ऐसा ही
दिखता है। गर्मियों में जिस नैसर्गिक तरीके से यहाँ वृक्ष और छोटे पौधे दिख रहे
हैं, इनको देखकर यह अनुमान लगाना मुश्किल होता है कि लगभग 6 महीनों तक इस जंगल
में पेड़ों के ठूँठों के बीच से आप बहुत दूर तक देख सकते हैं। गर्मियों में आप
अधिक से अधिक 100 या 150 फीट तक देख पाते हैं क्योंकि वृक्षों के तने, शाखाएँ
और पत्ते आपको उससे अधिक देखने ही नहीं देते।
ऊपर चढ़ते हुए हमने अपनी बायीं तरफ पानी की एक छोटी सी धार देखी जो कि पर्वत के
ऊपरी हिस्से से आ रही थी। उसके पानी की धारा के बीच पड़े पत्थरों में बैठकर हम
थोड़ी देर जल प्रवाह का आनन्द लेते रहे। मैं जब भी ऐसी कोई जगह देखता हूँ तो
हमेशा हतप्रभ रह जाता हूँ कि ऐसे स्थानों पर बहने वाला जल कितना स्वच्छ और
निर्मल दिखता है। ऐसे स्थानों को देखकर मुझे हर बार यही इच्छा बलवती हो उठती है
कि कम से कम एक बार मुझे गंगोत्री की यात्रा अवश्य करनी है।
पर्वत की चोटी तक पहुँचते-पहुँचते हमें निश्चित रूप से आधे घंटे से अधिक लगा
होगा! यूँ तो सपाट जमीन पर ही यदि एक मील जाना हो तो साधारण चाल से चलने पर
कम-से-कम 15-20 मिनट लग ही जाते हैं। चढ़ते समय तो हमारी चाल और भी धीमी ही रही
होगी। ट्रेल के रास्ते में पर्वत की जो सबसे ऊँची चोटी पड़ी, उस पर पहुँचने के
बाद हम दोनों ने वहाँ के कई फोटो खींचे। इस स्थान से इस श्रँखला के दूसरे
पर्वतों की चोटियाँ और खाइयाँ दिख रही थीं।
मैने मेरी एन से इशारे में पूछा, “क्या आगे वाली ट्रेल पर चलें?” उसने इस
प्रश्न का उत्तर आगे बढ़कर उतर कर दिया। कुछ कदम आगे जाने के बाद उसने मुझसे
पूछा, “आप क्या सुन रहे हैं?” मैं अपने कान में हैडफोन लगाए था और चढ़ाई के
साथ-साथ पुराने फिल्मी गानों का आनन्द ले रहा था। मेरी एन ने अभी कुछ क्षणों
पहले ही अपना हैडफोन उतार कर अपने झोले में रखा था। ऐसा लग रहा था कि पर्वत की
ऊँचाई की सीमा अनुभव कर लेने के पश्चात् उसका उत्साह कई गुणा बढ़ गया था और वह
अपनी सभी इंद्रियों और मन के साथ प्रकृति का आनन्द ले रही थी। मैंने उसके
प्रश्न के उत्तर में कहा, “मैं तो भारतीय संगीत सुन रहा हूँ, जो कि आपको शायद
ही समझ में आये!” वह बोली, “क्या आप अपने फोन को स्पीकर से जोड़ सकते हैं, भाषा
न भी समझ में आये, तब भी कम-से-कम धुनों का मजा ले सकती हूँ। “
ब्लू डॉट ट्रेल पर हम पहाड़ से उतर रहे थे, इसलिए हमने अपेक्षाकृत अधिक दूरी
जल्दी ही तय कर ली। मेरी एन के कहने अनुसार मैंने अपने फोन पर बजने वाले गाने
की आवाज को स्पीकर वाले मोड में लगा दिया। उस शांत वातावरण में भारतीय संगीत की
स्वर लहरी कुछ विचित्र सुनाई पड़ रही थी। तभी मुझे याद आया कि मेरे पास जाबरा
का तेज और धमकती हुई आवाज करने वाला वायरलैस स्पीकर भी था, जिस पर अपने फोन के
ब्लू टूथ से मैं गाने बजाता था।
एक छोटे झरने पर एक आदमी के चलने लायक बने हुए लगभग 12 फीट लंबाई के पुल को पार
करने के बाद मैंने रुककर अपने झोले से जाबरा का स्पीकर निकाल कर उसका ब्लू टूथ
कनेक्शन आन ही किया था, कि अचानक आगे चल रही मेरी एन की घुटी हुई चीख सुनाई
पड़ी। मैंने यह सोचते हुए कि शायद उसके पैर में मोच आई होगी, जैसे ही अपना सिर
ऊपर उठाया तो मैं स्वयं भी अपने स्थान पर बिलकुल जड़ हो गया। लकड़ी के पुल से
उतरने के तुरंत बाद ही ट्रेल अचानक दायीं और मुड़ गई थी।
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