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चन्द्रकान्ता सन्तति - 6

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चन्द्रकान्ता सन्तति 6 पुस्तक का ईपुस्तक संस्करण...

बारहवाँ बयान


विवाह का सब सामान ठीक हो गया, मगर हर तरह की तैयारी हो जाने पर भी लोगों की मेहनत में कमी नहीं हुई। सबकोई उसी तरह दौड़-धूप और काम-काज में लगे हुए दिखायी दे रहे हैं। महाराज सुरेन्द्रसिंह सभों को लिये हुए चुनारगढ़ चले गये। अब इस तिलिस्मी मकान में सिर्फ जरूरत की चीजों के ढेर और इन्तजामकार लोगों के डेरे-भर ही दिखायी दे रहे हैं। इस मकान में से उन लोगों के लिए भी रास्ता बनाया गया है, जो हँसते-हँसते उस तिलिस्मी इमारत में कूदा करेंगे, जिसके बनाने की आज्ञा इन्द्रदेव को दी गयी थी, और जो इस समय बनकर तैयार हो गयी है।

यह इमारत बीस गज लम्बी और इतनी ही चौड़ी थी। ऊँचाई इसकी लगभग चालीस हाथ से कुछ ज्यादे होगी। चारों तरफ की दीवार साफ और चिकनी थी, तथा किसी तरफ कोई दरवाजे का निशान दिखायी नहीं देता था। पूरब तरफ ऊपर चढ़ जाने के लिए छोटी सीढ़ियाँ बनी हुई थीं, जिनके दोनों तरफ हिफाजत के लिए लोहे के सींखचे लगा दिये गये थे। उसी पूरब तरफवाली दीवार पर बड़े-बड़े हरफों में यह भी लिखा हुआ था– ‘‘जो आदमी इन सीढ़ियों की राह ऊपर जायगा और एक नजर अन्दर की तरफ झाँक, वहाँ की कैफियत देखकर इन्हीं सीढ़ियों की राह नीचे उतर आवेगा, उसे एक लाख रुपये इनाम में दिये जायँगे।’’

इस इमारत ने चारों तरफ एक अनूठा रंग पैदा कर दिया था। हजारों आदमी उस इमारत के ऊपर चढ़ जाने के लिए तैयार थे और हरएक आदमी अपनी-अपनी लालसा पूरी करने के लिए जल्दी मचा रहा था, मगर सीढ़ी का दरवाजा बन्द था। पहरेदार लोग किसी को ऊपर जाने की इजाजत नहीं देते थे और यह कहकर सभों को सन्तोष करा देते थे कि बारात-वाले दिन दरवाजा खुलेगा और पन्द्रह दिन तक बन्द न होगा।

यहाँ से चुनारगढ़ की सड़कों के दोनों तरफ जो सजावट की गयी थी, उसमें भी एक अनूठापन था। दोनों तरफ रोशनी के लिए जाफरी बनी हुई थी, और उसमें अच्छे-अच्छे नीति के श्लोक दरसाये गये थे। बीचोबीच में थोड़ी-थोड़ी दूर पर नौबतखाने के बगल में एक-एक मचान था, जिसपर एक या दो कैदियों के बैठने के लिए जगह बनी हुई थी। जाफरी के दोनों तरफ दस हाथ चौड़ी जमीन में बाग का नमूना तैयार किया गया था, और इसके बाद आतिशबाजी लगायी गयी थी। आध-आध कोस की दूरी पर सर्वसाधारण और गरीब तमाशबीनों के लिए महफिल तैयार की गयी थी, और उसके लिए अच्छी-अच्छी गानेवाली रण्डियाँ और भाँड मुकर्रर किये गये थे। रात अँधेरी होने के कारण रोशनी का सामान ज्यादे तैयार किया गया था, और वह तिलिस्मी चन्द्रमा जो दोनों राजकुमारों को तिलिस्म के अन्दर से मिला था, चुनारगढ़ किले के ऊँचे कंगूरे पर लगा दिया गया था, जिसकी रोशनी इस तिलिस्मी मकान तक बड़ी खूबी और सफाई के साथ पड़ रही थी। (*देखिए चन्द्रकान्ता सन्तति-6, इक्कीसवाँ भाग, आठवाँ बयान।)

पाठक, दोनों कुमारों के बारात की सजावट महफिलों की तैयारी, रोशनी और आतिशबाजी की खूबी, मेहमानदारी की तारीफ और खैरात की बहुतायत इत्यादि का हाल विस्तारपूर्वक लिखकर पढ़नेवालों का समय नष्ट करना, हमारी आत्मा और आदत के विरुद्ध है। आप खुद समझ सकते हैं कि दोनों कुमारों की शादी का इन्तजाम किस खूबी के साथ किया गया होगा, नुमायश की चीजें कैसी अच्छी होंगी, बड़प्पन का कितना बड़ा खयाल किया गया होगा, और बारात किस धूमधाम से निकली होगी। हम आज तक जिस तरह संक्षेप में लिखते आये हैं, अब भी उसी तरह लिखेंगे, तथापि हमारी उन लिखावटों से जो ब्याह के सम्बन्ध में ऊपर कई दफे मौके-मौके पर लिखी जा चुकी हैं, आपको अन्दाज के साथ-साथ अनुमान करने का हौसला भी मिल जायगा और विशेष सोच-विचार की जरूरत न रहेगी। हम इस जगह पर केवल इतना ही लिखेंगे कि– बारात बड़े धूमधाम से चुनारगढ़ के बाहर हुई। आगे-आगे नौबतनिशान और उसके बाद सिलसिलेवार फौजी सवार, पैदल और तोपखाने वगैरह थे, जिसके बाद ऐसी फुलवारियाँ थीं, जिनके देखने से खुशी और लूटने से दौलत हासिल हो। इसके बाद बहुत बड़े सजे हुए अम्बारीदार हाथी पर दोनों कुमार हाथी ही पर सवार अपने बड़े बुजुर्गों रिश्तेदारों और मेहमानों से घिरे हुए धीरे-धीरे दोतर्फी बहार लूटते और दुश्मनों के कलेजों को जलाते हुए जा रहे थे और उनके बाद तरह-तरह की सवारियों और घोड़ों पर बैठे हुए बड़े-बड़े सरदार लोग दिखायी दे रहे थे।

कुशल पूर्वक बारात ठिकाने पहुँची और शास्त्रानुसार कर्म तथा रीति होने के बाद कुँअर इन्द्रजीतसिंह का विवाह किशोरी और आनन्दसिंह का विवाह कामिनी के साथ हो गया और इस काम में रणधीरसिंह ने भी वित्त के अनुसार दिल खोलकर खर्च किया। दूसरे रोज पहर-भर दिन चढ़ने के पहिले ही दोनों बहुओं की रुखसती कराकर महाराज चुनार की तरफ लौट पड़े।

चुनारगढ़ पहुँचने पर जोकुछ रस्में थीं, वे पूरी होने लगीं और मेहमान तथा तमाशबीन लोग तरह-तरह के तमाशों और महफिलों का आनन्द लूटने लगे। उधर तिलिस्मी मकान की सीढ़ियों पर लाख रुपया इनाम पाने की लालसा से लोगों ने चढ़ना आरम्भ किया। जो कोई दीवार के ऊपर पहुँचकर अन्दर की तरफ झाँकता, वह अपने दिल को किसी तरह न सम्हाल सकता, और एक दफे खिलखिलाकर हँसने के बाद अन्दर की तरफ कूद पड़ता और कई घण्टे के बाद उस चबूतरेवाली बहुत बड़ी तिलिस्मी इमारत की राह से बाहर निकल जाता।

बस, विवाह का इतना ही हाल संक्षेप में लिखकर हम इस बयान को पूरा करते हैं और इसके बाद सोहागरात की एक अनूठी घटना का उल्लेख करके इस बाईसवें भाग को समाप्त करेंगे, क्योंकि हम दिलचस्प घटनाओं ही का लिखना पसन्द करते हैं।

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