लोगों की राय

चन्द्रकान्ता सन्तति - 5

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: author_hindi

Filename: views/read_books.php

Line Number: 21

निःशुल्क ई-पुस्तकें >> चन्द्रकान्ता सन्तति - 5

चन्द्रकान्ता सन्तति 5 पुस्तक का ई-संस्करण...

तीसरा बयान


महाराज से जुदा होकर देवीसिंह और बलभद्रसिंह से बिदा होकर भूतनाथ, ये दोनों ही नकाबपोशों का पता लगाने के लिए चले गये। बचा हुआ दिन और तमाम रात तो किसी ने इन दोनों की खोज न की, मगर दूसरे दिन सवेरा होने के साथ ही इन दोनों की तलबी हुई और थोड़ी ही देर में जवाब मिला कि उन दोनों का पता नहीं है कि कहाँ गये और अभी तक क्यों नहीं आये। हमारे महाराज समझ गये कि देवीसिंह की तरह भूतनाथ भी उन्हीं दोनों नकाबपोशों का पता लगाने चला गया, मगर उन दोनों के न लौटने से एक तरह की चिन्ता पैदा हो गयी और लाचार होकर आज दरबारे-आम का जलसा बन्द रखना पड़ा।

दरबारे-आम बन्द होने की खबर वहाँ के लोगों को तो मिल गयी, मगर वे दोनों नकाबपोश अपनी मामूली समय पर आ ही गये और उनके आने की इत्तिला राजा बीरेन्द्रसिंह से की गयी। उस समय राजा बीरेन्द्रसिंह एकान्त में तेजसिंह तथा और भी कई ऐयारों के साथ बैठे हुए देवीसिंह तथा भूतनाथ के बारे ही में बात कर रहे थे। उन्होंने ताज्जुब के साथ नकाबपोशों का आना सुना और उसी जगह हाजिर करने का हुक्म दिया।

हाजिर होकर दोनों नकाबपोशों ने बड़े अदब से सलाम किया और आज्ञा पाकर महाराज से थोड़ी दूर पर तेजसिंह की बगल में बैठ गये। इस समय तखलिये का दरबार था, तथा गिनती के मामूली आदमी बैठे हुए थे, राजा बीरेन्द्रसिंह को नकाबपोशों की बातें सुनने का शौक था, इसलिए तेजसिंह के बगल ही में बैठ जाने की आज्ञा दी और स्वयं बाततीत करने लगे।

बीरेन्द्र : आज भूतनाथ के न होने के कारण मुकदमे की कार्रवाई रोक देनी पड़ी।

नकाबपोश : (अदब से हाथ जोड़कर) जी हाँ, मैंने यहाँ पहुँचने के साथ ही सुना कि ‘कल से देवीसिंह जी और भूतनाथ का पता नहीं है, इसलिए आज दरबार नहीं होगा'। मगर ताज्जुब की बात है कि भूतनाथ और देवीसिंह एक साथ कहाँ चले गये। मैं तो यही समझता हूँ कि भूतनाथ हम लोगों का पता लगाने के लिए निकला है और उसका ऐसा करना कोई ताज्जुब की बात नहीं, मगर देवीसिंह बिना मर्जी के चले गये, इस बात का ताज्जुब है।

बीरेन्द्र : देवीसिंह बिना मर्जी के नहीं चले गये, बल्कि हमसे पूछके गये हैं।

नकाबपोश : तो उन्हें महाराज ने हम लोगों का पीछा करने की आज्ञा क्यों दी? हम लोग तो महाराज के ताबेदार स्वयं ही अपना भेद कहने के लिए तैयार हैं और शीघ्र समय पाकर अपने को प्रकट करेंगे ही, केवल मुकदमें की उलझन खोलने और कैदियों को निरुत्तर करने के लिए अपने को छिपाये हुए हैं।

तेज : आप लोगों को शायद मालूम नहीं है कि भूतनाथ ने देवीसिंह को अपना दोस्त बना लिया है। जिस समय भूतनाथ के मुकदमे का बीज रोपा गया था, उसके कई घण्टे पहले ही देवीसिंह ने उसकी सहायता करने की प्रतिज्ञा कर ली थी, क्योंकि वह भूतनाथ की चालाकी, ऐयारी और उसके अच्छे कामों से प्रसन्न थे।

नकाबपोश: ठीक है तब तो ऐसा हुआ ही चाहिए परन्तु कोई चिन्ता नहीं, भूतनाथ वास्तव में अच्छा आदमी है और उसे महाराज की सेवा का उत्साह भी है।

तेज : इसके अतिरिक्त उसने हमारे कई काम भी बड़ी खूबी के साथ किये हैं।

नकाबपोश : ठीक है।

तेज : हाँ, मैं एक बात आप से पूछना चाहता हूँ।

नकाबपोश : आज्ञा!

तेज : निःसन्देह भूतनाथ और देवीसिंह आप लोगों का भेद लेने के लिए गए हैं। अस्तु, आश्चर्य नहीं कि वे दोनों उस ठिकाने तक पहुँच गये हों, जहाँ आप लोग रहते हैं और आपको उनका हाल भी मालूम हुआ हो!

नकाबपोश : न तो वे हम लोगों के डेरे तक पहुँचे और न हम लोगों को उनका हाल ही मालूम है। हम लोगों के विषय में हजारों आदमी, बल्कि यों कहना चाहिए कि आजकल यहाँ जितने लोग इकट्ठे हो रहें हैं, सभी आश्चर्य करते हैं, और इसलिए जब हम लोग आते हैं तो सैकड़ों आदमी चारों तरफ से घेर लेते हैं और जाते समय कोसों तक पीछा करते हैं, इसलिए हम लोगों को भी बहुत घूम-फिर कर तथा लोगों को भुलावा देते हुए अपने डेरे की तरफ जाना पड़ता है।

तेज : तब तो उन दोनों का न लौटना आश्चर्य है।

नकाबपोश : बेशक, अच्छा तो आज हम लोग कुँअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह का कुछ हाल महाराज को सुनाते जायें, आखिर आ गये हैं तो कुछ काम करना ही चाहिए।

बीरेन्द्र : (ताज्जुब से) उनका कौन-सा हाल?

नकाबपोश : वही तिलिस्म के अन्दर का हाल। जब तक राजा गोपालसिंह वहाँ थे, तब तक का हाल तो आपने उनकी जुबानी सुना ही होगा, मगर उसके बाद क्या हुआ और तिलिस्म में उन दोनों भाइयों ने क्या किया, सो न सुना होगा। वह सब हाल हम लोग सुना सकते हैं, यदि आज्ञा हो तो...

बीरेन्द्र : (ज्यादा ताज्जुब के साथ) कब तक का हाल आप सुना सकते हैं?

नकाबपोश : आज तक का हाल, बल्कि आज के बाद भी रोज-रोज का हाल तब तक बराबर सुना सकते हैं, जब तक उनके यहाँ आने में दो घण्टे की देर हो।

बीरेन्द्र : हम बड़ी प्रसन्नता से उनका हाल सुनने के लिए तैयार हैं, बल्कि हम चाहते हैं कि गोपालसिंह और अपने पिताजी के सामने वह हाल सुनें।

नकाबपोश : जो आज्ञा, मैं सुनाने के लिए तैयार हूँ।

बीरेन्द्र : मगर वह सब हाल आप लोगों को कैसे मालूम हुआ, होता है और होगा?

नकाबपोश : (हाथ जोड़कर) इसका जवाब देने के लिए मैं अभी तैयार नहीं हूँ, लेकिन यदि महाराज मजबूर करेंगे तो लाचारी है, क्योंकि हम लोग महाराज को अप्रसन्न भी नहीं किया चाहते।

बीरेन्द्र : (मुस्कुराकर) हम तुम्हारी इच्छा के विरुद्ध कोई काम भी नहीं करना चाहते।

इतना कहके बीरेन्द्रसिंह ने तेजसिंह की तरफ देखा। तेजसिंह स्वयं उठकर महाराज सुरेन्द्रसिंह के पास गये और थोड़ी देर में लौट आकर बोले, "चलिए महाराज बैठे हैं और आप लोगों का इन्तजार कर रहे हैं।" सुनते ही सब कोई उठ खड़े हुए और राजा सुरेन्द्रसिंह की तरफ चले। उसी समय तेजसिंह ने एक ऐयार राजा गोपालसिंह के यहाँ भेज दिया। 

...Prev | Next...

To give your reviews on this book, Please Login