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चन्द्रकान्ता सन्तति - 5

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चन्द्रकान्ता सन्तति 5 पुस्तक का ई-संस्करण...

तीसरा बयान


तारासिंह के चले जाने के बाद सराय में चोरी की खबर बड़ी तेजी के साथ फैल गयी। जितने मुसाफिर उसमें उतरे हुए थे सब रोके गये। राजदीवान को भी खबर हो गयी, वह भी बहुत से सिपाहियों को साथ लेकर सराय में आ मौजूद हुआ। खूब हो-हल्ला मचा, चारों तरफ तलाशी और तहकीकात की कार्रवाई होने लगी, मगर सभों को निश्चय इसी बात का था कि चोर सिवाय उसके और कोई नहीं है, जो रात रहते ही फाटक खुलवाकर सराय के बाहर निकल गया। पहरेवाले सिपाही के गायब हो जाने से और भी परेशानी हो रही थी। चोर की गिरफ्तारी में कई सिपाही तो जा ही चुके थे, मगर दीवान साहब के हुक्म से और भी बहुत से सिपाही भेजे गये, आखिर नतीजा यह निकला कि दोपहर के पहिले ही हजरत नानक परसाद गिरफ्तार होकर सराय के अन्दर आ पहुँचे, जो अपने खयाल में तारासिंह को गिरफ्तार कर ले गये और अभी तक सौदागर का चेहरा धोकर देखने भी न पाये थे, मगर उन कृपानिधान को ताज्जुब था तो इस बात का कि वे चोरी के कसूर में गिरफ्तार किये गये थे।

अभी तक दीवान साहब सराय के अन्दर मौजूद थे। नानक के आते ही चारों तरफ से मुसाफिरो की भीड़ आ जुटी और हर तरफ से नानक पर गालियों की बौछार होने लगी। जिस कमरे में तारासिंह उतरा हुआ था, उसी के आगेवाले दालान में सुन्दर फर्श के ऊपर दीवान साहब बिराज रहे थे, और उनके पास ही तारासिंह के दोनों शागिर्द भी अपनी असली सूरत में बैठे हुए थे। सामने आते ही दीवान साहब ने क्रोध-भरी आवाज में नानक से कहा, "क्यो बे! तेरा इतना बड़ा हौसला हो गया कि तू हमारी सराय में आकर इतनी बड़ी चोरी करे!!"

नानक : (अपने को बेहतर फँसा हुआ देख हाथ, जोड़के) मुझ पर चोरी का इल्जाम किसी तरह नहीं लग सकता, मुझे यह मालूम होना चाहिए कि यहाँ किसकी चोरी हुई है और मुझ पर चोरी का इलजाम कौन लगा रहा है।

दीवान : (तारासिंह के दोनों शागिर्दों की तरफ इशारा करके) इनका माल चोरी गया है और यहाँ के सभी आदमी तुझे चोर कहते हैं।

नानक : झूठ, बिल्कुल झूठ।

तारासिंह का एक शागिर्द : (दीवान से) यदि हर्ज न हो तो पहिले इसका चेहरा धुलवा दिया जाय।

दीवान : क्या तुम्हें कुछ दूसरे ढंग का भी शक है? अच्छा (जमादार से) पानी मँगाकर इस चोर का चेहरा धुलवाओ।

जमादार : जो हुक्म।

नानक : चेहरा धुलवाके क्या कीजियेगा? हम ऐयारों की सूरत हरदम बदली ही रहती है, खासकर सफर में।

दीवान: तू ऐयार है! ऐयार लोग भी कहीं चोरी करते हैं?

नानक : जी मैं कह चुका हूँ, कि चोरी का इलजाम मुझ पर नहीं लग सकता।

तारा का एक शागिर्द : चोरी तो अच्छी तरह साबित हो जायगी, जरा अपने माल असबाब की तलाशी तो होने दो! (दीवान से) लीजिए पानी भी आ गया, अब इसका चेहरा धुलवाइए।

जमादार : (पानी की गगरी नानक के सामने धरके) लो अब पहिले अपना चेहरा साफ कर डालो।

नानक : मैं अभी अपना चेहरा साफ कर डालता हूँ, चेहरा धोने में मुझे कोई उज्र नहीं है, क्योंकि मैं पहिले ही कह चुका हूँ, कि ऐयारों की सूरत प्रायः बदली रहती है और मैं भी एक ऐयार हूँ।

इतना कहकर नानक ने अपना चेहरा साफ कर डाला और दीवान साहब से कहा, "कहिए अब क्या हुक्म होता है?"

दीवान : अब तुम्हारी तलाशी ली जायगी।

नानक : तलाशी देने में भी मुझे कुछ उज्र न होगा, मगर मुझे पहिले उन चीजों की फिहरिस्त मिल जानी चाहिए जो चोरी गयी है। कहीं ऐसा न हो कि मेरी कुछ चीजों को ये नकली सौदागर साहब अपनी ही चीज बतावें, उस समय ताज्जुब नहीं कि मैं अपनी ही चीजों का चोर बन जाऊँ।

दीवान : चीजों की फिहरिस्त जमादार के पास मौजूद है, तुम्हारी चीजों का तुम्हें कोई चोर नहीं बना सकता। हाँ, तुमने इन्हें नकली सौदागर क्यों कहा?

नानक : इसलिए कि ये दोनों भी मेरी तरह ऐयार हैं और इनके मालिक तारासिंह को मैंने गिरफ्तार कर लिया है, दुश्मनी से नहीं, बल्कि आपुस की दिल्लगी से, क्योंकि हम दोनों एक ही मालिक अर्थात् राजा बीरेन्द्रसिंह के ऐयार हैं, धोखा देने की शर्त लग गयी थी।

राजा बीरेन्द्रसिंह का नाम सुनते ही दीवान साहब के कान खड़े हो गये और वे ताज्जुब के साथ तारासिंह के दोनों शागिर्दों की तरफ देखने लगे। तारासिंह के एक शागिर्द ने कहा, "इसने तो झूठ बोलने पर कमर बाँध रक्खी है! यह चाहे राजा बीरेन्द्रसिंह का ऐयार हो, मगर हम लोगों को उनसे कोई सरोकार नहीं है। हम लोग न तो ऐयार हैं और न हम लोगों का कोई मालिक ही हमारे साथ था, जिसे इसने गिरफ्तार कर लिया हो। यह तो अपने को ऐयार बताता ही है फिर अगर झूठ बोलके आपको धोखा देने का उद्योग करे तो ताज्जुब ही क्या है? इसकी झुठाई-सचाई का हाल तो इतने ही से खुल जायगा कि एक तो इसकी तलाशी ले ली जाय, दूसरे इससे ऐयारी की सनद माँगी जाय, जो राजा बीरेन्द्रसिंह की तरफ से नियमानुसार इसे मिली होगी।

दीवान : तुम्हारा कहना बहुत ठीक है, ऐयारों के पास उनके मालिक की सनद जरूर हुआ करती है। अगर यह प्रतापी महाराज बीरेन्द्रसिंह का ऐयार होगा तो इसके पास सनद जरूर होगी और तलाशी लेने पर यह भी मालूम हो जायगा कि इसने जिसे गिरफ्तार किया है, वह कौन है। (नानक से) अगर तुम राजा बीरेन्द्रसिंह के ऐयार हो तो उनकी सनद हमको दिखाओ। हाँ, और भी बताओ कि अगर तुम ऐयार हो तो इतनी जल्दी गिरफ्तार क्यों हो गये, क्योंकि ऐयार लोग जहाँ कब्जे के बाहर हुए, तहाँ उनका गिरफ्तार होना कठिन हो जाता है।

नानक : मैं गिरफ्तार कदापि न होता, मगर अफसोस, मुझे यह बात बिल्कुल न थी कि तारासिंह को मेरी पूरी खबर है और वह मेरी तरफ से होशियार है तथा उसने पहिले ही से मुझे गिरफ्तार करा देने का बन्दोबस्त कर रक्खा है।

दीवान : खैर, तुम ऐयारी की सनद दिखाओ।

नानक : (कुछ लाजवाब-सा होकर) सनद मुझे अभी नहीं मिली है।

तारासिंह का शागिर्द : (दीवान से) देखिए मैं कहता था न कि यह झूठा है!

दीवान : (क्रोध से) बेशक झूठा है और चोर भी है। (जमादार से) हाँ, अब इसकी तलाशी ली जाय।

जमादार : जो आज्ञा।

नानक की तलाशी ली गयी और दो ही तीन गठरियाँ बाद वह बड़ी गठरी खोली गयी, जिसमें सराय का सिपाही बेचारा बँधा हुआ था।

नानक ने उस बेहोश सिपाही की तरफ इशारा करके कहा, "देखिए यही तारासिंह है, जो सौदागर बना हुआ सफर कर रहा था।"

तारासिंह का शागिर्द : (दीवान से) यह बात भी इसकी झूठ निकलेगी, आप पहिले इस बेहोश का चेहरा धुलवाइए।

दीवान : हाँ, मेरा यही इरादा है। (जमादार से) इसका चेहरा तो धोकर साफ करो।

नानक : मैं खुद इसका चेहरा धोकर साफ किये देता हूँ और तब आपको मालूम हो जायगा कि मैं झूठा हूँ या सच्चा।

नानक ने उस सिपाही का चेहरा धोकर साफ किया, मगर अफसोस, नानक की मुराद पूरी न हुई और वह सिर से पैर तक झूठा साबित हो गया। अपने यहाँ के सिपाही को ऐसी अवस्था में देखकर जमादार और दीवान साहब को क्रोध चढ़ आया। जमादार ने किसी तरह का खयाल न करके एक लात नानक के कमर पर ऐसी जमायी कि वह लुढ़क गया, मगर बहुत जल्द सम्हलकर जमादार को मारने को तैयार हुआ। नानक का हर्बा पहिले ही ले लिया गया था और अगर इस समय इसके पास कोई हर्बा मौजूद होता तो बेशक वह जमादार की जान ले लेता, मगर वह कुछ भी न कर सका, उलटा उसे जोश में आया हुआ देख सभी को क्रोध चढ़ आया। सराय के उतरे हुए मुसाफिर भी उसकी तरफ से चिढ़े हुए थे, क्योंकि वे बेचारे बेकसूर रोके गये थे और उन पर शक भी किया गया था, अतएव एकदम से बहुत से आदमी नानक पर टूट पड़े और मन-मानती पूजा करने के बाद उसे हर तरह से बेकार कर दिया, इसके बाद दीवान साहब की आज्ञानुसार उसकी और उसके साथियों की मुश्कें कस दी गयीं।

दीवान साहब ने जमादार को आज्ञा दी कि—यह शैतान (नानक) बेशक झूठा और चोर है, इसने बहुत ही बुरा किया कि सरकारी नौकर को गिरफ्तार कर लिया। तुम कह चुके हो कि इस समय यही सिपाही सौदागर के दरवाजे पर पहरा दे रहा था। बेशक चोरी करने के लिए ही इस सिपाही को इसने गिरफ्तार किया होगा। अब इसका मुकदमा थोड़ी देर में निपटनेवाला नहीं है और इस समय बहुत देर भी हो गयी है। अस्तु, तुम इसे इसके साथियों को कैदखाने में भेज दो तथा इसका माल-असबाब इसी सराय की किसी कोठरी में बन्द करके ताली मुझे दे दो और सराय के सब मुसाफिरों को छोड़ दो। (तारासिंह के शागिर्दों की तरफ देखके) क्यों साहब अब मुसाफिरों को रोकने की तो जरूरत नहीं है।

तारासिंह का शागिर्द : बेशक बेचारे मुसाफिरों को छोड़ देना चाहिए, क्योंकि उनका कोई कसूर नहीं। मेरा माल इसी ने चुराया है। अगर इसके असबाब में से कुछ भी न निकलेगा तो भी हम यही समझेंगे कि सराय से बाहर दूर जाकर इसने किसी ठिकाने चोरी का माल गाड़ दिया है।

दीवान : बेशक ऐसी ही है! (जमादार से) अच्छा जो कुछ हुक्म दिया गया है, उसे जल्द पूरा करो।

जमादार : जो आज्ञा।

बात-की-बात में वह सराय मुसाफिरों से खाली हो गयी। नानक हवालात में भेज दिया गया और उसका असबाब एक कोठरी में रखकर ताली दीवान साहब को दे दी गयी। उस समय तारासिंह के दोनों शागिर्दों ने दीवान साहब से कहा—"इस शैतान का मामला दो-एक दिन में निपटता नजर नहीं आता, इसलिए हम लोग भी चाहते हैं कि यहाँ से जाकर अपने मालिक को इस मामले की खबर दें और उन्हें भी सरकार के पास ले आवें, अगर ऐसा न करेंगे तो मालिक की तरफ से हम लोगों पर बड़ा दोष लगाया जायगा। यदि आप चाहें तो जमानत में हमारा माल-असबाब रख सकते हैं।"

दीवान : तुम्हारा कहना बहुत ठीक है। हम खुशी से इजाजत देते हैं कि तुम लोग जाओ और अपने मालिक को ले आओ, जमानत में तुम लोगों का माल असबाब रखना हम मुनासिब नहीं समझते, इसे तुम लोग ले जाओ।

तारासिंह के दोनों शागिर्द : (दीवान साहब को सलाम करके) आपने बड़ी कृपा की, जो हम लोगों को जाने की आज्ञा दे दी, हम लोग बहुत जल्द अपने मालिक को लेकर हाजिर होंगे।

तारासिंह के दोनों शागिर्दों ने भी डेरा कूच कर दिया और बेचारे नानक को खटाई में डाल गये। देखा चाहिए अब उस पर क्या गुजरती है। वह भी इन लोगों से बदला लिये बिना रहता नजर नहीं आता।

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