चन्द्रकान्ता सन्तति - 1
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चन्द्रकान्ता सन्तति - 1 पुस्तक का ई-संस्करण...
पाँचवाँ बयान
ऊपर लिखी वारदात के तीसरे दिन दारोग़ा साहब अपनी गद्दी पर बैठे रोज़नामचा देख रहे थे और उस तहख़ाने की पुरानी बातें पढ़कर ताज्जुब कर रहे थे कि यकायक पीछे की कोठरी में खटके की आवाज़ आयी। घबराकर उठ खड़े हुए और पीछे की तरफ़ देखने लगे। फिर आवाज़ आयी। ज्योतिषी दरवाज़ा खोलकर अन्दर गये, मालूम हुआ कि उस कोठरी के दूसरे दरवाज़े से कोई भागा जाता है। कोठरी में बिल्कुल अँधेरा था, ज्योतिषीजी कुछ आगे बढ़े ही थे कि ज़मीन पर पड़ी हुई एक लाश उनके पैर में अड़ी जिसकी ठोकर खा वे गिर पड़े मगर फिर सम्हलकर आगे बढ़े लेकिन ताज्जुब करते थे कि यह लाश किसकी है! मालूम होता है यहाँ कोई खून हुआ है, और ताज्जुब नहीं कि वह भागने ही वाला खूनी हो!
वह आदमी आगे-आगे सुरंग में भागा जाता था और पीछे-पीछे ज्योतिषीजी हाथ में खंजर लिये दौड़े जा रहे थे मगर उसे किसी तरह पकड़ न सके। यकायक सुंरग के मुहाने पर किसी तरह की रोशनी मालूम हुई। ज्योतिषीजी समझे कि अब वह बाहर निकल गया। दम-भर में ये भी वहाँ पहुँचे और सुरंग के बाहर निकल चारों तरफ़ देखने लगे। ज्योतिषी जी की पहली निगाह जिस पर पड़ी वह बद्रीनाथ थे, देखा कि एक औरत को पकड़े हुए बद्रीनाथ खड़े हैं और दिन आधी घड़ी से कम बाक़ी है।
बद्री : दारोग़ा साहब, देखिए आपके यहाँ चोर घुसे और आपको ख़बर भी न हो!
ज्योतिषी : अगर ख़बर न होती तो पीछे-पीछे दौड़ा हुआ यहाँ तक क्यों आता!
बद्री : फिर भी आपके हाथ से तो चोर निकल ही गया था, अगर इस समय हम न पहुँच जाते तो आप इसे न पा सकते।
ज्योतिषी : हाँ, बेशक इसे मैं मानता हूँ। क्या आप पहिचानते हैं कि यह कौन है? याद आता है कि इस औरत को मैंने पहिले कहीं देखा है।
बद्री : ज़रूर देखा होगा, ख़ैर इसे तहख़ाने में ले चलो फिर देखा जायगा। इसका तहख़ाने से खाली हाथ निकलना मुझे ताज्जुब में डालता है।
ज्योतिषी : यह खाली हाथ नहीं बल्कि हाथ साफ़ करके आयी है। इसके पीछे आती समय एक लाश मेरे पैर में अड़ी थी। मगर पीछा करने की धुन में मैं कुछ जाँच न सका।
पण्डित बद्रीनाथ और ज्योतिषीजी उस औरत को गिरफ़्तार किये हुए तहख़ाने में आये और उस दालान या बारहदरी जिसमें दारोग़ा साहब की गद्दी लगी रहती थी, पहुँचे। उस औरत को खम्भे के साथ बाँध दिया और हाथ में लालटेन ले उस लाश को देखने गये जो ज्योतिषीजी के पैर में अड़ी थी। बद्रीनाथ ने देखते ही उस लाश को पहिचान लिया और बोले, ‘‘यह तो माधव!’’
ज्योतिषी : यह यहाँ क्योंकर आयी! (माधवी की नाक पर हाथ रखकर) अभी दम है, मरी नहीं। यह देखिए इसके पेट में जख्म लगा है। जख्मकारी नहीं है, बच सकती है।
बद्री : (नब्ज देखकर) हाँ बच सकती है, ख़ैर इसके जख्म पर पट्टी बाँधकर इसी तरह छोड़ दो, फिर बूझा जायगा। हाँ थोड़ा-सा अर्क़ इसके मुँह में भी डाल देना चाहिए।
बद्रीनाथ ने माधवी के जख्म पर पट्टी बाँधी और थोड़ा-सा अर्क़ भी उसके मुँह में डालकर उसे वहाँ से उठा दूसरी कोठरी में ले गये। इस तहख़ाने में कई जगह से रोशनी और हवा पहुँचा करती थी, कारीगरों ने इसके लिए अच्छी तरकीब की थी। बद्रीनाथ और ज्योतिषीजी माधवी को उठाकर एक ऐसी कोठरी में ले गये जहाँ बादाक़श की राह से ठण्डी-ठण्डी हवा आ रही थी और उसे उसी जगह छोड़ आप बारहदरी में आये जहाँ उस औरत को जिसने माधवी को घायल किया था खम्भे के साथ बाँधा था। बद्रीनाथ ने धीरे से ज्योतिषीजी से कहा कि ‘आज कुँअर आनन्दसिंह और उनके थोड़े ही देर बाद मैं बीच-पच्चीस आदमियों को साथ लेकर यहाँ आऊँगा। अब मैं जाता हूँ, वहाँ बहुत कुछ काम है, केवल इतना ही कहने के लिए आया था। मेरे जाने के बाद तुम इस औरत से पूछताछ कर लेना कि यह कौन है, मगर एक बात का ख़ौफ़ है’।
ज्योतिषी : वह क्या?
बद्री : यह औरत हम लोगों को पहिचान गयी है, कहीं ऐसा न हो कि तुम महाराज को बुलाओ और वे यहाँ आ जायें तो यह कह उठे कि दारोग़ा साहब तो राजा बीरेन्द्रसिंह के ऐयार हैं!
ज्योतिषी : ज़रूर ऐसा होगा, इसका भी बन्दोबस्त कर लेना चाहिए।
बद्री : ख़ैर कोई हर्ज़ नहीं, मेरे पास मसाला तैयार है (बटुए में से एक डिबिया निकाल कर और ज्योतिषीजी के हाथ में देकर) इसे आप रक्खें, जब मौका हो तो इसमें से थोड़ी-सी दवा इसकी जुबान पर जबर्दस्ती मल दीजिएगा, बात-की-बात में जुबान ऐंठ जायगी, फिर यह साफ़ तौर पर कुछ भी न कह सकेगी। तब जो आपके जी में आवे महाराज को समझा दें।
बद्रीनाथ वहाँ से चले गये। उनके जाने के बाद उस औरत को डरा धमका और कुछ मार-पीटकर ज्योतिषीजी ने उसका हाल मालूम करना चाहा मगर कुछ न हो सका, पहरों की मेहनत बरबाद गयी। आख़िर उस औरत ने ज्योतिषीजी से कहा, ‘‘मैं आपको अच्छी तरह से जानती हूँ। आप यह न समझिए कि माधवी को मैंने मारा है, उसको घायल करने वाला कोई दूसरा ही था, ख़ैर इन सब बातों से कोई मतलब नहीं क्योंकि अब तो माधवी भी आपके कब्ज़े में नहीं रही।
ज्योतिषी : माधवी मेरे कब्ज़े में से कहाँ जा सकती है?
औरत : जहाँ जा सकती थी वहाँ गयी, जहाँ आप रख आये थे, वहाँ जाकर देखिए है या नहीं।
औरत की बात सुनकर ज्योतिषीजी बहुत घबराये और उठ खड़े हुए, वहाँ गये जहाँ माधवी को छोड़ आये थे। उस औरत की बात सच निकली, माधवी का वहाँ पता भी न था। हाथ में लालटेन ले घण्टो ज्योतिषीजी इधर-उधर खोजते रहे मगर कुछ फ़ायदा न हुआ, आख़िर लौटकर फिर उस औरत के पास आये और बोले, ‘‘तेरी बात ठीक निकली मगर अब मैं तेरी जान लिये बिना नहीं रहता, हाँ, अगर सच-सच अपना हाल बता दे तो छोड़ दूँ।’’
ज्योतिषीजी ने हज़ार सिर पटका मगर उस औरत ने कुछ भी न कहा। इसी औरत के चिल्लाने या बोलने की आवाज़ किशोरी और लाली ने इस तहख़ाने में आकर सुनी थी जिसका हाल इस भाग के पहिले बयान में लिख आये हैं क्योंकि इसी समय लाली और किशोरी भी वहाँ आ पहुँची थीं।
ज्योतिषीजी ने किशोरी को पहिचाना, किशोरी के साथ लाली का भी नाम लेकर पुकारा, मगर अभी यह न मालूम हुआ कि लाली को ज्योतिषीजी क्योंकर और कब से जानते थे, हाँ किशोरी और लाली को इस बात का ताज्जुब था कि दारोग़ाजी ने उन्हें बाँधकर पहिचान लिया ज्योतिषीजी दारोग़ा के भेष में थे।
ज्योतिषीजी ने किशोरी और लाली को अपने पास बुलाकर कुछ बात करना चाहा मगर मौका न मिला। उसी समय घण्टे के बजने की आवाज़ आयी और ज्योतिषीजी समझ गये कि महाराज आ रहे हैं। मगर इस समय महाराज क्यों आते हैं! शायद इस वजह से कि लाली और किशोरी इस तहख़ाने में घुस आयी हैं और इसका हाल महाराज को मालूम हो गया है।
जल्दी के मारे ज्योतिषीजी सिर्फ़ दो काम कर सके, एक तो किशोरी और लाली की तरफ़ देखकर बोले, ‘‘अफ़सोस, अगर आधी घड़ी की भी मोहलत मिलती तो तुम्हें यहाँ से निकाल ले जाता, क्योंकि यह सब बखेड़ा तुम्हारे ही लिए हो रहा है।’ दूसरे उस औरत के जुबान पर मसाला लगा सके जिससे वह महाराज के सामने कुछ कह न सके। इतने ही में मशालचियों और कई जल्लादों को लेकर महाराज आ पहुँचे और ज्योतिषीजी की तरफ़ देखकर बोले, ‘‘इस तहख़ाने में किशोरी और लाली आयी हैं, तुमने देखा है?’’
दारोग़ा : (खड़े होकर) जी अभी तक तो यहाँ नहीं पहुँची।
राजा : खोजो कहाँ है, यह औरत कौन है?
दारोग़ा : मालूम नहीं कौन है और क्यों आयी है? मैंने इसी तहख़ाने में इसे गिरफ़्तार किया है, पूछने से कुछ नहीं बताती।
राजा : ख़ैर किशोरी और लाली के साथ इसे भी भूतनाथ पर चढ़ा देना (बलि देना) चाहिए क्योंकि यहाँ का बँधा कायदा है कि लिखे आदमियों के सिवा दूसरा जो इस तहख़ाने को देख ले उसे तुरन्त बलि दे देना चाहिए।
सब लोग किशोरी और लाली को खोजने लगे। इस समय ज्योतिषीजी घबड़ाये और ईश्वर से प्रार्थना करने लगे कि कुँअर आनन्दसिंह और हमारे ऐयार लोग जल्द यहाँ आवें जिसमें किशोरी की जान बचे।
किशोरी और लाली कहीं दूर न थीं, तुरन्त गिरफ़्तार कर ली गयीं और उनकी मुश्कें बँध गयीं। इसके बाद उस औरत से महाराज ने कुछ पूछा जिसकी जुबान पर ज्योतिषीजी ने दवा मल दी थी, पर उसने महाराज की बात का कुछ भी जवाब न दिया। आख़िर खम्भे से खोलकर उसकी भी मुश्कें बाँध दी गयीं और तीनों औरतें एक दरवाज़े की राह दूसरी संगीन बारहदरी में पहुँचायी गयी जिसमें सिंहासन के ऊपर स्याह पत्थर की वह भयानक मूरत बैठी हुई थी जिसका हाल सन्तति के तीसरे भाग के आख़िरी बयान में हम लिख आये हैं। इसी समय आनन्दसिंह, भैरोसिंह और तारासिंह वहाँ पहुँचे और अपनी आँखों से उस औरत के मारे जाने का दृश्य देखा जिसकी जुबान पर दवा लगा दी गयी थी। जब किशोरी के मारने की बारी आयी तब कुँअर आनन्दसिंह और दोनों ऐयारों से न रहा गया और उन्हेंने खंजर निकाल कर उस झुण्ड पर टूट पड़ने का इरादा किया मगर हो न सका क्योंकि पीछे से कई आदमियों ने आकर इन तीनों को पकड़ लिया।
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