चन्द्रकान्ता सन्तति - 1
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चन्द्रकान्ता सन्तति - 1 पुस्तक का ई-संस्करण...
तीसरा भाग
पहिला बयान
पाठक समझ ही गये होंगे कि रामशिला के सामने फलगू नदी के बीच में भयानक टीले के ऊपर रहने वाले बाबाजी के पास जो दोनों औरतें गयी थीं वे माधवी और उसकी सखी तिलोत्तमा थीं। बाबाजी ने उन दोनों से वादा किया था कि तुम्हारी बात का जवाब कल देंगे इसलिए दूसरे दिन वे आधी रात के समय बाबाजी के पास गयीं। किवाड़ खटखटाते ही अन्दर से बाबाजी ने दरवाज़ा खोल दिया और उन दोनों को बुलाकर अपने पास बैठाया।
बाबा : कहो माधवी अच्छी हो?
माधवी : अच्छी क्या रहूँगी, अपने किये को पछताती हूँ।
बाबा : अब भी अपने को सम्हालो मैं वादा करता हूँ कि राजा बीरेन्द्रसिंह से कहकर तुम्हारा राज्य तुम्हें दिलवा दूँगा।
माधवी : अजी अब भीख माँगने की इच्छा नहीं होती, अब तो जहाँ तक बन पड़ेगा अपने दुश्मनों को मार के ही कलेजा ठण्डा करूँगी, चाहे इसके लिए मेरी जान भी जाय तो कोई परवाह नहीं!
बाबा : अगर यही ख़याल है तो तुम्हें अपने दीवान अग्निदत्त से बदला लेना चाहिए, बीरेन्द्रसिंह के लड़कों ने तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ा!
माधवी : आपका कहना ठीक है मगर मैंने जो कुछ सोच रक्खा है वही करूँगी। मैं अपना इरादा किसी तरह बदल नहीं सकती और इसमें आपको हर तरह से मेरी मदद करनी होगी।
बाबा : ख़ैर, जिस तरह बने मैं तुम्हारी मदद करूँगा, मगर यह तो बताओ कि सिवाय मेरे इस समय और भी कोई तुम्हारा मददगार है या नहीं?
माधवी : कल तक तो मेरा मददगार कोई न था मगर आज मेरे कई मददगार पहुँच गये हैं और अब मेरा काम ज़रूर हो जायगा इसमें शक नहीं?
बाबा : कौन मददगार पहुँच गया है?
माधवी : मेरा भाई भीमसेन।
बाबा : शिवदत्त का लड़का भीमसेन?
माधवी : जी हाँ।
बाबा : तब तो तुम्हारा काम ज़रूर हो जायगा।
माधवी : तो भी आपको मेरी मदद करनी ही होगी।
बाबा : मैं ज़रूर मदद करूँगा, जो कुछ कहो मैं करने को तैयार हूँ!
माधवी : कल भीमसेन उस मकान में जाने का उद्योग करेगा जिसमें किशोरी रहती है। उसने मौका पाते ही अपनी बहिन किशोरी को मार डालने की क़सम खायी है। अगर कल वह उस मकान के अन्दर किसी तरह जा सका तो ज़रूर ही किशोरी को मार डालेगा। फिर मुझे किसी तरह का तरद्दुद न रहेगा और न आपसे मदद लेने की ही ज़रूरत पड़ेगी, लेकिन वह उस मकान के अन्दर न जा सका जिस तरह हो आपको ऐसी कोई तरकीब करनी पड़ेगी जिसमें किशोरी उस मकान को छोड़ दे।
बाबा : भरसक तो मेरी मदद की ज़रूरत ही न पड़ेगी।
माधवी : ऐसा न कहिए! अगर उस मकान में कमन्द लगाने की होती तो तब तो कोई बात ही न थी, अब तक मैं अपना काम निकाल लिये होती।
बाबा : हाँ, यह तो मैं भी जानता हूँ कि तुम्हारे पिता ने उस मकान के बनवाने में बड़ी कारीगिरी खर्च की है, मगर तो भी भीमसेन ने उसके अन्दर जाने की कोई तरकीब सोची ही होगी।
माधवी : जी हाँ, देखा चाहिए कल क्या होता है!
बाबा : अच्छा, अब तुम परसों मुझसे ज़रूर मिलना, अगर तुम्हारा काम हो गया तो ठीक ही है नहीं तो चौथे दिन मैं सहज ही तुम्हारा काम कर दूँगा।
‘बहुत अच्छा’ कहकर माधवी वहाँ से उठी और अपनी सखी तिलोत्तमा को साथ लिये अपने डेरे पर चली आयी।
माधवी के चले जाने के थोड़ी देर बाद तक बाबाजी कुछ सोचते रहे, इसके बाद कुटी के बाहर निकले और और दो चार दफ़े ज़ोर से ताली बजायी। यकायक इधर-उधर पेड़ों की आड़ से चार-पाँच आदमी निकलकर बाबाजी के पास आये और एक ने बढ़कर पूछा, ‘‘कहिए क्या हाल हैं?’’
बाबाजी ने कहा, ‘‘आज तुम लोगों की कोई ज़रूरत नहीं है जहाँ चाहो चले जाओ, मगर कल एक घण्टे रात जाते-जाते तुम लोग यहाँ ज़रूर जुट जाओ!’’
एक : क्यों ख़ैर तो है, मैं बिना कुछ हाल सुने जाने वाला नहीं!
बाबा : अच्छा तो फिर सुन लो कि कल क्या होगा और हम लोग क्या करेंगे।
सभों को लेकर बाबाजी कुटी के अन्दर चले गये और किवाड़ बन्द कर न मालूम क्या बातचीत करने लगे।
अब हम उसी मकान में पहुँचते हैं जिसमें किशोरी और किन्नरी का डेरा है या जहाँ इन्द्रजीतसिंह को लेकर कमला गयी है।
किशोरी के चिल्लाने की आवाज़ सुनकर किन्नरी हाथ में तलवार लिये हुए बहुत जल्द नीचे उतर गयी। कमला ने किवाड़ खटखटाया है दरवाज़ा खोलना चाहिए, इसका ख़याल तो जाता रहा और इधर-उधर किशोरी को ढूँढ़ने लगी मगर इसे ढूँढ़ने में उसने ज़्यादे देर न लगायी, दो ही चार दफ़े दालान और कोठरियों में घूमकर वह लौटी और सदर का दरवाज़ा खोलकर कमला को मकान के अन्दर कर लिया।
दरवाज़ा खुलने में देर हुई इसी से कमला ने समझ लिया कि भीतर कुछ गोलमाल हुआ है। अन्दर आते ही उसने पूछा, ‘‘क्यों क्या हुआ? जिसके जवाब में बदहवास किन्नरी केवल इतना ही कह सकी, ‘‘दरवाज़ा खोलने के लिए किशोरी नीचे उतरी मगर न मालूम चिल्लाकर कहाँ गायब हो गयी!’’
कमला ने इस बात का कुछ जवाब न दिया। उसने सबके पहिले छत पर जाकर कुँअर इन्द्रजीतसिंह को कमन्द लगाने में मदद की। जब वे और तारासिंह ऊपर चढ़ आये तो उन दोनों को भी साथ ले वह नीचे आँगन में उतर आयी और किन्नरी की ही तरह संक्षेप में किशोरी के गायब हो जाने का हाल कहकर इधर-उधर ढूँढ़ने लगी।
ये सब बातें थोड़ी ही देर में हो गयीं और अँधेरा होने पर भी बात-की-बात में कमला ने नीचे की कुल कोठरियों में किशोरी को ढूँढ़ डाला, परेशान और बदहवास इन्द्रजीतसिंह उनके साथ-साथ घूमते रहे।
ढूँढ़ते-ढूँढ़ते कमला जब कोठरी में पहुँची जिसकी पीठ खँडहर की तरफ़ पड़ती है तो यकायक चाँदना मालूम पड़ा। भीतर घुसी, और तुरन्त ही निश्चय हो गया कि खँडहर की तरफ़ से कोई दीवार में सेध लगाकर इस मकान के अन्दर घुसा और यह आफ़त मचा गया। उस खुलासा सेंध की राह से चारों आदमी भी खँडहर में बाहर निकल गये और वहाँ एक विचित्र तमाशा देखा।
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