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भूतनाथ - खण्ड 6

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भूतनाथ - खण्ड 6 पुस्तक का ई-संस्करण

पाँचवाँ बयान


घोर जंगल के बीच में से जाने वाली एक पतली पगडन्डी पर से दो आदमी धीरे-धीरे जमानिया की तरफ बढ़ रहे हैं। हमारे पाठक इन दोनों ही को पहिचानते हैं क्योंकि इनमें से एक तो भूतनाथ है और दूसरा उसका विश्वासी साथी और प्रिय शिष्य रामेश्वरचन्द्र, और इसलिए इनमें जो बातें हो रही हैं वे भी जरूर सुनने लायक होंगी। आइए जरा आगे बढ़ कर सुना जाय।

भूतनाथ ने एक लम्बी साँस लेकर कहा, ‘‘सच तो यह है कि अब मेरी बदकिस्मती का जमाना पूरी तरह से शुरू हो गया!

जब इतना पुराना और छिपा हुआ भेद जिसको मैं समझता था कि शायद यमराज भी न जानते होंगे इस तरह पर प्रकट हो रहा है तो अब बाकी ही क्या रह गया, सिवाय इसके कि या तो मैं अपने हाथ से अपनी जान दे दूँ और या सभी से नजरें बचाकर जानवरों की तरह जंगलों और पहाड़ों में छिपा-छिपा फिरूँ।’’

रामेश्वर : नहीं-नहीं, आपको इस तरह निराश न हो जाना चाहिए पहिले भी कई दफे इस तरह की घटनाएँ आपके साथ हो चुकी हैं पर आपने हिम्मत के साथ हर बार अपने दुश्मनों का मुकाबला किया और अच्छी तरह उन्हें जक पहुँचाया। जरूर इस बार भी आप वैसा कर सकेंगे! आपको इस वक्त स्थिर होकर खूब गौर के साथ यह सोचना चाहिए कि यह कार्रवाई किन लोगों की हो सकती है और आप उन्हें किस तरह नीचा दिखा सकते हैं।

भूत० : (एक साफ पत्थर की चट्टान देख उस पर बैठता हुआ) आओ तुम भी यहाँ बैठ जाओ और निर्णय करने में मेरी मदद करो कि यह काम किन लोगों का हो सकता है। मेरी बुद्धि इस समय बेकार हो रही है, शायद तुम्हारी सहायता पाकर कुछ कर सके।

रामेश्वर० : (भूतनाथ के सामने बैठता हुआ) पहिले तो आप यह सोचें कि किन लोगों का इस भेद से सरोकार था और उनमें से कौन अब तक ऐसे बचे हुए हैं जो आपके साथ दुश्मनी करने की नीयत कर सकते हैं।

भूत० : तुम ठीक कहते हो, तो लो सुनो—यों तो कइयों को इस मामले की जानकारी हो सकती है, पर जो इसके भीतरी रहस्य में शामिल थे या जिनको इस मामले से किसी प्रकार का सम्बन्ध हो सकता है वे सिर्फ इने-गिने इतने लोग हो सकते हैं—भुवनमोहिनी का पति कामेश्वर एक, महाराज गिरधरसिंह दो, भुवनमोहिनी का ससुर चंचलदास तीन, जमानिया की बड़ी महारानी अर्थात् मायारानी चार, दारोगा पाँच, हेलासिंह छः, महाराज बीरेन्द्रसिंह सात, दलीपशाह आठ, यों तो इन्द्रदेव, शेरसिंह, प्रभाकरसिंह के पिता दिवाकरसिंह आदि-आदि कुछ लोग और भी हैं जिनको इस मामले की थोड़ी-बहुत खबर होगी पर जिनका इसके साथ खास तौर पर सम्बन्ध है और जो इस विषय में कुछ कर सकते हैं वे सिर्फ आठ आदमी हैं।

रामे० : ठीक है, अच्छा तो अब देखिए कि इनमें से कौन-कौन ऐसे हैं जो इतने दिनों के बाद अब आपसे इस पुरानी घटना की कसर निकालने पर अमादा हो सकते हैं। आपके बताये इन आठ आदमियों में से चार तो इस दुनिया को ही छोड़ चुके हैं अर्थात् महाराज गिरधरसिंह, कामेश्वरसिंह, चंचलदास और महारानी, अस्तु इन चारों से तो किसी तरह का खतरा हो ही नहीं सकता। अब रह गये बाकी के चार यानी दारोगा, हेलासिंह, राजा बीरेन्द्रसिंह और दलीपशाह। इनमें से भी जहाँ तक मैं समझ सकता हूँ और जितना हाल आपने मुझे सुनाया है उससे जो अन्दाजा लगा सकता हूँ वह यह है कि महाराज बीरेन्द्रसिंह इतने दिनों बाद इस पुरानी घटना को लेकर उठा नहीं सकते, और अगर मेरी बुद्धि धोखा नहीं देती तो दारोगा भी स्वयम् ही इसमें इस कदर सना हुआ है कि इस मामले को उठा या अगुवा बन आपसे दुश्मनी मोल लेने को तैयार नहीं हो सकता। क्यों, आपका क्या खयाल है?

भूत० : तुम ठीक कहते हो, राजा बीरेन्द्रसिंह इतने दिनों के बाद इस मामले को उठावें ऐसी सम्भावना मुझे नहीं दिखाई पड़ती और यद्यपि दारोगा से मेरी दुश्मनी जरूर है पर वह किसी हालत में भी मुझसे कम इस पाप में सना हुआ नहीं है।

रामे० : अच्छा तो अब रह जाते हैं सिर्फ दो—हेलासिंह और दलीपशाह। इन दोनों के बारे में आप क्या खयाल करते हैं?

भूत० : यद्यपि उस गुप्त कमेटी के मामले में मुझे हेलासिंह के साथ बेमुरौवती करनी पड़ी थी पर फिर भी ऐसा गुमान नहीं होता कि वह इस प्रकार आगे बढ़ कर मुझ पर ऐसी चोट करेगा, क्योंकि वह खुद भी इस मामले में कुछ कम सना हुआ नहीं है। मुझे तो कभी-कभी यह भी शक होता है कि दारोगा ने जानबूझकर के जैपाल और हेलासिंह को उस मौके पर अपने साथ रक्खा था ताकि कभी वे बिगड़कर उसी के खिलाफ न चले जायं। और फिर आखिर उसे भी तो अपनी जान का खौफ होगा और वह यह समझता होगा कि भूतनाथ से दुश्मनी करके वह अपने को किसी तरह सही-सलामत नहीं रख सकता। फिर एक बात इसके अन्दर और भी है। तुमको मैंने बताया कि वहाँ पर जो नक्शा खींचा गया था वह हूबहू उस मौके और स्थान की नकल था जब और जहाँ वह दुष्कृत्य मेरे हाथों हुआ और वह स्थान तिलिस्म के अन्दर था अस्तु उसकी ऐसी सच्ची नकल वही शख्स उतार सकता है जिसने उस स्थान को अपनी आँखों से देखा हो, इसका मतलब यह कि जो खुद तिलिस्म के अन्दर उस जगह तक गया हो जहाँ वह घटना हुई थी, और यह मैं तुमसे कह चुका हूँ कि उस समय मैं बिल्कुल अकेला था, अस्तु हेलासिंह को वह जगह देखने का न तो मौका ही मिला था और न वह ऐसी ठीक नकल उतार ही सकता है। तो बस, अगर यह काम किसी का हो सकता है तो दलीपशाह का।

रामे० : क्या दलीपशाह तिलिस्म के अन्दर का हाल जानते हैं, या वह स्थान देखे हुए हैं जहाँ की बात यह है?

भूत० : हाँ, वह उस जगह तक पहुँच चुका है जहाँ की यह घटना है। (कुछ गौर करने के बाद) हाँ ठीक है, मुझे अच्छी तरह ख्याल है कि जब मैं घबड़ाया हुआ उस जगह के बाहर हो रहा था तो रास्ते में दलीपशाह को मैंने देखा था, यद्यपि उस वक्त भागने की फिक्र में मैं इस बात पर बिल्कुल गौर न कर सका कि वह वहाँ किस लिए आया है या क्या कर रहा है। ठीक है, यही बात है, यह काम जरूर दलीपशाह का ही है किसी दूसरे का नहीं।

रामे० : आपका सोचना ठीक हो सकता है, पर मुझे यह भी विश्वास नहीं होता कि दलीपशाह की यह कार्रवाई होगी।

भूत० : क्यों?

रामे० : एक तो जब इतने दिनों तक दलीपशाह ने इस बारे में कुछ न किया तो अब क्या कारण हुआ कि वे यकायक इस तरह आपके ऊपर चोट कर बैठे, दूसरे इधर आपसे उनसे बहुत दिनों से किसी तरह का कोई झगड़ा भी नहीं हुआ, तीसरे वे इस समय खुद अपनी जमींदारी की झंझटों में इस कदर सख्त परेशान हैं कि आप जैसे कट्टर आदमी को अपना दुश्मन बनाकर और भी बड़ी एक आफत मोल खरीद लें ऐसी गलती नहीं कर सकते, अस्तु यह काम उनका होगा ऐसा मेरी बुद्धि तो नहीं कहती!

भूत० : मगर उसके सिवाय किसी दूसरे का यह काम हो ही नहीं सकता!भूवनमोहिनी उसकी बहुत प्यारी बहिन थी और मुझे खूब मालूम है कि जिस समय की यह घटना है उस समय उसने तलवार हाथ में लेकर इस बात की प्रतिज्ञा की थी कि जिसने इस लड़की का खून किया है उसका सिर अपने हाथ से काटेगा। पर वह तो कहीं घटनाक्रम कुछ ऐसा हो गया कि उसे अब तक ठीक-ठीक इस बात का पता ही नहीं लगने पाया कि वह काम वास्तव में था किसका।अगर वह जान गया होता कि मैंने ही वह काम किया है तो वह आज तक कभी का मेरी जान पर वार कर चुका होता। यह सम्भव हो सकता है कि अब उसे यह बात निश्चय रूप से मालूम हो गई हो और उसने यह ढंग मुझसे बदला लेने का निकाला हो।

रामे० : हो सकता है, आपसे ज्यादा इस विषय में मैं कुछ सोच नहीं सकता, मगर फिर भी दलीपशाह का यह काम है ऐसा मानने को यकायक....

भूत० : मुझे तो सौ में नब्बे दर्जे यह काम उसी का मालूम होता है और मैं यही मुनासिब समझता हूँ कि इस बारे में सबसे पहिले उसी की जाँच की जाय। इतना ही नहीं बल्कि इस सम्बन्ध में मैं तुमसे भी कुछ काम लेना चाहता हूँ।

रामे० : जो कुछ भी आज्ञा हो मैं बजा लाने को तैयार हूँ पर अपनी तरफ से इतना जरूर कहूँगा कि दलीपशाह के विरुद्ध कोई कड़ी कार्रवाई करने के पहिले आपको इस बात की जाँच अच्छी तरह पर कर लेना चाहिये कि यह काम सचमुच उन्हीं का है।मुमकिन है कि किसी दूसरे ही की यह करतूत हो और आप दलीपशाह पर केवल व्यर्थ का शक ही न कर रहे हों बल्कि उस शक के कारण उन असल में इस काम करने वालों की तरफ से बेफिक्र रह जाएं और वे बेखौफ आगे की कार्रवाई करते चले जाँय क्योंकि इसमें भी कोई शक नहीं हो सकता कि जब इतने दिन का पुराना यह फोड़ा इस तरह उभड़ा है तो अभी आपको अच्छी तरह तकलीफ दिए बिना सहज में आराम न होगा। यह बात मैं सिर्फ इसी ख्याल से नहीं कहता कि अगर दलीपशाह बेकसूर हैं तो आपकी कार्रवाइयों पर नाराज होकर आपके दुश्मन बन बैठेंगे, बल्कि यह सोचकर भी कह रहा हूँ कि जिन लोगों ने इस अद्भुत ढंग से इसका श्रीगणेश किया है वे सिर्फ इतना ही करके न रह जाएँगे बल्कि और भी कुछ रंग लायेंगे।

भूत० : इसमें क्या शक है! परन्तु मैं इस तरह से बेफिक्र नहीं हूँ। इसी बात की जाँच करने के वास्ते मैं अपने दोनों शागिर्दों रामगोविन्द और बलदेव को ताकीद कर चुका हूँ कि उसी जगह रह कर बड़ी सावधानी के साथ छिपे-छिपे इस बात का पता लगावें कि उस मूरत आदि को वहाँ बैठाने और वह विचित्र तथा मेरे लिए त्रासदायक नाटक रचने वाला कौन है। इसमें कोई शक नहीं कि उन सब चीजों की जाँच करने या उनको वहाँ से हटा देने के लिए उनका रचयिता जरूर वहाँ फिर भी कभी-न-कभी पहुँचेगा, उस समय उसको पहिचान पाना या गिरफ्तार कर लेना कोई कठिन बात न होगी और उसी समय इस बात का भी पता लग जायगा कि इस काम का करने वाला अगर दलीपशाह नहीं है तो कौन है।

रामे० : ठीक है, यह आपने अच्छी बात सोची है, अगर बलदेव और रामगोविन्द होशियारी के साथ काम कर सके तो बेशक कुछ-न-कुछ बता लग ही जायगा।

भूत० : वे दोनों बहुत होशियार और चालाक हैं, उनकी कारीगरी पर तुम्हें किसी तरह का शक नहीं करना चाहिये।

रामे० : नहीं, मैंने उनकी कारीगरी पर शक करके यह बात नहीं कही बल्कि उस भयानक पिशाच को लक्ष्य करके कही जिसके बारे में आपने कहा कि वह अचानक प्रकट हुआ और फिर गायब हो गया।

भूत० : (उस पिशाच की याद से काँप कर) हाँ ठीक है, उस नर-पिशाच से अगर वे अपने को बचाए रह सकें तभी कुछ कर पावेंगे, नहीं तो कुछ नहीं।

रामे० : बेशक यही बात है। मगर यह तो कहिए कि उस शैतान की उत्पत्ति को आप क्या समझते हैं? क्या वह भी किसी ऐयारी या चालाकी की पैदाइश है या किसी तरह का आसेब है? जैसा वर्णन आपने उस भयानक पिशाच का किया उसे सुन कर मैं तो काँप ही गया।

भूत० : तुम उसका विवरण सुन कर काँप गए और मैं उसको अपने सामने प्रकट होता हुआ देखकर भी अपने होश-हवाश में रहा और जब तक उसकी भयानक बातों ने मुझे बदहवास न कर दिया बराबर इसी बात पर गौर करता रहा कि यह वास्तव में कोई भूत-प्रेत या आसेब है या किसी तरह की ऐयारी!

रामेश्वर : तब आपने क्या निश्चय किया? क्या वह कोई भूत या प्रेत था अथवा…?

भूत० : (हँस कर) भला तुम भी लड़कों की तरह भूत-प्रेतों का विश्वास करने लगे! बलदेव और रामगोविन्द की अभी कच्ची उमर है। उन्होंने अगर उसे कोई अद्भुत जीव मान लिया तो दूसरी बात है पर मैं कब ऐसा कर सकता हूँ? जो विचित्र जीव हम लोगों के सामने प्रकट हुआ वह अवश्य ही किसी तरह की चालाकी और कारीगरी का नमूना था। उसकी घबड़ाहट पैदा कर देने वाली बातें सुनता हुआ मैं बराबर इसी बात पर गौर कर रहा था कि वह विचित्र सूरत किस प्रकार की है और मैंने देखा कि उस शैतान का सामने का हिस्सा यद्यपि मनुष्य की हड्डियों के ढाँचे के आकार का था पर पिछला हिस्सा वैसा न था और उस तरफ से देखने से इस बात का शक हो सकता था कि किसी तरह के पर्दे के पीछे छिपी कोई चीज—चाहे वह जो कुछ भी हो, यह सब काम कर रही है।अगर मैं उसकी आखिरी बातें सुन बदहवास न हो जाता तो जरूर इस मामले पर कुछ और गौर करता और सम्भवतः इसकी जाँच भी करता कि वह क्या बला है, पर अफसोस इसका मौका ही न मिला। फिर भी यह बात मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि अबकी बार वह विचित्र शकल मेरे सामने आवे तो मैं उसके बारे में बिना कुछ पता लगाए न रहूँ! इसमें कोई शक नहीं कि वह जरूर किसी तरह की ऐयारी या तिलिस्मी कारीगरी है और यह भी ऐसी बात है जो दलीपशाह पर होने वाले मेरे शक को बढ़ाती है क्योंकि दलीपशाह इन्द्रदेव का दोस्त है और इन्द्रदेव को जरूर किसी-न-किसी तिलिस्म से कोई सम्बन्ध है जिसकी बदौलत सहज ही में वे कोई चीज दलीपशाह की मदद के लिए निकाल कर दे सकते हैं।

रामे० : हो सकता है कि आपका खयाल ठीक हो, अच्छा तो अब मुझे आप क्या आज्ञा देते हैं?

भूत० : बस यही जो मैं पहले कह चुका, तुम इस बात का पता लगाओ कि दलीपशाह को इस घटना से कहाँ तक सम्बन्ध है, मगर इसके पहले कि तुम काम पर रवाना होवो कुछ देर तक और मेरे साथ रहो। जैसाकि मैं पहले कह चुका हूँ—मैं इस सम्बन्ध में सबसे पहले दारोगा से मिल कर इस बात की जाँच करना चाहता हूँ कि इस घटना से उसका कहाँ तक सम्बन्ध है, पर उसके घर जाने के लिए कुछ मदद साथ में लेकर जाना ही मुनासिब है। इधर मैंने उसे बहुत तंग किया है जिससे वह मुझसे बेतरह जला हुआ है। अकेले जाने से शायद वह किसी तरह का वार मुझ पर करे, इसलिए आजकल जब भी मैं उससे मिलने जाता हूँ, गुप्त रूप से कोई मददगार जरूर अपने साथ रखता हूँ। उससे मिल कर मैं खाली हो जाऊँ तो फिर रोतहतासगढ़ चला जाऊँगा और तुम मिर्जापुर चले जाना।

रामे० : रोहतासगढ़ क्या करने जाइएगा?

भूत० : वही पुराना झगड़ा और क्या?

रामे० : क्या वह अभी तक खतम नहीं हुआ?

भूत० : नहीं, कहाँ से, तुमने शायद सुना ही होगा कि अब नन्हों वहीं जाकर बस गई है और घर आने का नाम भी नहीं लेती और इससे मेरा तरद्दुद और भी बढ़ रहा है।

रामे० : वह कम्बख्त भी एक ही कमीनी है, मैंने उसके बारे में इधर कुछ ऐसी बातें सुनी हैं जिनसे मालूम होता है कि कभी-न-कभी उसके हाथों आपको तकलीफ उठानी पड़ेगी।

भूत० : बेशक यही बात है और इसीलिए तो मैं इस फेर में पड़ा हुआ हूँ कि उसका खरखशा हमेशा के लिए मिटा दिया जाय पर मालूम होता है कि उसको किसी तरह मेरे इरादे का पता लग गया है क्योंकि जब से मैं उसके पीछे पड़ा हूँ तभी से वह भी भागी फिर रही है, कभी काशी, कभी जमानिया, कभी शिवदत्तगढ़ और कभी रोहतासगढ़ भागती रहती है।

रामे० : तो क्या आप उसे गिरफ्तार करना चाहते हैं?

भूत० : नहीं-नहीं, उसे पकड़ कर मैं क्या करूँगा!

रामे० : तब फिर किस नीयत से आप उसके पीछे पड़े हैं! इधर कई बार आपके मुँह से मैं उसका नाम सुन चुका हूँ और यह भी जानता हूँ कि आपको उसके कारण बहुत कुछ तरद्दुद पैदा हो गया है पर ठीक-ठीक क्या बात है यह जानने में न आया।

भूत० : इसका किस्सा बहुत लम्बा-चौड़ा है, खुलासे तौर पर तो फिर कभी सुनना। संक्षेप में बात यह है कि किसी समय इसको भी मेरे मामले में बहुत गहरा सम्बन्ध रह चुका है। यह रिश्ते में दलीपशाह की कोई होती है और पहले रणधीरसिंह के महल में सहेलियों की तरह रहती थी। चाल-चलन ठीक न रहने से इसको उन्होंने निकाल दिया। स्वतन्त्र होने से यह और भी खुलखेली। न-जाने किस तरह शिवदत्त के पास चुनार जा पहुँची।वह जब राजा बीरेन्द्रसिंह से हार कर भाग गया तो फिर मिर्जापुर लौटी पर तब इतनी बदनाम हो चुकी थी कि दलीपशाह ने उसे उस शहर में रहने देने में अपनी बदनामी समझी और दूसरी जगह जाकर बसने के लिए कहा। तब यह जमानिया पहुंची और दारोगा साहब की प्रेमपात्री हुई। उनके यहाँ जब मनोरमा का जोर बढ़ा तब यह उनसे रूठ कर वहाँ से भी चल दी और कई बरस तक न-जाने कहाँ-कहाँ की खाक छानती रही, अब रोहतासगढ़ में दिखाई देने लगी है। मुझसे इसको शुरू से ही दिलचस्पी रही और इसे मेरा बहुत-कुछ हाल भी मालूम है, कुछ तो दलीपशाह के कारण, कुछ रणधीरसिंह के यहाँ रहने के कारण और कुछ शायद दारोगा और शिवदत्त के साथ की बदौलत। पर अभी तक इसकी तरफ से कोई ऐसी बात नहीं हुई थी जिससे मुझे यह शक होता कि यह मुझसे सिवाय डरने के और किसी तरह का भाव रखती है।

रामे० : तो अब क्यों वह आपसे दुश्मनी करने लगी!

भूत० : ठीक-ठीक तो मैं कुछ नहीं कह सकता पर शक करने लायक बहुत-सी बातें मिली हैं, खास तौर पर जब से मुझे यह मालूम हुआ है कि रणधीरसिंह के यहाँ नौकरी के पहले यह जमानिया महल में थी और उस समय मायारानी की बहुत मुँह लगी सहेलियों में से थी जब कि वह घटना है।

राम० : तब क्या यह सम्भव नहीं है कि उस घटना के बारे में भी यह जानकारी रखती हो!

भूत० : बेशक यही बात है और इसलिए मैं अब उसकी तरफ से निश्चिन्त नहीं हूँ।

रामे० : लेकिन अगर सिर्फ इतनी ही सी बात है तो यह बहुत ज्यादा परेशानी की कोई बात तो नहीं जान पड़ती।

भूत० : रोहतासगढ़ में इसका जाना मतलब से खाली नहीं है। तुम्हें शायद न मालूम होगा कि दिग्विजयसिंह को तिलिस्म से बहुत गहरा सरोकार है और साथ ही शिवगढ़ी भी उसी की रियासत के अन्दर पड़ती है जिसके अनमोल खजाने की लालच ने मुझसे वह काम कराया था। खुद दिग्विजयसिंह बहुत दिनों से इस फिराक में है कि शिवगढ़ी की ताली उसके हाथ लग जाय और वह वहाँ की दौलत अपने कब्जे में कर ले पर इस काम में सफल नहीं हो सकता क्योंकि वहाँ की ताली अब किसके पास या कहां है यह उसे मालूम नहीं है।

रामे० : मगर इससे आपको तरद्दुद क्यों? क्षमा कीजिएगा, अगर मैं बहुत खोद-विनोद कर रहा हूँ तो इसका कारण यही है कि आपकी बातें मेरा कौतूहल बढ़ाती जा रही हैं और मैं नन्हों का ठीक-ठीक भेद जानने को व्याकुल हूँ जिसका एक सबब और भी है जो मैं फिर कभी आपसे कहूँगा, अस्तु वह यदि कोई ऐसी बात न हो जिसको आप बहुत गुप्त रखना चाहते हैं तो मुझे बताइए। आप विश्वास रखिए कि मेरी जुबान से आपका कोई गुप्त भेद कदापि किसी दूसरे पर प्रकट नहीं होगा चाहे कोई मेरे बदन के टुकड़े भी कर डाले!

भूत० : (मुस्कुरा कर) नहीं रामेश्वरचन्द्र तुम मेरे सबसे विश्वासी शिष्य हो और तुमसे मैं कोई भी बात छिपाना पसन्द नहीं करता।

अगर कभी कुछ छिपाने की जरूरत पड़ भी जाती है तो मौका आते ही मैं तुम पर सब कुछ प्रकट कर देता हूँ जिसे तुम बखूबी जानते भी हो, अस्तु मैं इस भेद को भी तुमसे छिपाऊँगा नहीं क्योंकि मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि जीते जी कभी तुम्हारी जुबान से यह किसी दूसरे पर प्रकट न होगा। मगर अब यहाँ बैठने से कोई लाभ नहीं, अब हम लोगों को अपना सफर शुरू कर देना चाहिए जिसमें रात होने के पहले ही जमानिया पहुँचा जा सकें।

इतना कह भूतनाथ खड़ा हो गया और रामेश्वरचन्द्र ने भी वैसा ही किया, दोनों आदमी आपुस में बातें करते हुए जमानिया की तरफ रवाना हुए।

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