भूतनाथ - खण्ड 3
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भूतनाथ - खण्ड 3 पुस्तक का ई-संस्करण
सातवाँ बयान
जमना और सरस्वती को भीम और दत्त की कार्रवाई देख कर उस पर शक हो गया और उन दोनों ने आपुस में बातें करके यह तय कर लिया कि उनको इस जगह से (जहाँ वे छिपी हुई थीं) हट कर किसी दूसरी जगह चले जाना चाहिए जिसमें दत्त उनको खोजने पर भी यकायक पा न सके। इस विचार से जब वे दबे पाँव दूसरी तरफ चलीं तो ठीक उस पेड़ के पास से होकर निकलीं जहाँ दारोगा हरनाम और बिहारीसिंह को लिए छिपा खड़ा था।
इन दोनों को अपनी तरफ आते देख पहले तो दारोगा डरा मगर जब वे दोनों उसके पास से निकल कर आगे की तरफ बढ़ चलीं तो उसको निश्चय हो गया कि इनको मेरी मौजूदगी की कुछ भी खबर नहीं लगी और उसने बिहारी और हरनाम से कुछ इशारा किया जिसके साथ ही उन दोनों ने उनका पीछा किया। कुछ दूर पीछे-पीछे जा उन्होंने कमन्द फेंक कर दोनों को जमीन पर गिरा दिया और जबर्दस्ती बेहोशी की दवा सुँघा कर बेहोश कर दिया। इन लोगों ने उन दोनों को पहिचानने की कोशिश की मगर जब पहिचान न सके तो अपने सिपाहियों के सुपुर्द कर दारोगा के पास लौट आये और बोले—
बिहारी : लीजिए शकुन तो अच्छा हुआ।
दारोगा : (खुश होकर) वह दोनों हाथ आ गए! कौन थे?
बिहारी : पहिचान तो नहीं सका पर दोनों ही औरतें हैं।
दारोगा : (आश्चर्य से) औरतें! तो तुमने उन्हें पहिचानने की कोशिश नहीं की?
बिहारी : जरूर की, पर अंधकार के कारण उन्हें पहिचान न सका। बिना रोशनी के इस बात का पता लगाना मुश्किल था और रोशनी करने का मौका न था इसलिए मैंने उन्हें अपने सिपाहियों के सुपुर्द कर दिया और इधर चला आया।
दारोगा : खैर घर चलने पर उनको पहिचानने की कोशिश की जायगी।
बिहारी : (चौंक कर) कहीं वे दोनों जमना और सरस्वती न हों?
दारोगा : (खुश होकर) यदि ऐसा हो तब तो क्या ही बात है! उन कम्बख्तों ने भी मुझे बहुत ही तंग कर रक्खा है। परन्तु ये लड़ने वाले तथा कैदियों के साथ खड़े रहने वाले कौन हैं, यह अब तक मालूम न हुआ। भला तुमने इस पर भी कुछ विचार किया।
बिहारी० : निश्चय तो नहीं होता मगर कम-से-कम मुझे तो इसमें कोई सन्देह नहीं है कि ये लोग भूतनाथ के साथी या...
दारोगा : (बिहारी का हाथ दबा कर) जरा ठहरो, देखो वे लोग हमारी ही तरफ आ रहे हैं। सिपाहियों को होशियार करके बता दो कि मैका पाते ही सब-के-सब एकबारगी उन पर टूट पड़ें।
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