लोगों की राय

भूतनाथ - खण्ड 2

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: author_hindi

Filename: views/read_books.php

Line Number: 21

निःशुल्क ई-पुस्तकें >> भूतनाथ - खण्ड 2

भूतनाथ - खण्ड 2 पुस्तक का ई-संस्करण

सोलहवाँ बयान


भूतनाथ अपने दुश्मन को सामने से आते हुए देख कर एक दफे तो घबड़ा उठा मगर तुरन्त ही उसकी हिम्मत और दिलेरी ने उसकी पीठ ठोंकी और वह बड़ी दिलावरी के साथ मुस्कराता हुआ दुश्मन के पास आ जाने का इन्तजार करने लगा।

थोड़ी ही देर में उसका दुश्मन उसके सामने आकर खड़ा हो गया और आश्चर्य से तथा जाँच की निगाह से भूतनाथ भैयाराजा और मेघराज की तरफ देखने लगा।

भूतनाथ को यह निश्चय हो गया कि मेरा दुश्मन जरूर प्रभाकरसिंह ही है क्योंकि वह भैयाराजा की साथी है, भैयाराजा ने उसकी मदद की थी। और इन दोनों में इस समय बहुत गहरी मित्रता हो रही है। वास्तव में बात भी यही थी। इस समय प्रभाकरसिंह भूतनाथ के सामने पहुँच कर ताज्जुब के साथ सोच रहे थे कि क्योंकि गदाधरसिंह ने मेघराज और भैयाराजा पर कब्जा कर लिया जो कि हर हालत में भूतनाथ को दबा सकते थे। भूतनाथ ने मुस्करा कर प्रभाकरसिंह से कहा-

भूत० : आप जरूर ताज्जुब करते होंगे कि इन दोनों को मैंने क्योंकर बेहोश कर दिया!

प्रभा०: बेशक यही बात है क्योंकि इन दोनों से तुम किसी तरह भी जीत नहीं सकते थे।

भूत० : अब भी मैं यही कहूँगा कि इनको जीतने की ताकत मुझमें नहीं है मगर अपनी चालाकी और ऐयारी का नमूना दिखा देने की इच्छा प्रबल होने ही से मैंने वह कार्रवाई की।

प्रभा० : इन दोनों को बेहोश कर देने के बाद तुम यहाँ से भाग क्यों नहीं गये?

भूत० : भागने की तो मुझे कोई जरूरत नहीं थी। आप लोग चाहे मुझे जिस निगाह से देखे मैं आप लोगों से अब दुश्मनी का बर्ताव नहीं रखता मुझे विश्वास कि आप लोग मेरे साथ कदापि बुराई नहीं करेंगे, इसी से इन दोनों को बेहोश करने के बाद भी बेफिक्री के साथ यहाँ खड़ा आपके आने का इन्तजार कर रहा था।

प्रभा० : तुम हम लोगों को जानते-पहिचानते भी हो या योंही दोस्त मान बैठे।

भूत० : हाँ, इन मेघराज को तो मैं नहीं जान सका कि कौन हैं मगर आपको प्रभाकरसिंह और (हाथ का इशारा करके) इनको भैयाराजा समझ लेने में मै किसी तरह की भूल नहीं करता।

प्रभा० : तुम्हारी धूर्तता और चालाकी की मैं जरूर तारीफ कर सकता मगर इसमें कोई सन्देह नहीं कि तुम्हारी नीयत बहुत ही खराब है और तुम्हारा दिल साफ नहीं है।

भूत० : यही शक तो आप लोगों का नुकसान कर रहा है, नहीं तो अभी तक कितना काम हो चुका होता और भैयाराजा की स्त्री को भी दुश्मनों की कैद से छुटकारा मिल गया होता।

प्रभा० : खैर, मैं तब तक तुमसे विशेष बातें न करूँगा जब तक कि ये दोनों होश में न आ जायेंगे क्योंकि इन दोनों के सामने ही बातचीत करना मुनासिब होगा।

भूत० : आशा है कि बहुत जल्दी ये दोनों होश में आ जायेंगे।

प्रभा० : तुम लखलखा सुँघा कर इन दोनों की बेहोशी क्यों नहीं दूर करते।

भूत० : बेहतर होगा कि आप ही अपने हाथ से यह काम कीजिए।

प्रभा० : (मुस्कुरा कर) मालूम होता है कि मेघराज के बदन पर हाथ लगा कर तुम धोखा खा चुके हो इसी से ऐसा कहते हो, खैर कोई चिन्ता नहीं- मैं खुद इन दोनों की बेहोशी दूर करने की कोशिश करता हूँ।

इतना कह कर प्रभाकरसिंह ने अपने ऐयारी के सामान में से निहायत उम्दीय लखलखा निकाल कर भैयाराजा और मेघराज को सुँघाया जिससे बात-की-बात में दोनों की बेहोशी दूर हो गई और वे आश्चर्य के साथ अपने चारों तरफ निगाह दौड़ा कर देखने लगे।

।। छठवाँ भाग समाप्त ।।

द्वितीय खण्ड समाप्त

आगे जनने के लिये भूतनाथ खण्ड 3

पढ़ें

...Prev |

To give your reviews on this book, Please Login